मेरे बारे में

पाठकों से निवेदन

मेरा परिचय
मैं कोई महान आदमी नहीं हूं। इसलिये अपना परिचय देना जरूरी है और यह संस्कृति का एक हिस्सा भी है। इस उदाहरण से आप अपनी भी पहचान संबंधी जानकारी को पूरा कर सकते हैं और यह पता कर सकते हैं कि समसामयिक कारणों से आज आपकी पहचान क्या है?
इस पहचान में महाभारत कालीन या हजार दो हजार वर्ष पुरानी बातें सम्मिलित नहीं की गयी हैं। इसमें वे बातें हैं, जिनका मेरे घर-परिवार की पिछली कुछ पीढ़ियों एवं वर्तमान पीढ़ियों पर असर है।
सामाजिक परिचय
नाम रवीन्द्र कुमार पाठक वय 51वर्ष पेशा अध्यापन अभिरुचि समाजसेवा एवं लेखन
पिता श्री राम शंकर पाठक वय 77 वर्ष पेशा खेती अभिरुचि समाजसेवा
पितामह स्व. विन्ध्येश्वरीप्रसाद पाठक 85 वर्ष में स्वैच्छिक सजग मृत्यु क्रंातिकारी, साधक, वैद्य
भाई 3 वैज्ञानिक, प्रबंधक, पत्रकार। हम सभी का पूर्व पेशा खेती
पुत्र सॉफटवेयर इंजीनियर
मातृभाषा - भोजपुरी एवं मगही, जिला - भोजपुर, बिहार
शिक्षा आचार्य, एम.ए संस्कृत एवं पालि पी.एचडी - संस्कृत
अघ्यक्ष पालि विभाग - एस.बी.ए.एन. कालेज, दरहेटा-लारी, कुर्था, जिला अरवल - बिहार

सनातनी स्मार्त धर्म के अनुरूप परिचय
पुर-उरवार, गोत्र-भारद्वाज, वेद- उपवेद- धनुर्वेद एवं आयुर्वेद
पुराना पेशा- धनुर्वेद एवं आयुर्वेद के साथ खेती सहायक पेशा पौराहित्य
ग्राम देवी प्रसिद्ध यक्षिणी अंधारी, इन्हीं के नाम पर मेरे गांव का नाम अंधारी है।
भोजन: 5 पीढ़ी पहले मांसाहारी अब शाकाहारी, रामानंदी वैष्णव धारा के प्रभाव में

तांत्रिक परंपरा का परिचय (सभी उरवार लोगों के लिये)
कुलदेवी -सिद्धेश्वरी कुलदेव -प्रचंड भैरव सिद्धनाथ वर्ग - विष्णुक्रांता वर्ग
कुलतीर्थ सिद्धनाथ पीठ, बराबर पर्वत
साधना पद्धति - सिद्धेश्वरी पटल
कुल का बीज मंत्र ‘अ’कार, साधना क्रम- संहार क्रम, अर्थात चेतना को स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाने की विद्या की साधना। क्षुद्र सिद्धियों एवं षट्कर्म की साधना निषिद्ध।
अघिकार तंत्र की सभी सूक्ष्म विद्याओं की साधना का अधिकार न कि किसी एक का संरक्षण या प्रयोग। दायित्त्व - बिना भेदभाव हर तांत्रिक धारा के साधकों की सेवा एवं मार्ग भ्रष्ट लोगों की मनोचिकित्सा

उरवार लोगों में प्रचलित अन्य विग्रह - नरसिंह
पुर आधारित स्वभाव - परिश्रमी, पराक्रमी
अवगुण- क्रेधी, कठोर वक्ता, कभी-कभी कंजूस, धन संचय करने पर भी ताव खाकर संपत्ति नष्ट करने वाला


