मग-मित्र-मंडल, बिहार
मग-मित्र मंडल ज्ञानामृत कार्यक्रम के प्रसार एवं इन
शिविरों के आयोजन एवं संचालन करने वाले लोगों के संगठन का नाम है। इनमें केवल वे
लोग ही सम्मिलित होंगे, जिन्हें इन
प्रायोगिक विद्याओं का व्यावहारिक ज्ञान होगा। चूँकि कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं
है अतः सभी के साथ लेने-देने की संभावना है। इस प्रकार प्रशिक्षक/आचार्य स्तर पर
भी ज्ञान से परस्पर अभिवृद्धि की पूरी संभावना है। जो प्रशिक्षणार्थी होंगे उन्हें
भी आत्मीय माहौल में अपनी परंपरा के अनुरूप ज्ञान का लाभ होगा।
आरंभ, सदस्यता एवं
विस्तार - इसकी शुरुआत दो लोगों ने की है, डॉ0 रवीन्द्र कुमार पाठक एवं श्री श्यामनंदन मिश्रा दोनों की
सहमति से श्री पतंजलि मिश्र एवं श्री चिंतरंजन पाण्डेय को भी सदस्य बनाया गया है।
इसी प्रकार आगे भी प्रायोगिक ज्ञान एवं अभ्यास करने वाले लोगों को ही इस भित्र
मंडल में सम्मिलित किया जाएगा क्योंकि इसका उद्देश्य मुख्यतः विद्या की अभिवृद्धि
है।
प्रायोगिक
ज्ञान के तीन स्तर हैं। इनमें से किसी एक स्तर का अनुभवात्मक ज्ञान अनिवार्य है।
एक से अधिक स्तरों का ज्ञान और अच्छा है। नए सदस्य का मित्र मंडल में प्रवेश
सर्वसम्मति से होगा। सर्व सहमति न बन पाने पर अतिथि आचार्य के रूप में किसी भी
प्रायोगिक ज्ञान वाले व्यक्ति को सम्मिलित किया जा सकता है।
अपात्र -
किसी एक संप्रदाय या गुरु परंपरा को प्रामाणिक मानने वाले या स्वयं को ही सभी मामलों
में प्रामाणिक मानने और मनवाने वाले व्यक्ति इस संगठन के लिए अपात्र होंगे भले ही
उनका प्रायोगिक अनुभव किसी भी स्तर एवं स्वरूप का हो।
पात्रता
एवं स्तर भेद -
पहला -
केवल शाब्दिक ज्ञान या शास्त्राध्ययन पर कोई अनुभव नहीं, जैसे - ज्योतिष, दर्शन, धर्म शास्त्र, पुराण आदि का केवल
किताबी ज्ञान।
दूसरा -
अनुष्ठान, पूजा-पाठ
की विधियों का ज्ञान परंतु उसका परिणाम से संबंध एवं पूरी प्रक्रिया के अनुभवात्मक
ज्ञान का अभाव, जैसे -
संध्या तो करना परंतु तीनों नाड़ियों की गति, प्रकृति से संबंध, चेतना पर प्रभाव, संतुलन स्थापित करने के भौतिक तथा मानसिक प्रक्रियाओं की
जानकारी नहीं होना। शाब्दिक जप से ऊपर की जप की प्रणालियों के ज्ञान का अभाव।
अर्थात केेवल बाह्य आचार के जानकारी लेकिन आभ्यंतर प्रक्रिया एवं आचार से अपरिचित।
तीसरा -
बाह्य, आभ्यंतर
एवं सामाजिक तीनों स्तरों पर होने वाले प्रभाव का अनुभवात्मक ज्ञान, भौतिक द्रब्यों का
तन एवं मन पर प्रभाव, मंत्र की
संरचना की समझ, संध्या
भाषा, कूट भाषा
को खोलने की क्षमता, ध्वनि, स्वर, एवं सामग्री के
संयोजन का ज्ञान, मंडल, बेदी, यंत्र, कुंड, आवाहन-पूजन की समझ
आदि के साथ पहले एवं दूसरे स्तर पर वर्णित बातों के साथ संगति मिलाने की क्षमता।
तीसरे स्तर
वाले दुर्लभ साधकों का सहर्ष स्वागत है। दूसरे स्तर वालों का भी स्वागत है इस
अपेक्षा के साथ की वे तीसरे स्तर के लोगों से सीखंे। पहले स्तर वाले भी सम्मिलित
होंगे परन्तु उनके प्रस्ताव को जबतक तीसरे एवं दूसरे स्तर वाले स्वीकार नहीं करते
वह पाठ्यक्रम का भाग नहीं होगा।
स्पष्टीकरण
-
1. लोकरंजन
विद्या की कीमत पर नहीं होगा। विद्या के अनुरूप हीं लोकरंजन हो सकेगा।
2. भीड़ बढ़ाने
का महत्व नहीं है। ज्ञान परंपरा बढ़े यही मुख्य बात है।
3. यह
कार्यक्रम व्यवसायिक नहीं है, परन्तु इसे आर्थिक रूप से सुदृढ़ तो करना हीं है तभी लंबे समय
तक चल सकेगा।
लाभार्थी -
इस विद्या
के लाभार्थी वे सभी लोग होंगें जो मगों के प्रति मैत्री भाव रखते हों, चाहे ब्राह्मण हों
या अब्राह्मण अथवा स्वयं विद्याधर वंश परंपरा में हांे। उनसे लेने देने का रिश्ता
तो चलाना ही होगा या संयुक्त कार्यक्रम भी हो सकते हैं।
मग होने पर
भी जो दूसरे जाति-वर्ग के प्रति समर्पित हों या नव सुधारवादी संप्रदायों में हांे
वे इस मंडल में नहीं आ सकते हैं। इसके अतिरिक्त सारी बातंे आपसी निर्णय से होंगी।
आपसी सहमति से ही किसी एक को अध्यक्ष एवं एक को संयोजक चुना जायेगा।
कार्यकाल -
कम से कम एक साल, उसके बाद
मग मित्र मंडल के सदस्यों की इच्छा के अनुरूप।
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