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शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

आर्थिक पक्ष की चुनौतियां

मुझे अपनी जाति में 3 प्रकार के लोग मुख्य रूप से मिलते हैं। 
पहले वे, जो वर्तमान समय की आर्थिक चुनौतियों से संघर्ष करने में सक्षम है और व्यवसाय या सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे हैं। इनमें कुछ तो जाति के प्रति लगाव रखते हैं और संवेदनशील है लेकिन अनेक अपने को भिन्न किश्म का या विशिष्ट मानने लगे हैं। कई बार तो जाति की बात से भी चिढ़ते हैं। उन्हें जाति तब याद आती है जब विवाह करना हो या अपने पेशे में शाकद्वीपीय ब्राह्मण के रूप में अपमानित या पेशान किये जाते हैं। पहले तो अखिल भारतीय ‘‘शर्मा’’वाद चला। अब परंपरागत उपाधि तक को हटाना एक आम चलन जैसी हो गई है। 
इन्हें संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
दूसरे प्रकार के लोग वे हैं, जो कठिन संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं। इनमें से कुछ सफल भी हो रहे हैं लेकिन अधिकांश अभी भी सुविधाजनक शार्टकट और नकली अहंकार तथा दिखावे में उलझे हुए हैं। ये शादी विवाह में अधिक कर्ज में डूब कर घर की जमा पूंजी नष्ट कर रहे हैं। इसके साथ अत्यधिक ईर्ष्या के कारण किसी भी क्षेत्र के सफल व्यक्ति से संपर्क करने तक को तैयार नहीं होते। इनमें से अधिकांश सुविधाजनक प्रवेश वाले कारोबारी तथा पहचान क्षेत्र को पकड़ते है, जैसे - वकालत, मार्केटिंग, नेटवर्किंग, कवि होना, बीमा एजेंट, रियल इस्टेट एजेंट, गृह उद्योग लगाना (विपड़न हीन), पूजापाठ और ज्योतिष का काम। सच यह है कि उपर्युक्त क्षेत्रों में सफलता के लिये काफी प्रतिभा, श्रम एवं धैर्य की आवश्यकता है जबकि ये लोग इसे झटपट बड़ा बनने के साधन या हारे को हरिनाम मान कर अपनाते हैं।
इनकी सामाजिक मनोचिकित्सा की आवश्यकता है, उनका मनोबल बढ़ाना जरूरी है।
तीसरे स्तर पर वे लोग हैं, जो परम असहाय हैं। भयानक गरीबी में सब कुछ लुटा कर मरता क्या न करता कि हालात में हैं। इनकी संख्या दुर्भाग्य वश बढ़ती जा रही है। इनकी किसी प्रकार की निंदा करने की जगह अनुभवी लोगों के संरक्षण में व्यापक अभियान चला कर इन्हें संकट से निकालना चाहिये। कुछेक निशुल्क स्कूल/प्रशिक्षण केन्द्र खोलने की जरूरत है, जहां आवासीय सुविधा के साथ समाज की मुख्य धारा में एक गरीब आदमी की तरह  ही सही रहने भर की शिक्षा दीक्षा तथा आगे के संघर्ष हेतु राश्ते का तो पता चल सके। कम से कम इनकी अगली पीढ़ी को तो बचाया जा सके। निःशुल्क विवाह, जनेऊ आदि का आयोजन किया जा सकता है।

बुधवार, 14 जनवरी 2015

सावधानी का आग्रह

एक सुखद ऐतिहासिक सूचना एवं सावधानी का आग्रह
भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न ब्राह्मणों ने समय समय पर ईशाई धर्म को स्वीकार किया। कोलकाता तथा मद्रास में यह काम यूरोपीय प्रभाव या अंगरेजी सरकार के प्रलोभन वश हुआ। गोआ में जबरन धर्मांतरण कराया गया। सौगाग्य से बंगाल के कोलकाता में रहने के बावजूद ‘‘किसी शाकद्वीपी ने ईशाई धर्म नहीं अपनाया’’, यह मानना है ईशाई मिशनरियों का। देखें वेबसाइट http://joshuaproject.net/people_groups/19974/IN
इस तथ्य ने ईशाई मिशनरियों में यह चुनौती पैदा की है कि किसी प्रकार शाकद्वीपी ब्राह्मणों को ईशाई बनाया जाय। इसके लिे पहला उपाय सोचा गया है कि उन ईशाइयों को इनके संपर्क में लाया जाय जो पहले ब्राह्मण थे। ऐसे लोगों से सावधान रहें।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा

कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा: व्यक्तित्व, समाज और विडंबनाएं
पंडित जी का एक आश्रम है, उसका जीर्णोद्धार हुआ है। वहां पंडित जी की एक मूर्ति भी लगनी है। संयोग से यह इलाका 2008 से मेरा भी कार्यक्षेत्र है। वहां लगभग 65 गांवों की सिंचाई व्यवस्था में हमारा कमोबेश योगदान है। एक बड़ा संगठन भी बना जमुने-दसइन पइन गोआम समिति । 2, 3 छोटी कमिटियां भी हैं। दोनों समितियों के अघ्यक्ष हैं- श्री रामनंदन सिंह।
मगध जो कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा की जन्मभूमि और कर्म भूमि दोनों ही है, वहां के जातीय अर्थात शाकद्वीपीय समाज में इनकी चर्चा भी कम होती है, लोकप्रियता की बात क्या करें? कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा अपनी स्वतंत्र जीवन शैली तथा पीडि़त मावता के प्रति संवेदनशीलता से भरे पूरे लेकिन तिकड़म विद्या में कमजोर होने के कारण कई प्रकार के संकटों में फंसे।
सबसे बड़ी व्यथा मनुष्य को तब होती है, जब उसे वही समूह या समाज नकार दे, धोखा दे, जिसके  लिये उसने अपने को अर्पित कर दिया हो। शर्मा जी कोई विरक्त व्यक्ति तो थे नहीं, इसलिये शादी की, संतान भी हुआ और उसकी अगली पीढ़ी भी। एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से आने के कारण आजादी की लड़ाई और उसके बाद मध्य बिहार के सामंतों के अत्याचार के विरुद्ध किसान आंदोलन के अग्रणी नेता होने के कारण  उनका पूरा परिवार आर्थिक विपन्नता में संकट में फंस गया, एक तरह से बर्बाद हो गया। एक पौत्र है जो बिलकुल निराश्रित तथा पूर्णतः सर्वहारा हो कर रह गया है।
स्वजातीय लोगों ने तो उन्हें नहीं ही महत्त्व दिया। मगध में शर्मा उपाधि रखने, वामपंथी झुकाव तथा भूमिहार ब्राह्मणों के साथ आंदोलन करने के कारण पारंपरिक रूप से जनसंघी, भाजपाई मानसिकता वाले एवं ब्राह्मणविरोधी तेवर वाले सहजानंद सरस्वती के साथ मित्रता के कारण कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा जी को अनेक लोग अभी भी भूमिहार जाति का ही मानते हैं। इस प्रकार एक अवतार, एक भगवान की तरह किसी समय माने गये कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा शाकद्वीपीय ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हो कर भी इनके बीच बहुत लोकप्रिय नहीं हो सके।
उससे भी दर्दनाक वाकया तब हुआ जब भूमिहार जाति के लोगों ने इन्हें धोखा दे कर उल्लू बनाया।  पुराने गया जिले को कार्यक्षेत्र बनाये हुए श्री शर्मा जी का आश्रम नेहालपुर गांव में तब के गरीब रैयत भूमिहारों ने बनवाया था। नेहालपुर गांव गया पटना रोड पर गया से 18 किलोमीटर उत्तर में है। आश्रम आज भी है। पंडित जी को लोगों ने चुनाव लड़ने के लिये तब की वामपंथी किसान सभा अर्थात सीपीआई के प्रत्याशी के रूप में आजादी के बाद के समय इन्होंने चुनाव भी लड़ा। गरीबों का मसीहा हार गया और हराया भूमिहारों ने, वह भी राजनैतिक रूप से अत्यंत कमजोर प्रत्याशी के द्वारा। वर्ग संधर्ष पर जातीय भावना हावी हो गई। आजादी मिल गई तो स्वतंत्रता सेनानी की क्या सार्थकता? जंमीदारी अत्याचार मिटा तो कामरेड पं. यदुनंदन शर्मा की क्या सार्थकता? यहां से शिक्षा माफिया, संकीर्ण जातीयता और अपराध का गठजोड़ शुरू हुआ। यदुनंदन शर्मा ने कई स्कूल खुलवाये थे। विजयी उम्मीदवार की गौरव गाथा इस तरह गाई गई कि काबिल को मास्टर तो कोई भी बना सकता है, शत्रुघ्न बाबू तो गदहों को भी मास्टर बना देते हैं।
अयोग्य को सरकारी शिक्षक बनाने के केन्द्र बना गया और देवघर। शत्रुघ्न सिंह से यदुनंदन शर्मा हार गये, किसान आंदोलन बिखर ही नहीं समाप्त हो गया और सीपीआई कांग्रेस की पिछलग्गू बन कर रह गई।