इसी प्रकार आपका भी परिचय होगा आप भी पता करें । आपकी अपनी कुल परंपरा के अनुरूप शास्त्र सम्मत साधना संबंधी पारंपरिक साहित्य की अगर आप को जानकारी नहो तो आप अपनी आधी-अधूरी जानकारी भेजें मैं उसे पूरा करने का प्रयास करूंगा। आज अपनी परंपरा की जानकारी न होने से लोग इधर-उधर भटकते हैं। अपनी परंपरा के अनुरूप साधना करने में सुविधा होती है। कुछ लोगों की परंपरा अति गोपनीय होती है। उन्हें अपनी कुल परंपरा के लोगों से सीखना चाहिये।



मैं पिछले तीस सालों से मगध क्षेत्र एवं मग संस्कृति को समझने-जानने में लगा रहा। स्वयं मग होने, संस्कृत, पालि, प्राकृत भाषाओं का परंपरागत छात्र होने, तथा मगध क्षेत्र में ही सेवारत होने के कारण इस काम में सुविधा भी रही। वर्तमान भोजपुर जिला (बिहार) का ग्रामवासी होने तथा काशी अध्ययन के दौरान अन्य लोगों के आक्षेप आदि का मैंने सामना किया और यथा संभव गहराई में जाकर समझने का प्रयास किया। गाँव-गाँव घूमा, विद्वानों से चर्चा की।
इस क्रम में सामग्री तो बड़ी मात्रा में इकट्ठी हो गई फिर भी वह पर्याप्त है, ऐसा मैं नहीं कह सकता। इस सामग्री के बल पर मैंने ‘मग-संस्कृति’ नामक ब्लाग लिखना शुरू किया है, लिपिबद्ध सामग्री, छाया चित्र, वीडियो क्लिप चार्ट आदि के रूप में धीरे-धीरे 2-3 महीनों में 500 से 1000 पेज की सामग्री आपके पास पहुँच सकती है। पढ़ने के साथ ही साथ इसका पूरा सदुपयोग करने की आपको छूट है। कुछ मुझसे छूटा है, तो बताएँ ताकि मिल-जुलकर पूरा किया जा सके। केवल कपोल कल्पना या निराधार चमत्कारी बातों को प्रामाणिक बताने की हिम्मत मुझमें नहीं है। अतः सांब-भविष्य आदि पुराणों के आख्यान के अतिरिक्त इस तरह की नई कथा के लिए क्षमा करेंगे।
आपसे निवेदन है कि कृपया यह अवश्य बताएँ कि इस ब्लाग में और क्या जोड़ा जाना चाहिए और क्या गलत है? क्या सुधार अपेक्षित है?


संक्षिप्त परिचय

डॉ. रवीन्द्र कुमार पाठक
साहित्याचार्य, एम. ए. संस्कृत एवं पालि, पीएच. डी. संस्कृत
जन्म तिथि 25.09.1959 ईशवी
अध्यापक, लेखक एवं समाज सेवी
विविध भारतीय पारंपरिक लोक विद्याओं की सेवा में संलग्न
गया आवास- एम.आई.जी.87, पुरानी हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, गया, पिन-823001, बिहार
पफोन 0631-2430162, मो. 09431476562
सेवा एवं शोध अनुभव
अध्यक्ष, पालि विभाग
एस.बी.ए.एन.कॉलेज. दरहेटा-लारी, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार
पूर्व व्याख्याता
स्नातकोत्तर पालि विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार
मगध वि0 वि0 में अध्यापन सेवा आरंभ की तिथि 5. 10. 1983
निज शोध प्रबंध का शीर्षक
न्यायसिद्धांततत्त्वामृतम् एक समीक्षात्मक अध्ययन, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
शोध निर्देशन एवं शोध प्रबंध के शीर्षक
1 समन्तपासादिका में वर्णित सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का
आलोचनात्मक अनुशीलन कृष्णदेव प्रसाद वर्मा
2 मत्स्य पुराण में वर्णित भूगोल एवं प्रकृति-चित्रण अरविन्द कुमार पाण्डेय

