शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के इतिहास पर मुक्त चर्चा

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के इतिहास पर मुक्त चर्चा
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के इतिहास पर मुक्त चर्चा के लिये मैं ने अपने ब्लाग पर एक पेज बना दिया है- इतिहास पर चर्चा। आप अपनी सारी सूचना, जिज्ञासा, समझ एवं सवाल इस पेज पर टिप्पणी के रूप में रख सकते हैं। मुझे इतना ही तकनीकी ज्ञान है। अगर आपके पास कोई उत्तर हो तो और खुशी। व्यक्तिगत निंदा के अतिरिक्त कोई भी टिप्पणी हटाई नहीं जायेगी।


शाकद्वीपी ब्राह्मण बिरादरी के इतिहास जानने की मुख्य दुविधाएं/उलझनें
तथ्य नहीं मिल रहे, सूचनाएं अधूरी हैं। कथाएं प्रतीकात्मक हैं या सच्ची? हमारा अतीत गौरवशाली है या कलंकित? दूसरों को क्या कहें? क्या अपनी अगली पीढ़ी को पुरानी घटनाओं को उसी रूप में बताना जरूरी है। इससे बदनामी नहीं होगी? दूसरे लोग अपने ऊज्ज्वल पक्ष की ही चर्चा करते हैं तो हमें अपने काले पक्ष को क्यों सामने लाना चाहिये आदि प्रश्न पिछले 40 सालों से मैं झेल रहा हूं। ये संक्षेप में नीचे प्रस्तुत हैं-
दुविधाएं-
1 सच्चा इतिहास या मनोनुकूल इतिहास? केवल पुराण आधारित या अन्य पर भी?
2 राज्यसत्ता समर्थक या लोकसत्ता समर्थक?
3 वैदिक या अवैदिक?
4 भारतीय या विदेशी?
उलझनें-
1 शाकद्वीप की भौगोलिक स्थिति - ईरान, वर्मा, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, भारत का ही कोई क्षेत्र? आखिर कहां?
2 पुराने ईरानी ‘मगी’ एवं भारतीय ‘मग’ एक ही या भिन्न?
3 आर्य या आर्येतर?
4 शाकद्वीपी क्या शक हैं?
5 शाकद्वीपी, शाकिनी, शाकम्भरी, शकसंवत्, शकसेन वंश, सक्सेना उपाधि के बीच क्या संबंध हैं?
6 सूर्यपूजक से वैष्णव एवं शैव-शाक्त तांत्रिक बनने की एंतिहासिक प्रक्रिया एवं कारण
7 दो प्रमुख शाकद्वीपीय ब्राह्मण समूहों की पहचान की भिन्नता एवं आपसी रक्त संबंध का न होना। यही हाल कुछ अन्य छोटे समूहों का जो अब अपनी पहचान भी बदल चुके हैं। मगों के द्वारा अपने निजी उपयोग, रक्त संबंध के लिये अन्य भारतीय जातियों में प्रचलित मूलग्राम व्यवस्था के अनुसार पुर (गांव) आधारित पहचान तथा बाहरी तौर पर पूजा पाठ आदि के लिये वैदिक ऋषि गोत्र  को अपनाया जाना और भोजकों द्वारा खाप व्यवस्था के आधार पर सगोत्रता का निश्चय।
8 प्रत्यक्ष सूर्यपूजा के विवरण से मगों की खोज। यह तो सर्वप्रचलित है। मगों का इतिहास तो सूर्यप्रतिमा एवं मंदिर के निर्माण से शुरू होता है। सूर्य प्रतिमा की दो प्रमुख शैलियों मानवीय, कमलासन  वाला, जूता कोट धारी रूप और रथस्थ सप्ताश्व रूप का ऐतिहासिक कारण एवं आधार।
9 सौर तंत्र एवं चिकित्सा से ज्योतिष तथा आयुर्वेद तक की यात्रा क्रम। भारत में बसने के बाद जीविका में आये बदलाव के समय एवं कारण। आयुर्वेद या ज्योतिष के प्रणेता किसी भी ऋषि को शाकद्वीपियों के भारत आने के पहले के पूर्ववृत्त में वर्णित न होना। ऐसी किसी भी पारंपरिक कथा का अभाव। प्रश्न खड़ा होने पर झूठी एवं नई कथा कह देने से वह इतिहास नहीं बन जाती।
इतिहास एवं पुराण की दृष्टि की उलझन
इस विंदु पर मैं ने एक पूरा लेख ही ब्लाग में डाल रखा है। पौराणिक कथा, घ्वनि साम्य के आधार पर या मनमाने ढंग से अब तक उपलब्ध सूचनाओं, संदर्भों को बिना मिलाये जो लोग इतिहास ढूंढने की बात करते हैं उन्हें पता नहीं कि वे क्या समस्या पैदा कर रहे हैं। यह तो बस वैचारिक हुड़दंग है।
इतिहास ढूंढ़ने का तरीका
इतिहास को आदि से आज और आज से आदि दोनों प्रकारों से खोजा जा सकता है। कडि़यां इतनी टूटी है कि आरंभ में सभी संभावनाओं को एक़त्र कर तब मिलान करने का प्रयास करना चाहिये। सामग्री संकलन की जगह झटपट निष्कर्ष अनेक विसंगतियां पैदा करेगा जिसकी पीड़ा पूरे समाज को झेलनी पड़ेगी। किसी भी भारतीय जाति का इतिहास पूर्णतः तर्क आधारित या सदैव गौरव शाली वाला नहीं है तो हम डर कर उलटा-पुलटा काम क्यों करें?
उपलब्घ सामग्री
आदि से आज- महाभारत काल से आज तक
आज से महाभारत काल तक
क महाभारत काल से आज तक की ओर के इतिहास की स्रोत/सामग्री-
भविष्य पुराण एवं अन्य सभी पुराण, सांब सूर्य एवं सौर पुराण, अवेस्ता के मगी वाले संदर्भ, बायबिल का मगी वाला संदर्भ, धर्मशास्त्रीय ग्रंथों उल्लेख, नालंदा का इतिहास, विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण, कहीं पक्ष कहीं विपक्ष आदि।
आज से महाभारत काल तक की ओर के इतिहास की स्रोत/सामग्री-
पुरों, गोत्रों के चार्ट, वंशावलियां, डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के रिपोर्ट,शिलालेख, स्तम्भ लेख आदि।
अनुपूरक सामग्री / सेकेंडरी सोर्सेज Secondary Sources
विभिन्न लेखकों के निजी विचारों वाली पुस्तकें लेख वगैरह-
1 मगोपाख्यान कई पहला पं बृहस्प्ति पाठक बाद में अन्य लेखकों के संस्करण
2 मग तिलक एवं समान नामवाली पुस्तकें पं सभानाथ पाठक एवं अन्य
3 डॉ. मंजु गीता राय की पुस्तक
4 प्रो. बी.एन.सरस्वती की पुस्तक
5 उड़ीसा के संघर्ष वाली पुस्तक
6 स्वजातीय संगठनों एवं संस्थाओं द्वारा प्रकाशित स्माारिकाएं/पत्रिकाएं
7 वीकीपीडिया के मनमौजी लेख
8 अन्य वेबसाइटों पर डाली गई सामग्रियां
जो लोग भी इतिहास चर्चा में शामिल होना चाहें उनका स्वागत है। ये सूचनाएं एवं वर्गीकरण केवल आपकी सुविधा के लिये हैं। अगर कोई आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति/संगठन बिखरी हुई सामग्री को एकत्र संकलित कर उसे प्रकाशित करने का बोझ उठाते तो समाज के लिये बड़ा योगदान होता। चूंकि सारी सामग्री इंटरनेट पर उपलब्घ नहीं है। इस लिये क्षेत्र भ्रमण आदि की आवश्यकता है। अतः लाख उत्साही होने पर भी यह काम एक दो लोगों के वश का नहीं है। इसमें कुछ लाख रुपयों की आवश्यकता तथा समय देने की भी जरूरत है। मैं भी अपने स्तर से यथा संभव प्रयास कर रहा हूं।
कुछ लोग सामग्री संकलन की जगह झटपट निष्कर्ष के मूड में रहते हैं। इस तरह तो हम अपनी ही आंखों में धूल झोंकते हैं। प्रयास करने पर क्या पता कितनी उलझनें सुलझ जायं। समाधान मिल जायं। मेरे पास न तो कोई बना बनाया गौरवशाली निष्कर्ष है, न कोई दावा।