बुधवार, 18 सितंबर 2013

यहां तो कोई जजमान या गैर नहीं है।

आज जब मैं पितृपक्ष पर बननेवाली डाक्यूमेंटरी की सूटिंग की पूर्व तैयारी में बतौर रेकी पुनपुन के घाटों तथा अन्य स्थानों पर अपनी कैमरा टीम के साथ घूम रहा था तो तो सोचा कि जरा देव,देवकुली आदि गांवों स्थानों पर जा कर देखा जाय कि वहां हाल क्या है?
मित्रों आज मैं बहुत दुखी हुआ कि धर्म का रोजगार करने पर भी मंदिर, मूर्ति, परंपरा, इतिहास किसी के प्रति न तो निष्ठा है, न जिज्ञासा। संरक्षण, सम्मान गौरव आदि की बात तो बहुत दूर की है। 1978 में देवकुली प्रांगण में जितनी मूर्तियां थीं, उनमें से शिव लिंग के अतिरिक्त मात्र एक ही मूर्ति बची है।
देव मंदिर जो सूर्य मंदिर के रूप में विख्यात है, वहां के मुख्य विग्रह को हटा दिया गया है। पिछले कुछ सालों में काले ग्रेनाइट पत्थर के मूर्ति-पीठ, स्टेज को माडर्न टाइल्स से ढंक दिया गया है। पुजारी जी अब न जाने किस धारा के प्रभाव में आ कर उस मंदिर में सूर्य की जगह ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेवों की मूर्ति बता रहे हैं। लाल एकरंगा से पूरा शरीर ढंक दिया गया है।
इस तरह के ढोंग, लालच, नासमझी जो भी कहें अततः बहुत घातक होते हैं। जजमान एवं आगत श्रद्धालु को मूर्ख मानकर मनमाना व्याख्यान, इतिहास गढ़ना एवं उपदेश का दुष्परिणाम ऐसा हुआ कि आज अपनी साधना परंपरा, कुल परंपरा, इतिहास किसी बात की पक्की जानकारी नहीं है। फेसबुक पर जो भी हैं कृपया मेरी इस पीड़ा पर एक बार गौर करें। यहां तो कोई जजमान या गैर नहीं है। इसलिये कम से कम अपनी जाति के लोगों के समक्ष धर्म एवं परंपरा के मामले में सच बोलें, यहां प्रचार करने और प्रभाव जमाने की दृष्टि न रखें। आगे आपकी जो इच्छा।

