सोमवार, 1 जून 2015

मग ब्राह्मणों पर मुस्लिम/सामंती प्रभाव


केवल सिक्के के एक ही पक्ष को देखना वाजिब नहीं है। अपनी जाति में बाकायदा मजलिस और महफिल शब्दों का प्रयोग चलन में रहा है। अपनी जाति के भीतर हमारे कई व्यवहार ऐसे रहे, जो अन्य आम ब्राह्मणों में नहीं रहे।
चादर बिछा कर उसपर खाने का सामान रख कर एक साथ खाना एक प्रकार अनिवार्य सा था, जिससे जातीय एकता को सबके प्रति समान भाव के कारण बल मिलता था।
नई दुल्हन को एक बड़े परात में अन्य औरतों के साथ कच्चा भोजन खाना पड़ता था। भोजन के समय मौन की जगह हम तो प्रशंसा की स्पर्धा में ‘‘विनय लगाने वाले रहे ’’।
मजलिस में शास्त्रार्थ और महफिल में मनोविनोद मुख्य था। बाद में जब शादियों में ‘‘मर्याद’’ सेवा मुश्किल होने लगी तो मजलिस समाप्त हुई। महफिल आज भी चलन में है। इस समय मनोविनोद आज भी चलन में है। इस अवसर पर एक थाल से मेवा, पान, सुपारी आदि लेने में कोई छुआछूत नहीं होती। थाल जनानखाने में तो उपहार और कपड़ों के साथ आती-जाती रहती है, पर्दानशीनों की गालियों, उलाहनों और रसीले कटाक्षों के साथ। 
इन सब में कुछ न कुछ तो शुद्ध वैदिक व्यवस्था और स्मृति से अलग है ह जो हमारी पहचान और संस्कृति का भाग है।