इतिहास की जानकारी और समझ जितना जरूरी है, उससे अधिक जरूरी है उसका प्रामाणिक होना। गौरवशाली इतिहास के आकर्षण में अपनी अगली या वर्तमान पीढ़ी को भ्रामक जानकारी देना एक प्रकार से अपराध है। पुराने समय का कोई भी आदमी कितना भी विख्यात क्यों न हो, केवल अंदाजेबयां वाले तर्ज पर उसे अपना साबित करना ठीक नहीं है। इसलिये मग संस्कृति ब्लाग पर केवल प्रामाणिक जानकारी ही दी जाती है और आप सभी पाठकों से भी निवेदन है कि संदर्भ सहित प्रामाणिक इतिहास से इसे भरा-पूरा करने में मेरी मदद करें।
मगध में पैदा होने या पुराना नाम होने से कोई दावा सिद्ध नहीं होता। अभी तक जिन नामों का आकर्षण है, वे मुख्यतः निम्नांकित हैं-
1          ऋषि च्यवन एवं मतंग। इनके नाम पर तीर्थ क्षेत्र हैं।
2          ऋषि चरक, आयुर्वेद की प्रसिद्ध पुस्तक चरक संहिता के रचयिता
3          बाणभट्ट एवं उनके रिश्तेदार मयूर भट्ट आदि सभी प्रसिद्ध विद्वान, साहित्यकार
4          आर्यभट्ट, खगोलविद् गणितज्ञ
5          भाष्कराचार्य, खगोलविद् गणितज्ञ
6          वराह मिहिर, खगोलविद् गणितज्ञ बृहत्संहिता जैसी विश्वकोशीय पुस्तक के रचनाकार
7          चाणक्य विष्णुगुप्त, चन्द्रगुप्त के आचार्य एवं अर्थशास़्त्र के रचनाकार
8          विष्णु शर्मा, हितोपदेश तथा पंचतंत्र के रचनाकार
मित्रों, कृपया प्रामाणिक सूचना दें एवं प्रामाणिक सूचना ही स्वीकार करें। मैं भी खेज में लगा हूं। ब्लाग पर नहीं है इसका मतलब मैं स्वयं संतुष्ट नहीं हूं।

उपर्युक्त के अतिरिक्त भी पूरे भारत में अनेक महान एवं अनुकरणीय व्यक्तित्व पैदा हुए हैं, जिनके गौरव से हम गौरवान्वित हो सकते हैं, भले ही उनके जीवन काल में अपनी ही बिरादरी ने उन्हें सम्मान एवं गौरव न दिया हो क्योंकि वे मनुष्यता या ऐसे ही किसी व्यापक पक्ष का समर्थन कर रहे थे। 



52 टिप्‍पणियां:

Dr. VIJAY PRAKASH SHARMA ने कहा…

आपने जो बातें यहाँ बताई है उनसे मैं सहमत हूँ.मैंने रांची में एक समसामयिक परिस्थियों पर १९९४-९६ में सर्वेक्षण कराया था लगभग २५० शाकद्वीपीय तथा इतने ही अन्य ब्राह्मणों का.लेकिन उस शोध का रुझान हिन्दू संस्कारों की स्थिति का अध्ययन करना था , अतः डेटा का विश्लेषण उसी दिशा में किया गया. अनुसूचियाँ कहीं राखी रह गई और मै उन्हें इस दृश्टिकोण से विश्लेषित न कर पाया, फिर कभी रांची जा पाया तो उन्हें खोज कर समसामयिक तथ्यों को उजागर करने की कोशिस करूँगा.फिर भी जो मित्रगणअध्ययन करना चाहें, उन्हें आपकी संकल्पनाओं पर ध्यान देकर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि आपके प्रश्न का उत्तर खोजने से ही श्रम सार्थक होगा.एक बात का ध्यान रखें, हर व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. इतिहास लेखन में कितने ही मत -मतान्तर हैं, परन्तु किस ने कितना करीब से सत्य को उजागर करने की कोशिश की है , वह प्रबुद्ध पाठक समझ जाते हैं.