सामाजिक सेवा कार्य
1 सचिव, भारतीय पालि, बौद्ध विद्या सभा
प्छक्प्।छ ब्व्छळत्म्ैै व्थ् च्।स्प् ।छक् ठन्क्क्भ्प्ैज् ैज्न्क्प्म्ैए अशोक नगर, गया-823001, बिहार
2 संयोजक, मगध जल जमात
3 सचिव, मेधा न्यास, गया

पूर्व सचिव
1 बाणभट्ट संगीति, प्रीतिकूट ;पीरू, हसपुरा, औरंगाबाद
2 सामाजिक स्वास्थ्य संघ, जिला शाखा, गया
3 क्षेत्रिय सचिव, लोकविद्या महाधिवेशन,1996, राजघाट, वाराणसी,

लेखन एवं संपादन
पूर्व में संपादन:
अबके नारद, हिन्दी-संस्कृत व्ंयग्य मासिक पत्रिका, 1981से 1983
गीता वचन सुधाा
हनुमान चालीसा- गोष्ठी टीका
बोधि, बौद्ध विद्या शोध पत्रिका, स्नातकोत्तर पालि विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार


प्रकाशित पुस्तकें
वर्ष मूल्य/सहयोग राशि
1. योग और आप: योग साधना के पूर्व 2002 स्वैच्छिक
2. निरंजना 2005 100/
3. मगध की रहस्यावृत साधना संस्कृति 2006 100/300
4 मगध की जल व्यवस्था 2007 स्वैच्छिक
5. लोक विद्या विचार ; प्रकाशित/ सह लेखन,
लोकविद्या प्रतिष्ठा अभियान, वाराणसी। 2000
6 आयुर्वेद के ज्वलंत प्रश्न 2010 90/00
प्रकाशन, विभाग भारत सरकार


प्रकाशनार्थ संपूर्ण
1 रति-सुरति: काम ऊर्जा का विन्यास एवं विकास; संस्कृत सूत्र एवं हिन्दी व्याख्या
2 न्यायसिद्धांततत्त्वामृतम् एक समीक्षात्मक अध्ययन
3 मनमोदकालय ;
लेखक द्वारा रचित एवं आकाशवाणी के विविध केन्द्रों से प्रसारित संस्कृत तथा हिन्दी में हास्य रूपकों का संकलन
4 उल्लू का धमकी पत्र ;हास्य-व्यंग्य कविता संग्रह
अन्य पुस्तकों का लेखन/अनुवाद कार्य जारी
1 सेकोद्देश - बौद्ध तंत्र अनुवाद
2 पालि व्याकरण की पारिभाषिक पदावलियाँ,
सहलेखन प्रो. ब्रजमोहन पाण्डेय ‘नलिन’ के साथ
3 पानी के मूल प्रश्न (निबंध संग्रह)
4 वराह मिहिर की उदकार्गला (जल विद्या): एक प्रायोगिक अघ्ययन
संस्कृत श्लोक, हिन्दी व्याख्या एवं प्रायोगिक अघ्ययन के निष्कर्षों के साथ
5 संस्कृति समन्वय सूत्र, सूत्र लेखन संपन्न, व्याख्या लेखन जारी
8 ठंेपब व िज्ंदजतं
9 संगीत और रसानुभूति के विविध घटक
अन्य लेखन कार्य
विस्तृत विवरण अलग से उपलब्ध

2 टिप्‍पणियां:

Dr. VIJAY PRAKASH SHARMA ने कहा…

RAHIMAN HEERA KAB KAHE, LAAKH TAKA MUM MOL.

Pankaj sharma ने कहा…

रहिमन हीरा कब कहे,लाख टका मुम मोल
अर्थात जिस प्रकार हीरा कभी भी यह नहीं कहता कि मेरा मोल लाख रुपये है।
उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति कभी भी अपनी प्रसंशा स्वयं नहीं करता।