सोमवार, 26 जनवरी 2015

ताकि हौसला बना रहे

ताकि हौसला बना रहे
1 शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज के लोगों से मेरा सादर निवेदन है कि सभी लोगों को खुले दिल और दिमाग से समाज की समस्या और उसके समाधान पर सोचना चाहिये साथ ही समाज के लिये जब कोई भी संस्था या कुछ लोगों की मंडली कुछ करती है, उसकी सच्ची समीक्षा होनी चाहिये तथा उन्हें पूरा सहयोग दिया जाना चाहिये ताकि हौसला बना रहे।
2 बिरादरी के हित में काम करने वाले लोग अक्सर कुछ दिनों बाद थक, उदास हो कर बैठ जाते हैं और समाज की शिकायत करते रहते हैं। इसी तरह शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज के लोग भी कई बार हर काम में केवल नुक्श निकालते हैं और यह शिकायत करते हैं कि बस इतना ही? यह भी कोई काम है? इससे क्या होने वाला है? इन दोनो अतिवाद से बचना जरूरी है ताकि समाज और समाज के लिये छौटा या बड़ा कोई भी काम करने वालों का हौसला बना रहे।
3 जो लोग कोई भी संस्था या कुछ लोगों की मंडली बना कर समाज के काम के मैदान में उतरते हैं, वे भी प्रायः अति उत्साह के कारण भ्रम में रहते हैं और सारे कामों को अकेले ही करने का बीड़ा उठाने लगते हैं। समाज के चतुर और असंवेदनशील लोग उनकी अतिरंजित प्रशंसा कर उन्हें भ्रम में डाल देते हैं। सच यही है कि अपनी रोजी रोटी के बाद समाज के काम के लिये समय निकालना बड़े त्याग का काम है और इसकी एक सीमा है। किसी से भी अधिक अपेक्षा करना उसे बरबाद करने जैसा है। अतः दोनों पक्षों, समाज तथा इसके लिये काम करने वालों को सावधान रहने की जरूरत है, ताकि हौसला बना रहे।
4 अक्सर देखा जाता है कि संस्थाएं और संगठन फैलने की जगह सिमटते-सिमटते कुछ चुनींदा लोगो की मंडली बन कर रह जाते हैं। इसे हर हाल में रोका जाना चाहिये। नये नये लोगों को सेवा के काम में समय देना चाहिये और पहले से चल रही मंडली को उन्हें प्रेम पूर्वक स्वीकार करना चाहिये ताकि हौसला बना रहे।
5 सभी कामों में सबकी न रुचि होती है, न क्षमता। पहले से चल रहे किसी संस्था-संगठन को यदि किसी दूसरे की बात पसंद न हो तो वे विरोध करने लगते हैं और अपमान महसूस करते हैं। उसे समाज विरोधी काम तक कहने लगते हैं। यह संकीर्ण दृष्टि है कि न करेंगे, न करने देंगे। मेरे/हमारे अतिरिक्त किसी को कुछ करने नहीं देना है। मेरा/हमारा वर्चस्व ही रहना चाहिए। इसे अपने एवं समाज के हित में शीध्र त्याग कर उत्साही लोगों को सुनना एवं अपने मंतब्य तथा सुधार के सुझाव के साथ यथा शक्ति सहयोग करना चाहिये ताकि हौसला बना रहे।
6 समाज के लिये किये जाने वाले काम अनेक हैं, कुछ तो तुरत आपत्कालीन मदद वाले हैं, उसके लिये किसी संस्था या संगठन की अनिवर्यता नहीं है न उसके लिये किसी का संकट काल टल सकता है। जो जहां हों, वहीं मदद करें ताकि अन्य को भी प्रेरणा मिले और भले लोगों का हौसला बना रहे।
7 सूर्य सप्तमी पूजा, परिवार मिलन, प्रतिभा खोज एवं उनका सम्मान, आपात सहायता, वैवाहिक सूचना, आपसी कलह में समझौता, संस्कृत- संस्क्ृति प्रशिक्षण, रोजगार परक प्रशिक्षण आदि करने लायक अनेक काम हैं। इन्हें इस आधार पर रोका नहीं जा सकता कि एक मंडली, जो काम कर रही है वही सारे काम करे। मुझे इस बात में कोई बुराई नहीं लगती कि अलग अलग कामों के लिये अलग अलग मंडिलियां सक्रिय रहें और सभी दूसरे को सहयोग दें। कोई न थक कर बैठ जाए, न ही कोई खड़ा ही न हो सके। वास्तविकता को स्वीकार करना जरूरी है ताकि हौसला बना रहे।
8 अघोषित रूप से किसी आयोजक द्वारा उसके अच्छे आयोजन के बीच ही किसी राजनैतिक दल, व्यापारी संस्थान या अन्य जातीय संस्था या संप्रदाय के लोगों को लाभान्वित बनाने के खेल के कारण लोग भीतर ही भीतर भड़क जाते हैं। ऐसा करना उचित नहीं ताकि पारदर्शिता और विश्वास के साथ सही लोगों का हौसला बना रहे।
9 धीरे-धीरे आयोजनों को स्वावलंबी और सरल बनाने का प्रयास करना चाहिये ताकि लोग समाज के काम के सपने को साकार करने के लिये नये नये लोग आगे आयें और हौसला बना रहे।
मैं भी लंबे समय से कई सामाजिक कामों में लगा रहा हूं। मैं ने भी अनेक प्रकार के सफलता-विफलता के अनुभव पाये हैं। अपनी समझ, अनुभव तथा आगे की संभावना को देखते हुए अपना विचार आप लोगों के सामने रख रहा हूं। आशा है, आप सभी इस पर ध्यान देंगे और मुझे भी सलाह देंगे।
रवीन्द्र कुमार पाठक, मो- 9431476562