Unknown ने कहा…

suryansh kalyan samiti dhanbad mag bramhano ke itihas ko punarjibit kar yog ayurved jyotish me pravin karne ka kam kar raha hai. is jati ka swanim itihas punah bhavishya bane -shailesh kumar pathak mob 8271123020

Bas soch asutosh ने कहा…

मैं भी आपकी इस मुहिम में आपका साथ देना चाहता हूँ कई दिनों से मैं इस संदर्भ में जानकारी एकत्रित कर रहा हूँ।
आशुतोष कुमार व्दिबेदी 8305641420

Unknown ने कहा…

प्राचीन मगध की सौर संस्कृति में ही शकल्दीपियों की उद्भव और विकास का इतिहास छिपा है अनिसंधान का विषय है |72 गांव में विस्तृत भू भाग में सौरतंत्र के बहुत सारे तथ्य है

R S Mishra ने कहा…

कई बार ऐतिहासिकता को गैर ऐतिहासिक साक्ष्योंसे भी समझना पड़ता है। इतिहास विशुद्ध विज्ञान तो है नहीं कि दो और दो जोड. कर पक्का चार ही होगा। और जब भौतिक विज्ञान की मान्यताबदल सकती है तो इतिहास की मान्यता लचीली हो ही सकती है। जब भारत का इतिहास लिखने में अनेक अनुमान आधारित संकल्पनाय दी जाती रहीं हैं तो मग विषयक इतिहास के लिए अकाट्य साक्षों का मोह नहीं रखा जाना चाहिए। परम्पराएं, भाषा विज्ञान, आदतें दूसरे विद्वानों का मत आदि घटक इतिहास निर्धारण में काफि हद तक मान्य हैं। अगर ये पोस्ट प्रकाशित हो सका तो आगे बढ़ाऊँगा।

R S Mishra ने कहा…

कई बार ऐतिहासिकता को गैर ऐतिहासिक साक्ष्योंसे भी समझना पड़ता है। इतिहास विशुद्ध विज्ञान तो है नहीं कि दो और दो जोड. कर पक्का चार ही होगा। और जब भौतिक विज्ञान की मान्यताबदल सकती है तो इतिहास की मान्यता लचीली हो ही सकती है। जब भारत का इतिहास लिखने में अनेक अनुमान आधारित संकल्पनाय दी जाती रहीं हैं तो मग विषयक इतिहास के लिए अकाट्य साक्षों का मोह नहीं रखा जाना चाहिए। परम्पराएं, भाषा विज्ञान, आदतें दूसरे विद्वानों का मत आदि घटक इतिहास निर्धारण में काफि हद तक मान्य हैं। अगर ये पोस्ट प्रकाशित हो सका तो आगे बढ़ाऊँगा।

Ravindra Kumar Pathak ने कहा…

Swaagat hai.

Unknown ने कहा…

प्रसन्ता होती है ये देख कर की हमारे अस्तित्व की पौराणिक इतिहास का अनुसन्धान हम मिलकर करने में प्रयासरत हैं|
एक बात हमें तो अस्पस्ट होना चाहिए की हमें अनुसन्धान किसी अधर तथा पौराणिक तथ्य के समक्ष करना हमारे इतहास में गहरायी तक ले जाने में कारगर होगी| किसी प्रकार की किम्वादंत्यियन तथा रचना के अधर पर अनुसन्धान हमें सही निष्कर्ष प्रदान नहीं करेगी| बेहतर होगा की हमें एक पूर्ण सत्यापित तथा वैदिक इतिहास का अधर ले कर विसलेसन आरंभ करना चाहिए|
मैं, अपने बुजुर्ग तथा अनुभवी जनो से अनुरोध करता हूँ की, यथा संभव वादिक तथा अन्य सम्बंधित जानकरी का मूल की छाया प्रदान करे, साथ ही किसी ऐसी पुस्तकलय का पता बताएं जहाँ इस अनुसन्धान को एक दिशा प्रदान की जा सके| मेरा मानना है की किसी भी प्रकार के किम्वादित्यायों को आधार बनाना हमें अपने मूल इतिहास से काफी दूर ले जायेगा| गुमराह होने से बचे|

Unknown ने कहा…

आप अति उतम कायँ कर रहे है आने वाली पीडी हमेशा आपकी इस मेहनत की ऋणी रहेगी

भेरूलाल मुथरिया बदनावर मध्य,पदेश २०/५/२०१७

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…
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Kshitish Mohapatra ने कहा…

सत्य क्या है हम कहाँ से हैं?

Ravindra Kumar Singh Arkavanshi ने कहा…

शाकद्वीपीय ब्राह्मण अथवा मग ब्राह्मण ब्राह्मण वर्ग में सर्वोत्तम माना जाता है। ये शाकद्वीप से श्री कृष्ण द्वारा जम्बूद्वीप में लाए गए थे। इन्हें पुराणों में तथा श्री करपात्रीस्वामी के अनुसार दिव्य ब्राह्मण की उपाधि दी गई है। यह हिन्दू ब्राह्मणों का ऐसा वर्ग है जो मुख्यतः पूजा पाठ, वेद-आयुर्वेद, चिकित्सा, संगीत से संबंधित है। इनकी जाति मुख्यतः बिहार तथा पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में है। मुख्यतः मगध के थे, अतः उनको मग भी कहा गया है। आज भी मगध के आसपास ही हैं। मग के दो ब्राह्मण विक्रमादित्य काल में जेरूसलेम गये थे जो उस समय रोम के अधीन था। रोमन राज्य तथा विक्रमादित्य राज्य के बीच कोई अन्य राज्य नहीं था। वेद तथा पुराणों में इनका उल्लेख ब्राह्मणों की एक सर्वोत्तम जाति के रूप में है जिनका जन्म सूर्यदेव के अंश से हुआ था। महाभारत काल में इन्हें शाक द्वीप से जम्बू द्वीप लाया गया था। वेद पुराणों के अनुसार साकद्वीपीय ब्राह्मण सूर्य से उत्पन्न हुए तथा सूर्य के समान ही उनका तेज था। वह सभी शाकद्वीप में निवास करते थे यह अग्रणी सूर्योपासक माने जाते हैं भारतीय ब्राह्मण स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं इसी कारण इन्हें पूर्व में दरिद्रता आदि के श्राप भी मिले हैं। अपने इसी सूक्ष्म विचारों से वे शाकद्वीपीय ब्राह्मण को हीन भाव से देखते हैं। शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के गोत्र भी काश्यप, भरद्वाज आदि के ही होते हैं। यह संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान हैं तथा भविष्य पुराण आदि में इन्हें दिव्य ब्राह्मण भी कहा गया है। जब भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कुष्ठ रोग हुआ तब भगवान नें वहाँ के अट्ठारह परिवारों को जम्बूद्वीप में बुलवाया। साम्ब के कुष्ठ रोग को अपने आध्यात्मिक चिकित्सा से समाप्त कर दिया। कालान्तर में मगध नरेश की आग्रह पर भगवान ने शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के बहत्तर परिवारों को मगध के विभिन्न पुरों में बसा दिया।

Unknown ने कहा…

Pls try to publish some more athantic facts.