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

स्वतंत्रता और आजादी


स्वतंत्रता , ‘‘स्व’’ अर्थात अपनी ‘‘तंत्रता’’ व्यवस्था का होना यह भारतीय शब्द एवं समझ है, उसी तरह जैसे- स्वस्थ, स्वाध्याय आदि। इसमें तंत्र अर्थात व्यवस्था का भी ‘स्व’’ की तरह महत्त्व है। आजादी के लिये मुक्ति शब्द अधिक करीब है। आजादी लोगों को अधिक पसंद आती है। इसमें कोई बंधन जो नहीं हैं लेकिन दूसरे की आजादी को महत्त्व देने पर कोई न कोई व्यवस्था तो अपनानी ही होगी। आज तक की सभी व्यवस्थाओं में कोई न कोई कमी रह ही गई है क्योंकि धूर्त तथा अत्याचारी सबसे पहले व्यवस्था के भीतर ही पक्षपात को सम्मिलित कर उसे नैतिक रूप देने का काम कर देते हैं, जैसे- आज का नव उदारवादी मुक्त बाजार सिद्धांत, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सारी समस्याओं का समाधान मानना आदि। परिणाम स्वरूप वर्तमान शासन का आदर्श है इनके पक्ष में काम करना फिर चाहे हमारा तंत्र लोक तंत्र हो या कोई दूसरा।
मेरा जन्म 1959 में हुआ, आजादी के बाद, आजादी के लिये लड़ने वाले (पैत्रिक परिवार) एवं अ्रगरेजों की फौज-पुलिस में काम करने वाले जंमीदार (ननिहाल) परिवारों के बीच। इसलिये मेरे बचपन में आजादी मिलने का जोश बचा हुआ था। अपने पितामह की जेल की डायरी मेरे निजी पाठ्य पुस्तकोें में से एक थी, जो 3 खंडों में थी, पूरा मिलाकर एक समकालीन पैनोरमा क्योंकि जिला स्तरीय क्रंातिकारी नेताओं को तत्कालीन कलेक्टर से अधिक काबिल बनाने का लक्ष्य रखने वाले गुरु लोग भी जेल में होते थे। क्रांतिकारी कूप मंडूक हो यह मान्य नहीं था। ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी मेरे बाबा थे और उन्हें जेल में पढ़ाने वाले गुरु थे स्वामी विज्ञानानंद। मेरे बाबा पुराने शाहाबाद जिले के और स्वामी विज्ञानानंद पुराने छपरा जिले के।
संयोग से दोनो शाकद्वीपी ब्राह्मण थे।

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

मग ब्राह्मणों की जातीय समस्याएं


मग ब्राह्मणों की जातीय समस्याएं- बिहार, झारखंड एवं पूर्वांचल ऊत्तर प्रदेश
क्या कुछ लोग अपने-अपने संगठन की श्रेष्ठता की चिंता छोड़ कर निम्नांकित मुद्दों पर अपना सुझाव देने की कृपा करेंगे?
हम पहले भी अंदरूनी एवं बाहरी दोनों प्रकार की जातीय समस्याओं से जूझते रहे हैं और अनेक प्रकार के सुखद-दुखद अनुभव से गुजरे हैं। इस समय हमलोग सक्रिय रूप से बिरादरी के साथ संवाद कर रहे हैं। उस क्रम में जो जानकारी आ रही है, उस पर आप भी विचार कर समस्याओं के समाधान का उपाय सुझाएं और जिन बातों की हमें जानकारी नहीं है, कृपया उनसे हमें भी अवगत करायें।
समस्याएं तो सबकी होती हैं। अपने समाज के कुछ लोग विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए अपनी प्रतिभा के बल पर सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से आगे बढ़ रहे हैं किंतु काफी संख्या में अभी भी बुरी हालात में हैं और दिनानुदिन उनकी सामाजिक, आर्थिक हालात बिगड़ती जा रही है।
फिलहाल यहां केवल मग ब्राह्मणों की जातीय समस्याओं की एक सूची प्रबुद्ध एवं संवेदनशील लोगों के विचारार्थ प्रस्तुत की जा रही है। निम्नलिखित सूची में मग ब्राह्मण जाति की अंदरूनी समस्याओं के साथ बाहरी समाज द्वारा पैदा की जा रही समस्याओं को भी सम्मिलित किया गया है। इन्हंे तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-
क- पूर्णतः अंदरूनी, ख- बदलते परिवेश के साथ सामंजस्य संबंधी, ग- बाह्य दबाव/अत्याचार सबंधी

