शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

बिना समस्या जाने समाधान कैसे?


बहुत सारे लोग जातीय समाज के बारे में मुझसे अधिक जानकारी रखते हैं। मैं उन्हें खोज-खोज कर उनसे और विभिन्न मंचों पर प्रश्न रख कर जानना समझना चाहता हूं।
किसी भी जाति या समाज के बारे में अपने से समाधान बना लेने और उनके बारे में जानने में बहुत फर्क आ जाता है। इसलिये अचानक मैं न सहमत हो पाता हूं न असहमत। बिहार से ले कर राजस्थान तक अपनी यात्राओं में मुझे  दोनो प्रकार के लोगों से भेंट हुई- एक वे जो सच छुपाते हैं, बेईज्जती के डर से और दूसरे जो खुल कर समस्याएं और कुछ समाधान भी बताते हैं।
मैं ने एक बार समस्याओं की सूची बनाई और अनेक सामाजिक रूप से सक्रिय लोगों तक पहुचाने का प्रयास किया। इसे नये शिरे से सुधारना है। सामान्य लोगों ने तो बहुत पसंद किया लेकिन कुछ ही लोगों ने इसे स्वीकार किया। प्रायः संस्था-संगठन चलाने वाले लोगों ने इसे पसंद नहीं किया।
सबके पास अपनी पसंद के कार्यक्रम एवं मुद्दे हैं। वे उसी अनुसार समाज को निर्देशित करना चाहते हैं। समाज तो रहस्यमय सत्ता है। उसे मौन, असहमति और झूठे आश्वासन जैसे खेल भी आते हैं। वख्त ही बताता है कि किसने किसे बेवकूफ बनाया। क्या खोया क्या पाया?
मुझे कई बार अनुभव हुआ कि जिस बात को ले कर मैं गंभीर प्रयास कर रहा हूं, उसे तो कोई समस्या नहीं मानता तो तब फिर  रुचि हो क्यों?