Vinay Bhushan Pathak ने कहा…

महाशय,मैं अपने स्वजाति की विशिष्ट जानकारियाँ चाहता हूँ:-1 शाकद्वीप से लाये गए विप्रों के नाम तथा वहाँ की स्थानीय भाषा में उनके क्या नाम थे?2 वे किस धर्म के अनुयायी थे?3 द्वीप के शेष बचे विप्रों की वर्त्तमान अवस्थिति कहाँ है?

प्रमोद पाण्डेय ने कहा…

उत्तम जानकारी आपकी पोस्ट से समाज में लोगों के मन में या यूं कहें दूसरे ब्राह्मण भाइयों द्वारा इनको हीन भावना से देखा जाता है जो बिल्कुल गलत है।

Unknown ने कहा…

ब्राह्मण वंश में मोक्ष -

इस अपार ब्रह्माण्ड में जिस प्राणी का मोक्ष करना हो, भगवान् उसे ब्राह्मण कुल में उत्पन्न करते हैं, जिसमें अपौरुषेय वेद प्रतिष्ठित है । अनगिनत जन्मों की आशा, यात्रा, स्वधर्मपालन और तप का ही ये परिणाम हुआ कि आप ब्राह्मण कुल में पैदा हुए ।

अतः ब्राह्मण योनि बहुत -बहुत दुर्लभ होती है । करोड़ों जन्मों के पुण्य जब फलित होते हैं और भगवान् की विशेष कृपा जब किसी प्राणी पर हो जाती है , तो उसे विशुद्ध ब्राह्मण का कुल मिलता है, ताकि वो इस दुःखालय जगत् से सदा सदा के लिये मोक्ष पा सके । इस देवदुर्लभ अवसर में भी जो ब्राह्मण अपना जीवन केवल खाने और सोने में ही नष्ट कर देते हैं , उनसे बड़ा भारी दुर्भागी भला और कौन होगा ?

अतः संसार के अन्य सभी मानव ऐसी सच्ची निष्ठा से धर्म पालन करो , ताकि एक दिन ऐसा आ सके कि तुम भी #ब्राह्मण बन सको और तुम भी मोक्ष पा सको । क्योंकि ब्रह्मवंश रूपी कल्पवृक्ष में ही मोक्ष रूप दिव्य फल लगता है । ☝️

यही राजमार्ग है । कार्यब्रह्म के लोकादि विषयक जो प्रकरण हैं, वह क्रममुक्ति के ही अनुवादमात्र हैं।

।। जय भास्कर ।।

अजीत कुमार पाण्डेय
गिरिडीह झारखंड

ASHOK SHARMA CHOHTAN ने कहा…

शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण। गर्व से भर जाते यह बोल कर। पर गर्व किस पर करे शाकद्वीपीय शब्द पर मग पर या ब्राह्मण पर। शाक द्वीप से आये मग याने सूर्य और ब्राह्मण।
बन्धुओ इतिहास कैसा रहा ,मैं नही जानता मगर वर्तमान में ब्राह्मणत्व तो खो गया है,अब शाक द्वीप से आये या कहीं और से सूर्य की पूजा करे या किसी और देवता की।मगर जो मूल आधार है ब्राह्मणत्व।उसके बारे में कोई जागरूक नही है।
हमारी जाती में न तो जनेऊ संस्कार पर ध्यान दिया जा रहा है न वैदिक रीति से पूजा पाठ पर ।हमारी जाती में पूजा पाठ , कर्णमकाण्ड, ज्योतिष ,हवन आदि करने वाले कितने है।जो ब्राह्मण को सम्मान दिलाता है वो कृत्य कितने करते है।
इतिहास जानना महत्वपूर्ण है मगर उससे भी महत्वपूर्ण है हम आज किस दिशा में जा रहे है। शराब जुआ जैसे अवगुण ने जगह बना ली है ।और इन सब का एक कारण है सामाजिक जागरूकता का अभाव।

Unknown ने कहा…

Shakaldipiy brahmin ki bidwta ke karn anya sabhi brahmin inko nich bta kr chhota sidh karte the tatha is bhartiya jatiya bywsatha ke karn ine anye brahmino ne upechhit kiya ye sahi hai ki is bhart bhumi pr ye ak sresth prajati thi lekin isme tantra mantr ke prabhaw ko kalantr me alag alg dhang se upyog kiya .kuchh sakaldipiy brahmano ne chhupa kr apni jati hi badal dali.kuchh bhi ho mgar is bhrahmno ne anye brahmno dwara apman jhela hai parntu bidwta pr sabhi brahmino me sabse alag the.

Unknown ने कहा…

पर वास्तविक मग रजक(धोबी) जाती है ॥

Unknown ने कहा…

जाती भाष्कर मे रजक धोबी को मग बताया गया है ॥ क्या ये सहि है? सुर्य कि उपासना का सवाल है तो किवंदती है कि बिहार के छट पुजा धोबीयो के द्वारा सुरु किया गया था ॥

Unknown ने कहा…

जाती भाष्कर मे रजक धोबी को मग बताया गया है ॥ क्या ये सहि है? सुर्य कि उपासना का सवाल है तो किवंदती है कि बिहार के छट पुजा धोबीयो के द्वारा सुरु किया गया था ॥

Unknown ने कहा…

पहली बात तो यह कि मैं नहीं जानता कि यह जाति भास्कर नामक पुस्तक कब किसने लिखी या कहां से छपी। आप यदि उसकी पूरी जानकारी दें तो उस पुस्तक पर टिप्पणी करूं। अपने को श्रेष्ठ और दूसरों को नीच कहने की मानसिकता भी तो जोरदार है। ही। मेरी जानकारी में मग होने के दावेदार सकलदीपी, शाकद्वीपी ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हैं।
आपकी सूचना बिलकुल नयी है। उसे सत्य मानने के लिए पर्याप्त प्रमाण चाहिए।