क- पूर्णतः अंदरूनी
1          अयोग्य, अकर्मण्य बने रहने की इच्छा, भीख मांगने तक पर उतारू।
2          केवल जन्म आधारित श्रेष्ठता के छिनते जाने एवं पुराना सम्मान आदर न मिलने की पीड़ा
3          खेती का मंहगा होना एवं जोत अर्थात् खेती की जमीन के बंटवारे से उत्पन्न गरीबी
4          पुरोहिती से होने वाली आमदनी में कमी, गलाकाट प्रतिस्पर्धा
5          गरीबी एवं झूठे अहंकार से उत्पन्न आपसी कलह एवं ईर्ष्या की अधिकता
6          योग, तंत्र, ज्योतिष जैसे विषयों के वास्तविक ज्ञान की जगह केवल पाखंड की बुरी आदत में बृद्धि
9          किसी भी गुरुकुल, संस्कृतिक केन्द्र के अभाव में धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक नेतृत्व का अभाव, जबकि अन्य जातियों के पास सक्रिय सामाजिक संगठन हैं।
10        कार्यक्रम विहीन जातीय संगठन एवं उनके कुछ पदाधिकारियों का स्पष्ट जाति विरोधी आचरण, इनसे तो मुझे कई बार मुकाबला तक करना पड़ गया है
11        जो लोग सरकारी या गैर सरकारी नौकरी में नहीं गये उनके बीच बढ़ती गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, पुरानी अचल संपत्ति की बेतहाशा बिक्री और अंततः भिखमंगी या अन्य अवांछित कामों में लगना।
12        शारीरिक श्रम एवं अन्य जिम्मेवारी के कामों से भागना
13        केवल ईर्ष्यावश और अहंकारवश स्वजातीय योग्य लोगों का अपमान एवं उनसे लाभ न लेना।
14        नकारात्मक माहौल में आपसी एकजुटता का अभाव, हीन भावना, नशे की प्रवृत्ति में बढ़त
15        झूठ बोलने एवं तंत्र-मंत्र के नाम पर ठगने का प्रयास और अपमानित भी होना।
16        सचमुच में विदेशी होने का भय सामाजक आरोप के उत्तर का अभाव
17        आधुनिक तकनीकी उच्च शिक्षा संपन्न शहरी लोगों में पारंपरिक पहचान छुपाने का बढ़ता आकर्षण
18        नव सुधारवादी संगठनों में शामिल स्वजातीय लोगों द्वारा ही जाति निंदा
ख- बदलते परिवेश के साथ सामंजस्य संबंधी
1          जजमानी प्रथा से कोईरी आदि जातियों की बगावत, अर्जक संघ जैसे ब्राह्मण विरोधी संध द्वारा की जा रही कटु आलोचना एवं अपमान।
2          केवल श्रद्धा आधारित कर्मकांड से समाज एवं घर दोनों स्तर पर बगावत
3          जो लोग पढ़े-लिखे भी हैं उनका स्वजातीय लोगों को छोड़ कर अन्य गैर ब्राह्मण लोगों को गुरु बनाने की चलन एवं उनसे प्रताड़ना पाना जबकि अधिक योग्य लोग अपनी बिरादरी में हैं।
4          ब्राह्मण की जन्मना श्रेष्ठता की आधी-अधूरी चलन वाली धारणा से अन्य जातियों की घृणा एवं आदर    युक्त उलझा हुआ व्यवहार
5          आयुर्वेद जैसे रोजगारपरक विषय पर पूरा सरकारी नियंत्रण, घरेलू स्तर पर बिना डिग्री चिकित्सा कार्य पर पाबंदी, आयुर्वेदिक कालेज का खर्च उठाने में असमर्थता।
6          आर्थिक/औद्योगिक समझ, नेतृत्व एवं समर्थन का अभाव
10        दान लेते रहने से दान देने की प्रवृत्ति का घोर अभाव
11        झोला छाप चिकित्सक बन कर गैर कानूनी काम के कारण डरते रहना।
12        पूंजी एवं सामाजिक समर्थन के अभाव में सरकारी ठेके-पट्टे के काम में न लग पाना
14        आधुनिक तकनीकी उच्च शिक्षा संपन्न शहरी लोगों में अंतर्जातीय विवाह का बढ़ता आकर्षण
15        एक ओर आधुनिक बन कर अंतर्जातीय विवाह और दूसरी ओर जातीय संगठनों में नेता बनना
16        जाति के लोगों के प्रति ही हिंसा, व्यभिचार आदि अपराधी प्रवृत्तियों में लगे लोगों को गौरवान्वित करना, मजबूरन मुझे कई बार विरोध करने एवं उनका प्रकोप सहने का दंड भोगना पड़ा, इनके विरुद्ध जातीय संगठनों द्वारा कारवाई न करना। जातीय समाज के कड़े विरोध के बावजूद उन्हें पदाधिकारी बनाये रखना।
17        पारंपरिक उपासना को बिना जाने ढांेग कहना और विजातीय पाखंडियों का पैर पूजना
ग- बाह्य दबाव/अत्याचार सबंधी
1          गरीबी के कारण ताकतवर लोगों द्वारा अपमानपूर्ण व्यवहार एवं प्रताड़ित किया जाना
2          मुख्यतः भूमिहार एवं कहीं-कहीं यादव जाति के द्वारा अचल संपत्ति हरण करने के षडयंत्र एवं दबाव बनाकार बहुत कम कीमत में जमीन-जायदाद हड़प लेना।
3          विशेषकर आचारी संप्रदाय में सम्मिलित भूमिहारों द्वारा धन-जमीन, ईज्जत-आबरू सब कुछ नष्ट करने हड़पने का सुनियोजित एवं अति क्रूर अभियान। एक प्रकार से सर्वनाश कर देने की हद तक का प्रयास।
4          साम, दाम, दंड, भेद हर संभव उपाय से घर में घुसने का प्रयास एवं जबरन भी गुरु एवं पुरोहित बनने का प्रयास। बकुली डंडे से पीटने तक की घटनाएं। मुख्य रूप से एक भूमिहार साधु के द्वारा।
5          जबरन स्वयं को श्रेष्ठ बता कर ब्राह्मण भोजन में सम्म्मिलित होने का दबाव बनाना, अन्यथा हर प्रकार से तंग करना।
6          विभिन्न जातियों द्वारा अनेक गांवों में मतदान नहीं करने देना।
7          बी.पी.एल. कार्ड नहीं बनाया जाना।
8          कमजोर होने पर बटाईदार द्वारा फसल में हिस्सा नहीं दिया जाना।
9          गांव की दबंग जाति से अनेक मामलों में डर-डर कर जीना या बगावत कर नक्सली संगठनों की शरण में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चले जाना।
सकारात्मक प्रवृत्तियां/घटनायें
1          जजमानी छोड़ने वाले लोगों का दूसरे पेशे में जाना और आर्थिक रूप से मजबूत होना
2          अन्य कमजोर जातियों के साथ हो भूमिहारों से मुकाबले का प्रयास किंतु यादवों के मामले में विफल
3          दुकानदारी एवं अन्य रोजगारों में शामिल होना, खाश कर बाजार वाले गांवों में
4          नई पीढ़ी का संवेदनशील एवं संधर्षमुख होना।
5          राजनैतिक चेतना में अभिवृद्धि, कुछ लोगों की उल्लेखनीय आर्थिक व्यावसायिक सफलता।
6          अगली पीढ़ी को मुख्य धारा में लाने की कोशिश
9          स्त्री शिक्षा में जोरदार विकास एवं लड़कियों का भी नौकरी पेशे में आना
10        धर्म एवं योग साधना के रहस्यों को पुनः जानने की कोशिश
11        अखिल भारतीय स्तर पर एकजुट होने का प्रयास
12        सरकारी नौकरी न मिलने पर भी निजी उद्यमों में पर्याप्त संख्या में सेवारत होना
क्षमा प्रार्थना
मैं एक दो बार राजस्थान गया। शहर एवं गांव को समझने का प्रयास किया। वहां की समस्याएं थोड़ी भिन्न हैं। अभी मैं उन्हें ठीक से समझ नहीं सका हूं अतः उन पर टिप्पणी करना उचित नहीं है।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

