रविवार, 1 मई 2011

तंत्र समझ में कैसे आए?

तंत्र पर विस्तृत सामग्री मेरे दूसरे ब्लाग तंत्र परिचय पर मिलेगी । मग संस्कृति संबंधी सूचनाएं ही काफी हो जाती हैं। मगों की अपनी कोई विशेष बात होगी तो उसे इसी ब्लाग पर रखा जायेगा।

तंत्र समझ में कैसे आए?

यह प्रश्न लोगों के मन में कई बार उठता है क्योंकि तंत्र शास्त्र को गोपनीय माना गया है और लिखा कहा गया है - ‘गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरित पार्वती’। हे पार्वती अपनी योनि की तरह इसे प्रयत्नपूर्वक गोपनीय रखना चाहिए। ऐसी गोपनीयता के बावजूद आज हजारों पुस्तकें/निबंध प्रकाशित हो रहे हैं जो न तो गोपनीयता की नीति अपनाते हैं न स्पष्टता की, उल्टे अलूलजलूल बातों को विस्मयकारी ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
@के पूरब तय किया गया कि विवाह के पूर्व कम से कम प्रायोगिक रूप से इतनी शिक्षा तो समाज के हर युवा-युवती को किसी न किसी प्रकार दे दी जाय चाहे वह किसी भी जाति का हो। ऐसे प्रायोगिक केन्द्रों को नए शिरे से बसाया गया राजाओं ने मदद की। यह सबकुछ व्यवस्थित रूप से पाँच सौ वर्षो में किया गया। समानांतर ढंग से इसका तीव्र विरोध भी हुआ। सामंजस्य एवं समन्वय भी हुआ। जजमानी प्रथा इसका एक उदाहरण है। मजेदार किंतु सच बात यह है कि आज भी अनेक तांत्रिक अनुष्ठान सामाजिक स्तर पर दुहराए भी जाते हैं परंतु कुछेक समझदार लोगों को छोड़कर अनुष्ठान में सम्मिलित अन्य लोग यह समझ नहीं पाते कि दरअसल इसका मतलब क्या हुआ और इसका वास्तविक लाभ क्या है?
इस नासमझी के कारण लोग जहाँ मन में आता है संशोधन करते हैं और कुछ बेवजह लकीर पीटते हैं। संस्कृत के प्रकांड पंडितों, पी॰एच॰डी॰ डिग्री वालों से लेकर निरक्षर सबका हाल इस मामले में एक है।
मैं इस सामाजिक अभ्यासवाले तंत्र पर मुख्य रूप में लिख रहा हूँ क्योंकि इसके अनुष्ठान बहुत कम गोपनीय स्तर पर होते हैं। इसे सुविधापूर्वक जाना-समझा जा सकता है। इसके बाद बाकी जानना या न जानना आपकी इच्छा। इसलिये इस ब्लाग में अनेक प्रकार के परंपरागत अनुष्ठानों पर सामग्री आएगी। आप यदि अपनी जिज्ञासा/प्रश्न सामने लाएँगे तो मुझे भी लिखने में सुविधा होगी।

संध्या भाषा/दुहरे अर्थोवाली अभिव्यक्ति:-
तंत्र के अनेक विषय दुहरे अर्थोंवाली भाषा में लिखे गए हैं। अतः पहले उन्हें डिकोड करना पड़ता है। इसे पारिभाषिक रूप से यंत्रोद्धार, शापोद्धार एवं मंत्रोंद्धार (वैदिक परंपरा में) कहते हैं। इसके अपने तरीके हैं। बौद्ध तंत्र में बाकायदा एक डिकोडिंग अध्याय (पटल) बनाया जाता था और उसे किसी दूसरी किताब के बंडल के साथ बाँध कर हस्तालिखित ग्रंथों के ग्रंथागार में बाँध दिया जाता था। केवल अपनी बुरुपरंपरा या संप्रदाय के लोगों को असली बात बताई जाती थी।
इस विषय पर आगे अगले किश्त में पढे़ं -

तंत्र समझ में कैसे आए ? किश्त-दो।
(वैदिक एवं तांत्रिक वर्णनों को समझने का सही तरीका)