पं0 राम कृष्ण शुक्ला ने कहा…

http://suryavansha.blogspot.in/2009/08/arakhs-suryavanshi.html

Unknown ने कहा…

Bol to sab she rhe rhe ho

Ram Chandra Mishra ने कहा…

माननीय पाठक जी,सादर नमस्कार। भारत में इतिहास लिखने की परंपरा ही नही रही।आज जो भी इतिहास उपलब्ध है अधिकांश विदेशी लेखकों व् तामपत्र पर आधारित है।ईसापूर्व 2500 वर्ष से आज तक देशो व् कौमो के मिटने व् पनपने का क्रम चला है।पहली जरूरत तो यह है कि यह पता हो की हम शाक द्वीप के है या साकलपुरी साकल द्वीप के।शाक द्वीप यदि था तो उसकी सही भौगोलिक स्थिति कहा थी,जो थोड़ी बहुत जानकारी मिलरहि है उसके आधार पर इसे काला सागर के उत्तर से कैस्पियन सागर के उत्तर के क्षेत्र यानि सिमितिया सीथिया क्षेत्र यानि वर्तमान सीरिया के पूर्वी भाग के आसपास जो कभी शको का मूल स्थान था, माना जा सकता है।वृहत्तर ईरान यानि पार्थिया में सूर्यपूजा के विधान का पता पारसी व् जरथुस्त्रो में थी।यदि शाक द्वीप की भौगोलिक स्थिति के आकलन में सफलता मिलती है तब उनके आर्यावर्त आगमन,एवं उनके ऊपर मूल भारतीय वैदिक ब्राम्हणों का प्रभाव तथा उनका वैदिक ब्राम्हणों पर प्रभाव देखना होगा। मग ब्राम्हणों ने अपने को वैदिक गोत्र, प्रवर व् देवतायों विष्णु, रूद्र, ब्रम्हा,इंद्र को मूल देव व् शैव व् वैष्णव परम्परा में ढाल लिया। यह भ ज्ञातव्य है कि वैदिक आर्य व्रम्हणो ने पहले तीन वेदों त्रयी को भी माना, क्या चौथा वेदकी रचना में शाकद्विपियो की भूमिका थी, क्योकि महाभारत के अनुसार जाबालि/जमीनी ऋषि को आयुर्वेद व् तंत्रमंत्र की जानकारी थी जिन्हें महाभारत कालीन त्रयी वेद समूह अपने में मिलाना नही चाहता था, वेदव्यास के प्रभाव से कुछ एक हो पाई थी। पुराणों में वर्णित सप्तपुरियों जिसमे शाक द्वीप भी है की भौगोलिक स्थिति बड़ी भ्रामक है। आप प्रयाश सही दिशा में कर रहे है, क्योकि जिन विंदुयो को आपने उठाया है विना उनके इतिहास ढूढना मात्र कल्पना होगी। दूसरी कठिनाई यह है कि मात्र 18 लोगो के आगमन को कोई इतिहास या साक्ष्य तभी मिलेगा जब उन्होंने कोई एटीहासिक कार्य किया हो।फिर तुर्को द्वारा दक्षिणी यूरोप सम्पूर्ण मध्य एशिया व् भारत में मचाये हानि को भी देखना होगा।आप के प्रयाश में हम आपके साथ है।

Ram Chandra Mishra ने कहा…

अभी तक जो मान्यता है,की शाक द्वीप से आने के बाद सभी को देवभूमि हिमाचल में चंद्रभागा नदी के तट पर वसाया गया।साकलपुरी की भौगोलिक स्थिति भी चंद्रभागा तट से थोड़ी दूर तो है लेकिन बहुत दूर नही है,जो आज के पॉवधोई नदी का उद्गम स्थल है, उत्तराखंड में स्थिति है। पूर्व में साकल पूरी भी प्रसिद्ध नगरी वतायी गयी है।यह संभव हो सकता है कि मगध आने के पूर्व चंद्रभागा नदी तट हिमाचल से साकलपुरी आये हो और कुछ समय वहां वसे हो, इसलिए शाकद्वीपी के साथ साथ इन्हें साकलद्वीपी भी कहा जाता हो। परन्तु इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण या साक्ष्य नही है, लेकिन संभावनों से इंकार नही किया जा सकता है।

R S Mishra ने कहा…

शाकद्वीपीय या मग ब्रह्मणों को रजक/धोबी कहना भयंकर अज्ञान और ईर्ष्या के कारण है।
हमारा जातीय आधार तो वेद, पुराण, रामायण और महाभारत हैं।उपनिषदों की कोटी इससे हट कर है।
अब गौर करने की बात यह है कि क्या हमारे इन पुरा ग्रन्थों में ब्रह्मणों की उन उपजातियों का वर्णन है जो आज प्रचलित हैं, यथा कान्यकुब्ज, सारस्वत, भूमिहार, मैथिली, गौड़, जिझौतिया, सरजूपारीन, उत्कल, तैलंग....?
जैसा मैं जानता हूँ ऐसा कोई वर्णन नहीं है नहीं ही है।
लेकिन मगों/शाकद्वीपीय ब्रह्मणों का विशद वर्णन महाभारत, भागवत पुराण, भविष्य पुराण... में है।
तो क्या पुराणकार ने पक्षपात कर दिया?
अगर हम महाकाव्य और पुराणों में वर्णित बातों पर विश्वास करते हैं तो मगों के आख्यान और उनके जातीय गौरव को क्योंकर गलत बताना चाहिए।
जिस कुल को स्वयं श्रीकृष्ण ने बुलाया, स्थापित और समदृत किया लह हीन कैसे हो गया? ऐसी सोंच अज्ञान से भरी है और इसकी जड़ में गहरी ईर्ष्या भावना है।
हम तिथिपरक और व्यक्ति क्रम में अपना इतिहास ढ़ूँढ़ने की बात कर रहे हैं।अच्छा लगता है। लेकिन हमारा आधार तो उक्त धार्मिक और सांस्कृतिक ग्रंथ ही रहेंगें। कुछेक शिला लेख मिल जायेंंगें, कुछ दानपत्र जुड़ जायेंगें लेकिन मूल कलेवर में क्या परिवर्तन आयेगा?
शाकद्वीप की स्थिति कैसे तय होगी?
क्या हमनें निश्चय पूर्ण ढंग से सभी भारतीय चरित्रों का स्थान और काल निर्धारित कर पाये है?
यह अति दुरूह और करीब -करीब असंभव सा कार्य है।अतः मेरी समझ से इस पर अनावश्यक जोर नहीं होना चाहिए।
अपने महापुरुषों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के बारे में सामग्रियां कई जगहों पर बिखरी पड़ी हैं।
अगर हम वृहतर भारत के भौगौलिक और सांस्कृतिक कलेवर के बारे में अन्दाज लगा सकते हैं तो यह मान लेने में कोई कठिनाई नहीं है हम जम्बूद्वीप में बाहर से आये, लाये गये।ऋग्वैदिक संस्कृति ही सप्तद्वीप में परिव्याप्त थी इसे मानने के ठोस आधार हैः
वयं रक्षामः में आचार्य चतुरसेन ने वशीष्ठ को मग कहा है और उन्होंनें अरबस्थान, अश्वस्थान में बड़े -बड़े यज्ञ किये जिसके धूँए से आकाश आच्छादित रहता था, दिशाएं सुगन्ध से भरी रहती थींं। बाद में वे अयोध्या आकर सूर्यवंशीय कुल के पुरोहित बन गये और कालांतर में मग ब्राह्मण अयोध्या के राजा बने जो आज भी हैंं।
बूद्ध के काल में एक मगध देशीय ब्राह्मण महकश्यप बड़े यज्ञ कर्ता और तंत्र के ज्ञाता थे।
मगों की बुद्धिमानी का जिक्र ओल्ड टेस्टामेंट में भी है।विद्वान हर जगह जाते थे और आदर पाते थे।
पं. भगवदशरण उपाध्याय ने अपने ग्रंथ वृहतर भारत में शाकद्वीपीय ब्रह्मणों पर एक पूरा पेज लिखा है । और वराहमिहिर को शाकद्वीपीय ब्राह्मण बताया है।
हालांकि। पुरुष सूक्त की ऋचा ब्रह्मणों मुखमासीद के अनुसार सभी ब्राह्मणों की सदृश्यता है, भारत के मूल पुरोहितों ने पहले शाकद्वीपियों का विरोध किया। लेकिन उन्होनें अपनी विद्वता और योग्यता के बल पर समादृत हुए और श्री उपाध्याय ने लिखा है कि दसवीं सदी के एक ऐतिहासिक ग्रंथ में उन्हें ब्राह्मण माना गया है।