सोमवार, 19 जनवरी 2015

सूर्य सप्तमी और सूर्य पूजा

सूर्य सप्तमी व्रत-पूजा-उत्सव संदर्भ कथा
पिछले वर्ष मैं ने सूर्य सप्तमी के अवसर पर की जाने वाली पूजा को सांब पुराण के अनुसार किये जाने का सुझाव दिया था, जो अपनी परंपरा का मूल ग्रंथ है। इसमें विस्तार से सूर्य साधना की अनेक विधियां दी गई हैं। जो भी संस्था/संगठन इसे पसंद करें उनके लिये विवरण नीचे उपलब्ध है।
माघ शुक्ल सप्तमी के दिन व्रत एवं पूजा के साथ उत्सव मनाने का वर्णन पुराणों में मिलता है। भविष्य पुराण और उसके उप पुराण सांब पुराण में सूर्य सप्तमी का वर्णन है, उसमें भी केवल सूर्य संबंधी होने के कारण सांब पुराण में यह विषय विस्तृत रूप से वर्णित है।
यह व्रत वस्तुतः 2 दिनों षष्ठी और सप्तमी मिला कर मनाने का प्रावधान है, जिसे बाद में केवल षष्ठी या केवल सप्तमी के दिन भी मनाने का विकल्प दिया गया। षष्ठी के दिन व्रत और सप्तमी के दिन उत्सव का स्वरूप होने से कालांतर में सप्तमी वाला ही अधिक प्रचलित रहा। इसे भानु सप्तमी एवं रथ सप्तमी भी कहा गया है। मूलतः कहा जाय तो यह रथ सप्तमी है। इस अवसर पर सूर्य के रथ के निर्माण और रथ यात्रा का पहले प्रचलन था, जिसका विधान सांब पुण में सूर्य सप्तमी पूजा के रूप में है। इस अवसर पर रथ निर्माण से ले कर रथ यात्रा निकालने तक की चलन रही, साथ ही सूर्यमंडल के निर्माण के बाद उसमें सौर तंत्र साधना पंरपरा में दीक्षा भी दी जाती थी। बाद में जब लोगों ने सौर तंत्र में दीक्षा ले कर साधना करना छोड़ दिया क्योंकि यह साधना पद्धति मुख्यतः योग मार्ग का होने के कारण तुलनात्मक रूप से कठिन होती थी साथ ही मंदिरों से जब चढ़ावा बिना मिहनत मिले तो साधना कौन करे का भाव भी आ गया। मंदिर के प्रबंधन में मगों की इतनी दक्षता थी कि अन्य संप्रदाय के लोग भी इन्हें कहीं पुजारी, कहीं प्रबंधक नियुक्त करने लगे थे।
सूर्य मंदिरों की संपत्ति पर दूसरों के कब्जे और मग बिरादरी की उदासीनता के कारण बहुत दिनों तक रथ यात्रा एवं सूर्य सप्तमी बंद रही। कुछ लोग इसे अचला सप्तमी के रूप में मनाते रहे। इसमें किसी जाति विशेष की सीमा नहीं रही। इस प्रकार रथ सप्तमी का संदर्भ तो लोग भूल ही गये। यहां तक कि जहां सूर्य मंदिर हैं वहां भी न तो रथ निर्माण होता है न रथ यात्रा निकाली जाती है।
