शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

आर्थिक पक्ष की चुनौतियां

मुझे अपनी जाति में 3 प्रकार के लोग मुख्य रूप से मिलते हैं। 
पहले वे, जो वर्तमान समय की आर्थिक चुनौतियों से संघर्ष करने में सक्षम है और व्यवसाय या सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे हैं। इनमें कुछ तो जाति के प्रति लगाव रखते हैं और संवेदनशील है लेकिन अनेक अपने को भिन्न किश्म का या विशिष्ट मानने लगे हैं। कई बार तो जाति की बात से भी चिढ़ते हैं। उन्हें जाति तब याद आती है जब विवाह करना हो या अपने पेशे में शाकद्वीपीय ब्राह्मण के रूप में अपमानित या पेशान किये जाते हैं। पहले तो अखिल भारतीय ‘‘शर्मा’’वाद चला। अब परंपरागत उपाधि तक को हटाना एक आम चलन जैसी हो गई है। 
इन्हें संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
दूसरे प्रकार के लोग वे हैं, जो कठिन संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं। इनमें से कुछ सफल भी हो रहे हैं लेकिन अधिकांश अभी भी सुविधाजनक शार्टकट और नकली अहंकार तथा दिखावे में उलझे हुए हैं। ये शादी विवाह में अधिक कर्ज में डूब कर घर की जमा पूंजी नष्ट कर रहे हैं। इसके साथ अत्यधिक ईर्ष्या के कारण किसी भी क्षेत्र के सफल व्यक्ति से संपर्क करने तक को तैयार नहीं होते। इनमें से अधिकांश सुविधाजनक प्रवेश वाले कारोबारी तथा पहचान क्षेत्र को पकड़ते है, जैसे - वकालत, मार्केटिंग, नेटवर्किंग, कवि होना, बीमा एजेंट, रियल इस्टेट एजेंट, गृह उद्योग लगाना (विपड़न हीन), पूजापाठ और ज्योतिष का काम। सच यह है कि उपर्युक्त क्षेत्रों में सफलता के लिये काफी प्रतिभा, श्रम एवं धैर्य की आवश्यकता है जबकि ये लोग इसे झटपट बड़ा बनने के साधन या हारे को हरिनाम मान कर अपनाते हैं।
इनकी सामाजिक मनोचिकित्सा की आवश्यकता है, उनका मनोबल बढ़ाना जरूरी है।
तीसरे स्तर पर वे लोग हैं, जो परम असहाय हैं। भयानक गरीबी में सब कुछ लुटा कर मरता क्या न करता कि हालात में हैं। इनकी संख्या दुर्भाग्य वश बढ़ती जा रही है। इनकी किसी प्रकार की निंदा करने की जगह अनुभवी लोगों के संरक्षण में व्यापक अभियान चला कर इन्हें संकट से निकालना चाहिये। कुछेक निशुल्क स्कूल/प्रशिक्षण केन्द्र खोलने की जरूरत है, जहां आवासीय सुविधा के साथ समाज की मुख्य धारा में एक गरीब आदमी की तरह  ही सही रहने भर की शिक्षा दीक्षा तथा आगे के संघर्ष हेतु राश्ते का तो पता चल सके। कम से कम इनकी अगली पीढ़ी को तो बचाया जा सके। निःशुल्क विवाह, जनेऊ आदि का आयोजन किया जा सकता है।

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