..अतः मेरा यह मानना है कि इन्हें कुछ कम महत्व देने की कोशिश की जाती रहीः लेकिन जैसा कि डॉक्टर रांगेय राघव ने अपने महान कथा ग्रंथ महायात्रा गाथा में लिखा है कि मगों ने पूरे भारत को अपने सांस्कृतिक रंग में रंग दिया और सातवीं सदी तक उनका विस्तार मूलस्थान(मुलतान)से पूर्वोत्तर भारत तक हो गया।

आज भारत में प्रचलित ब्रह्मणों की उपजातियों का जिक्र किसी मूल पुराण या महाकाव्य में नहीं मिलता है लेकिन शाकद्वीपीय ब्रह्मणों का मिलता है।यही एक तथ्य यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि शाकद्वीपीय ब्राह्मण एक विशिष्ट स्थान रखते हैं।
अतः भौगोलिक एवं कालिक उलझनों से थोड़ी दूरी बनाये हुए इस विशिष्ट समाज के मनीषियों और उनके योगदान के उद्घाटन का प्रयास किया जाना चाहिए ःः

अथर्ववेद के गायक, ज्योतिष एवं तंत्र में सिद्धहस्त, चिकित्सा शास्त्र में अग्रणी, चरक, सुश्रुत, शार्गंधर, वाग्भट्ट,भाव मिश्र,वराहमिहिर, भास्कराचार्य, वाणभट्ट,पुष्यमित्र शुंग, पतंजलि....... जानकी वल्लभ शास्त्री, केदारनाथ मिश्र प्रभात, भगवती चरण मिश्र...

और अन्ततः वर्षकार और चाणक्य भी। लेकिन आपको बहुत स्पष्ट उल्लेख बहुधा नहीं मिलेगा। उनकी परम्परा और उनके चरित्र, कर्मक्षेत्र.. सभी की कड़ियों को जोड़कर एक विवेचनात्मक सूत्र में बाँधना होगा।

Shreerung ने कहा…

महाकवि धाधभ भड्डरी, डाक, डंक, भाडली, आदि सब मध्यकालीन जोशी (ज्योतिषी) साकल द्वीपी ब्राह्मण ही थे၊ इनके पूर्वज भद्र ऋषि और डंक ऋषि आदि ग्रह विप्र कहे जाते थे၊ये १ौव, १ानि उपासक, सूर्य आदि ग्रहों के उपासक थे၊ इसी लिए इन्हें ज्योतिष, गह विपरा, सकल दर्पी कहा जाता है၊
१ानि उपासक शनि ब्राहमण जोशी भड्डरी डाकोत देशांतरी १ाक ब्राह्मणों की ही एक शाखा है၊
ये लोग भी विद्वेष के शिकार हुए हैं၊
और आज पिछड़ी जाति में आते हैं जबकि दान लेने का ब्राहमण कर्म हो करते हैं၊

Unknown ने कहा…

Mere nana je k dwara likhit ak pustak hai sakdipiya brahmnopkhayan ese mai internet pe lana chahta hu kaise lau guide kare mera mail hai manibhushanfci2016@gmail.com

Shashi Kant Maharishi ने कहा…

आदरणीय मेरा समाज भी उत्तर भारत से निकला है। मैं सूर्यद्विज ब्राह्मण हूँ और हम भी शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण ही हैं।
वर्तमान में हमारे समक्ष भी वही कठिनाई है जो आपके समक्ष है। हम भी साम्ब पुराण के साथ अन्य ग्रंथों में अपना अतीत तलाश कर रहे हैं। 104 वर्ष पूर्व प्रकाशित ब्राह्मण निर्णय पुस्तक में भी हमारा परिचय है। पर संतुष्टि प्राप्त नहीं हो रही। कृपया इस संबंध में मुझे whatsapp (09782879719) पर अथवा मेरे facebook (maharishi.27@gmail.com) Shashi kant maharishi पर अवश्य संपर्क करने का कष्ट कीजियेगा।
हमारे गोत्र व अन्य समाधानों के लिए मै भी अत्यधिक आतुर हूँ।
हालांकि अब हमारे समाज मे सूर्य की उपासना के साथ भगवान श्री कृष्ण के श्रीनाथजी जी स्वरूप की सेवा होती है।