इसके बाद जब बिरादरी एकता एवं संगठन के प्रयास शुरू हुए तब सूर्य सप्तमी को पूरे भारत में शाकद्वीपी लोगों की वार्षिक पूजा के रूप में स्वीकार किया गया। इसके बाद एक दिवसीय सूर्य सप्तमी और सूर्य पूजा की चलन शुरू हुई लेकिन अन्य ग्रंथों के आधार पर, जब कि सांब पुराण में पूरी पूजा विधि दी हुई है। इसी में आंशिक कालोचित संशोधन कर सूर्य सप्तमी व्रत पूजा करना परंपरा के अधिक करीबी है।
सांब पुराण शाकद्वीपियों का सर्वाधिक विस्तृत और पारंपरिक ग्रंथ है। अतः अन्य जो करें शाकद्वीपी लोगों को सांब पुराण पर भरोसा करना चाहिये। सूर्य सप्तमी/अचला सप्तमी व्रत के अनेक लाभ बताये गये हैं, जिनमें एक लाभ यह है कि इस दिन किया गया कार्य हमेशा स्थाई होता है।
सांब पुराण अध्याय, 38, 55, एवं अन्य पर आधारित


श्री शशि रंजन मिश्र से अनुरोध है कि वे सांब पुराण वाला लिंक एक बार फिर से पेस्ट कर दें या अध्याय 38 को डॉक्युमेंट फार्म में उपलब्ध करा दें ताकि लोग आसानी से प्रिंट निकाल कर उसका उपयोग कर सकें।
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बुधवार, 14 जनवरी 2015

सावधानी का आग्रह

एक सुखद ऐतिहासिक सूचना एवं सावधानी का आग्रह
भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न ब्राह्मणों ने समय समय पर ईशाई धर्म को स्वीकार किया। कोलकाता तथा मद्रास में यह काम यूरोपीय प्रभाव या अंगरेजी सरकार के प्रलोभन वश हुआ। गोआ में जबरन धर्मांतरण कराया गया। सौगाग्य से बंगाल के कोलकाता में रहने के बावजूद ‘‘किसी शाकद्वीपी ने ईशाई धर्म नहीं अपनाया’’, यह मानना है ईशाई मिशनरियों का। देखें वेबसाइट http://joshuaproject.net/people_groups/19974/IN
इस तथ्य ने ईशाई मिशनरियों में यह चुनौती पैदा की है कि किसी प्रकार शाकद्वीपी ब्राह्मणों को ईशाई बनाया जाय। इसके लिे पहला उपाय सोचा गया है कि उन ईशाइयों को इनके संपर्क में लाया जाय जो पहले ब्राह्मण थे। ऐसे लोगों से सावधान रहें।