आयोग के सदस्य

आयोग के सदस्य

मित्रों,
बिहार सरकार ने गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए आयोग का गठन कर दिया है और विभिन्न प्रमंडलों में सूचना/विचार संग्रह करने हेतु आयुक्त/पदाधिकारियों की नियुक्ति भी कर दी है।
आरंभिक जनकारी के अनुसार----
माननीय जस्टिस बी के त्रिवेदी - अध्यक्ष 04515152086
इंजी. नरेन्द्र कुमार सिंह - सदस्य 993163095 कोशी एवं पूर्णिया प्रमंडल के लिये
श्री कृष्ण सिंह - सदस्य मुंगेर प्रमंडल हेतु
श्री संजय मयूख - सदस्य
मुहम्मद अब्बास - सदस्य
सदस्यों का कार्य क्षेत्र बदल भी सकता है।

गांधी स्मारक के सामने गांधी मैदान, पटना में धरने पर


गांधी स्मारक के सामने गांधी मैदान, पटना में एक दिन के उपवास-धरने पर बैठे श्री श्यामनंदन मिश्र एवं अन्य
इसी दिन औरंगाबाद, बिहार में जनता दरबार में मुख्य मंत्री से मिल कर शाकद्वीपी ब्रहा्मणों को आरक्षण देने के लिये श्री गुप्तेश्वर पाठक ने स्माार पत्र दिया