Unknown ने कहा…

शाकद्वीपीय ब्राह्मण श्रीहरि सबसे निकट रहने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मणों में आते है 👍 हम सत्य कर्मो का त्याग करने पर ही दुखी हो सकते है । जगत को संकट से उबारने में शाकद्वीपीय ब्राह्मण की उपस्तिथि बिना समाधान सम्भव ही नही है ।
यह सब मेरे आत्म गुरुदेव (ईस्ट के गुरुदेव ने बताया था )
जो स्वयं शिक्षित नही है मगर केवल भक्ति बल से अवगत कराया था । अब जब इतिहास में पाता हूँ तो उनके कथन सत्य साबित होते है 👍👌
जय गुरुदेव

Unknown ने कहा…

प्रिय बन्धु गण एक शंका समाधान किया जाए हमलोगों के कुलदेवी कुलदेवता का स्थान किस दिशा के दिवाल मे स्थापित करना चाहिए । मेरे पुर्वज पश्चिम के दिवाल मे स्थापित किए हैं ।मैं चाहता हूँ कि पुर्व के दिवाल मे स्थापित करूँ । कृपया मार्गदर्शन किया जाए आभारी रहूँगा ।

बेनामी ने कहा…

भाई, कोंकण किनारे पे बसे हुए दैवज्ञ ब्राह्मण क्या मग है ?

Unknown ने कहा…

Agar ham bed puran manate hain to hame magdvij svikar karana hoga.

Unknown ने कहा…

Sahi he.
Kya maharshi pulasth bhi shakyadwipy brahman the ?

Bhuvnesh gupta ने कहा…

कई विद्वान शाकद्वीपियों के भारत आगमन के विषय पर अपनी राय रखते हैं कि वे ईरान आदि से आए थे तथा अपने ही पुराणों पर लिखित बातों को नकारते हैं। भगवान कृष्ण ने इन्हे शाकद्वीप से जम्बूद्वीप में लाया था, तब तो ईरान भी जंबूद्वीप का हिस्सा था।

मिथक यह हैं कि शाकद्वीपीय आए कहाँ से? बड़े बड़े विद्वान भी स्वयं को श्रेष्ठ बनाने हेतु विष्णुपुराण तथा श्रीमद् भागवत महापुराण आदि में वर्णित शाकद्वीप को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं तथा शाकद्वीपीयों को हीनता की दृष्टि से देखते हैं।

इस विषय वस्तु को समझने के लिए हमे पुराणों में वर्णित भूलोक(14 लोकों के अंतर्गत 7वें लोक) के विवरण को ध्यानपूर्वक समझना होगा। भागवत पुुराण के पांचवे स्कन्ध मेंं तथा वामन पुराण के अध्याय 13 में भू लोक को सात द्वीपो से युक्त भूमि बताया गया है। इस भूलोक को पृथ्वी लोक नहीं समझना चाहिए।

भूलोक में अंदर से बाहर की ओर 7 द्वीप है, जिनके नाम क्रमशः जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक और पुष्कर हैं। सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः लवण जल(खारे पानी), इक्षुरस, मदिरा, घृत(घी), दधि(दही), दुग्ध(दूध)और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। प्रत्येक द्वीप अपने से दुगुने विस्तार वाले समुद्र से घिरा हुआ है।साथ ही अंदर से बाहर की ओर द्वीपों का विस्तार दुगुना होता जाता है।उदाहरण के लिए जम्बूद्वीप भूलोक के मध्य में स्थित है एवं यह अपने से दुगुने विस्तार वाले लवण सागर से घिरा हुआ है। लवण सागर एवं प्लक्ष द्वीप का विस्तार समान है अर्थात प्लक्षद्वीप जम्बूद्वीप की अपेक्षा दुगुने विस्तार वाला है। इसी प्रकार सभी द्वीपों का मान समझना चाहिए।

जम्बूद्वीप एक लाख योजन(1योजन =8 मील) विस्तीर्ण है और इसके 9 वर्ष माने गए है जिनमें प्रत्येक वर्ष 9,000 योजन विस्तीर्ण हैं ।इन वर्षों के नाम इस प्रकार है

इलावृतवर्ष
भारतवर्ष
भद्राश्च वर्ष
हरि वर्ष
केतुमालवर्ष
रम्यकवर्ष
हिरण्यमयवर्ष
उत्तरकुरुवर्ष
किम्पुरुषवर्ष
भारत वर्ष को ही हमारा पृथ्वी ग्रह समझना चाहिए।इस भारत वर्ष अर्थात पृथ्वी को 9 खंडो में विभक्त किया गया है।इनके नाम इस प्रकार है,

● इन्द्रद्वीप

●कसेरुमान

●ताम्रपर्ण

●गभस्तिमान

● नागद्वीप

●सौम्य

●गन्धर्व

●वारुण

●कुमारद्वीप(भारत देश)

यही कुमारद्वीप महाभारत काल मे अखंड भारत था।

इस आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि मग ब्राह्मण हमारे पृथ्वी ग्रह से अलग शाक द्वीप के निवासी थे।

प्रतीक सक्सेना ने कहा…

ये केवल आपके दिमाग की छोटी सोच है।मीराबाई,तुकाराम,नानक,कबीर,नर्सिंग मेहता,संत रविदास ,ये सभी मोक्ष को प्राप्त नही हुए क्या।अरे इन्होंने तो कई औरों को मोक्ष दिलवा दिया और आज भी दिलवा रहे हैं।आप अपने मिथ्याभिमान में मस्त रहो।

Yogesh Sharma ने कहा…

धन्यबाद... आपने ब्राह्मणो के बारे में बहुतअच्छी जानकारी साझा की... ब्राह्मण वंशावली

Unknown ने कहा…

मेरा निवेदन ऋग्वेद की कः(प्रजापति)स्तुति की तरफ आकर्षित करने का है। जो विशुद्ध सूर्य स्तुति है।
प्रथम छंद में उल्लेख है
कस्मै देवियो हविष्य विधेम् (मैं हविषा किस प्रकार दूं)
अंतिम छंद में आता है।
भूयिष्ठाः ते नमः उक्ति विधेम्(उन भूयिष्ठों को नमस्कार जिन्होंने उक्ति(तरीका) का विधान किया।
महाभारत का भीष्म पर्व कहता है कि मगाः ब्राह्मण भूयिष्ठाः

