मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

मुझे लगता है

मुझे लगता है
कि ज्ञान से अधिक अज्ञान की ओर लोगों का झुकाव होता है यदि उसमें सुविधा एवं सामाजिक स्वीकृति हो। जो समाज सदैव यहां से वहां दूर दूर तक रोजी रोजी रोटी के लिये टहल रहा हो, उस पर संकट झेल रहा हो, वह आसानी से समझौते कर लेगा। पहले भी अनेक प्रकार के समझौते हुए ऐसा लगता है। दबी जुबान से खबर भी मिलती ही है।
पहले मगध/दक्षिण बिहार को केन्द्र मान कर पुर व्यवस्था लागू हुई। इसमें गोत्र की जगह ग्राम व्यवस्था को प्रधानता दी गई।
जैसे ही मगध के बाहर जाना हुआ वहां के स्थानीय लोगों के साथ अपनी संगति की चुनौती खड़ी हुई जो संख्या में अधिक रहे और आज भी हैं। जब व्यापक रूप से पास पड़ोस के लोग गोत्र व्यवस्था मान रहे हों तो आप ब्राह्मण भी रहें और गोत्र में शादी करें तो लोगों की टिप्पणी तो झेलनी ही होगी। कोढ़ में खाज की तरह पुरों के भीतर 6 कुल और 10 कुल तथा उनसे बचे कुलों की श्रेष्ठता के प्रयोग ने पुराने गोंडा बहराइच मुख्यतः गोंडा जिले के लोगों में बगावत खड़ी कर दी।
इस इलाके लोगों ने एक समय गंभीर आर्थिक संकट और पड़ोसी जिलों के लोगों के बहिष्कार और उनके द्वारा हीन माने जाने का दंश झेला। उस समय उन्होंने 4 रास्ते चुने-
1 अच्छे रसोइए का काम और वह भी लगभग सभी प्रतिष्ठित रजवाड़ों तथा रेल आदि सरकारी सेवाओं में।
2 पूरब में अर्थात बिहार में विवाह जहां 6 कुल और 10 कुल तथा उनसे बचे कुलों की श्रेष्ठता की समस्या नहीं थी।
3 आधुनिक शिक्षा तथा सेवाओं में अगली पीढ़ी को डालना।
4 और सीधे पुर व्यवस्था से ही बगावत कर गोत्र व्यवस्था लागू करना।
इन जिलों ने दूर दूर तक जा कर जो झेला वही आज दूर देश नासैकरी करने वाले झेल रहे हैं। कौन अपने से दूसरों को कैसे समझाए कि यह पुर व्यवस्था है क्या? एक तो दूसरे द्वीप का बताने की समस्या दूसरी गोत्र की जगह पुर का संकट। जब कि यह समझ भी न हो कि पुर का मतलब क्या है? इस प्रकार पुर छूटता चला गया।
मैं मगध वासी हूं, इससे क्या? उरवार हुआ तो कौन सा बड़ा तोप हो गया? अयोध्या के आसपास जहां षट्कुल चल रहा था वहां कुछ झूठे अहंकार की तुष्टि हो सकती थी। अब कहीं नहीं।
लोगों को गोत्र वाली पहचान अधिक व्यापक और सुविधा जनक और वैदिक किश्म की लगती है। मुझे लगता है आगे यही टिकेगी। गोत्र को छोड़ने पर पुर स्वतः छूट जाता है। लोग विवाह नहीं करने वाले दायरे को ही बढ़ाएंगे असली सुविधा छोड़ अज्ञान मतलब पुर का ज्ञज्ञन/स्मरण न रखने की मानसिक सुविधा को ही पसंद करेंगे। कौन जानता है आगे क्या होगा। यह तो मेरा बस एक अनुमान ही है।