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

श्री श्यामनंदन मिश्र
अघ्यक्ष, गरीब ब्राह्मण महासंघ, मगध प्रमंडल
प्रवक्ता, शाकद्वीपी ब्राह्मण समिति, बिहार

पत्रांक दिनांक 28.12.2011


प्रेस विज्ञप्ति

सेवा में
ब्यूरो चीफ/सवाददाता

माननीय श्री ताराकांत झा, माननीय श्री अश्विनी कुमार चौबे एवं अन्य अनेक राजनीतिज्ञ अचानक गरीब ब्राह्मणों को आरक्षण देने के विरुद्ध बोल रहे हैं। यह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। वर्तमान सरकार के हम तो आभारी हैं कि गरीब सवर्णों की ओर भी सरकार का ध्यान गया है और गरीब सवर्णों के लिये भी आयोग का गठन हो गया है। ऐसी स्थिति में केवल गरीब ब्राह्मणों को आरक्षण नहीं दिये जाने का क्या औचित्य है? उससे भी गंभीर बात यह है कि जो स्वयं क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं वे पिछड़े एवं गरीब ब्राह्मणों को आरक्षण दिये जाने का विरोध केवल चापलूसी की दृष्टि से कर रहे हैं। क्या अन्य सवर्ण जातियों ने आरक्षण न लेने की मांग की है? फिर केवल ब्राह्मण ही क्यों?
हम सभी पिछड़े एवं गरीब ब्राह्मण माननीय मुख्य मंत्री के निर्णय का स्वागत करते हुए स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऐसे लोग जो किसी भी पद पर क्यों नहीं आसीन हों वस्तुतः न तो गरीबों के शुभ चिंतक हैं न ही ये हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः श्रीमान इनकी बातों पर ध्यान न देते हुए पिछड़े एवं गरीब सवर्णों के लिये बने आयोग को आगे बढ़ायें और गरीब ब्राह्मणों को उन्हें आरक्षण पाने के हक से वंचित न करें।
धन्यवाद

श्यामनंदन मिश्र
ग्राम एवं पोस्ट पीरू, हसपुरा, औरंगाबाद,बिहार

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

गरीब ब्रह्मणों को सरकार के द्वारा आरक्षण दिया जाना ठीक नहीं लग रहा है

बिहार के बड़े बड़े नेताओं को गरीब ब्रह्मणों को सरकार के द्वारा आरक्षण दिया जाना ठीक नहीं लग रहा है। मुख्य मंत्री की चापलूसी में उन्हों ने ब्रहृम् णें को आरक्षण देना और ब्राहृमणें द्वारा आरक्षण मांगा जना अनुचित बताया हैं दरसल ये सभी लोग संपन्न एवं क्रीमी लेयर वाले हैं। गरीब ह्राहृमण संघ आदि ने इसकी निंदा की है।
Shri Shyam nandan Mishra, Pravakta, Shakdweepiya brahman Samiti, Bihar

रविवार, 25 दिसंबर 2011

गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए आयोग का गठन

मित्रों,
बिहार सरकार ने गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए आयोग का गठन कर दिया है और विभिन्न प्रमंडलों में सूचना विचार संग्रह करने हेतु आयुक्त/पदाधिकारियों की नियुक्ति भी कर दी है।
कृपया अपने स्तर से समाज के आर्थिक पिछड़ेपन से संबंधित सूचना संकलित कर अपने पंमंडल में नियुक्त आयुक्त को उपलब्ध कराने का कष्ट करें।

शनिवार, 10 सितंबर 2011

मग-भोजक संगठनों की अंदरूनी हालात Post1

मग-भोजक लोगों के अनेक संगठन बनते बिगड़ते रहे हैं। इन संगठनों की अंदरूनी हालात चाहे जो भी हो उनके द्वारा व्यक्त विचारों से भी बहुत कुछ जाना जा सकता है। मैं ने उनसे पूछ कर उनके द्वारा प्रकाशित सामग्री बिना अपनी टिप्पणी के स्कैंड रूप में डालने का सिलसिला इस बार से शुरू किया है। एकाध पृष्ठ मुखपृष्ठ पर और शेष इसी ब्लाग के ‘‘संगठन एवं राजनीति’’ नामक स्वतंत्र पृष्ठ पर क्लिक कर और स्कैंड पृष्ठ पर डबल क्लिक कर पढ़ें


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