Unknown ने कहा…

अपने इतिहास को जानना, अपने गौरव को बनाए रखना एक अच्छी बात है। अपने अतीत को जानने के लिए अपने पूर्वजों के स्तित्व को इतिहास में ढूंढना अच्छी बात है। लेकिन हमें इस बात का दुख है कि आज के वर्तमान समय में ब्राह्मणों का एक वर्ग दूसरे ब्राम्हण वर्ग को अपने से निम्न सिद्ध करने का प्रयास करता है। ऐसा होना मेरे विचार से वर्तमान समय में खेद का विषय है। मैं निरहू कुमार मिश्रा यूपी ईस्ट देवरिया जिला से जिला जिला से
6386433732

Unknown ने कहा…

मुझे शाकद्वीपी इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी चाहिये

Dinesh Kumar Bhojak ने कहा…

जय भास्कर जी, मैं दिनेश कुमार भोजक, ऐलनाबाद हरियाणा से हूँ| मैं काफी समय से अपने समाज के इतिहास की बिखरी कड़ियों को जोड़ने के लिए प्रयासरत हूँ| क्या आप विद्वजनों इस बारे तथ्यात्मक रिकार्ड उपलब्ध करवा कर मेरी मदद कर सकते हैं| मेरा मो.नं. 9350325467 व gmail: dineshkumarbhojak@gmail.com है|

शंकर मिश्र, औरंगाबाद (बिहार) ने कहा…

बिल्कुल, मैं पूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ।
हमारे सारे इतिहास में यही बताया गया है कि शाकद्वीप से 18 परिवार भगवान श्रीकृष्ण के आमंत्रण पर आए थे तथा भगवान की चतीराई अथवा धूर्तता से उनकी इच्छा अनुसार यहीं बस गए।
परन्तु मेरा प्रश्न ये है कि वे आये श्रीकृष्ण की भूमि पर जो आजके गुजरात राज्य में है, फिर उन्हें इस मगध क्षेत्र में क्यों बसाया गया??
इसपर वर्णन ये है कि कालांतर में मगध नरेश जरासंध के आग्रह पे उन्हें यहां बसाया गया। परन्तु इस उत्तर से मैं संतुष्ट नही हूँ।
जब जरासन्ध स्वयं श्रीकृष्ण का सबसे बड़ा शत्रु था एवं उन्हें भगवान मानता ही नही था, उसके कारण स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को भी अपनी जन्मभूमि मथुरा त्याग देनी पड़ी थी। फिर जरासन्ध अपने अभिमान के कारण उनसे आग्रह क्यों करेगा??

ऐसे बहुत सारे प्रश्न है जिसे जानने का मैं पिछले 10 वर्षों से प्रयत्न कर रहा हूँ।
कुछेक प्रश्न भी आधा अधूरा ही जान पाया हूँ जैसे पूर्व में भी सात ही द्वीप थे जैसे की शाकद्वीप, जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रोंचद्विप एवं पुष्करद्वीप आदि
आज भी पृथ्वी पर सात ही महादेश हैं जैसे कि, एशिया महादेश, अफ्रीका महादेश, यूरोप, अंटार्कटिका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया।
अभी तक के खोजों से ये पता चला है कि कल का जम्बूद्वीप आज का एशिया महादेश है। कल का प्लक्षद्वीप आज का ऑस्ट्रेलिया तथा कल का पुष्करद्वीप आज का अंटार्कटिका है।
बाकी के चार द्वीपों की खोज आज भी जारी है। अतः मेरी सोच से शाकद्वीप बाकी के चार में से ही कोई होने चाहिए।
भविष्यपुराण में वर्णित है कि पुष्करद्वीप में ही देवताओं का वास था और वे अपने गतिविधि वहीं से किया करते थे। अतः आज के अंटार्कटिका में भी कोई जीवन नही बसता। कुछेक लोग आते हैं और अपने कुछ रिसर्च करके वापस लौट जाते हैं। वहां जीवन जीना बहुत ही कठिन है। सम्भव है कि वहां बर्फ के नीचे आज भी देवता वास करते हों। ये बस संदर्भ के अनुसार है।

आज भी मैं नए खोजों की ओर अग्रसर ही हूँ तथा अपने मूल को जानने को प्रयत्नशील हूँ।


इस संदर्भ में आपकी शुरुआत काफी उत्साहजनक है।
मैं निजी तौर पे इसे सफल बनाना चाहूंगा।
और सभी शाकद्वीपी बंधुओं से निवेदन करूँगा की आप सभी इस प्रारम्भ का अंत करने में सहायता प्रदान करें

R S Mishra ने कहा…

https://bhaibandhupatrika.blogspot.com/2020/06/blog-post_44.html?m=1

Manoj Dwivedi ने कहा…

प्रतीक जी सक्सेना ये बात बिल्कुल सत्य है कि सांसारिक जीवन जीने के बाद आप मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकते , भगवद गीता के उपाय से ही मोक्ष मिल सकता है ,और मोक्ष के लिए कोई भी जाति का व्यक्ति हो सकता है पर जो ब्रम्ह को पाने को आतुर है वही ब्राम्हण है।
पर जातीय व्यवस्था के कारण जनमत ब्राम्हण होने लगे ,जैसे आप लाला जाती से हो तो इसका तात्पर्य ये था कि पुराने जमाने मे ,पटवारी,ऑडिटर लेख परीक्षक ,अकॉउंटेन्ट राजा के दरबार मे पीढ़ी दर पीढ़ी कायस्थ जाती के ही बन्दे थे ।जो दूसरे जाती के बंदों को घुसने नहीं देते थे ,पर फर भी कायस्थ में पचासों उप जातियाँ है जो वास्तव में अलग अलग जातियों के लोग बलपूर्वक लिपकीय कार्य किया ,या अलग अलग राजाओं के यहां विदेशी भी आकर लिपिक बन गए इस प्रकार एक सक्सेना भी बने आप लोग भी शक राजाओं के दरबार मे रहे लिपिकार होंगे। शक शाशक पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी तक थे जिनका राज्य गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में था।

DrAmitendu ने कहा…

गुप्ता जी मैं आपकी तथ्यात्मक पकड़ से सहमत हूँ. इस पर आर्यभटीय व सूर्य सिद्धांत भी प्रकाश डालते हैं आप अपना संपर्क नं. दीजिये हम मिलकर इसपर काम कर सकते हैं. डॉ. अमितेन्दु गिरदौनिया 7223990466

DrAmitendu ने कहा…

भुईंहार या भूमिहार ब्रहामण बर्मन राजाओं के क्षेत्र पालक हैं ये राय वंश चौहान और सेन वंश के भी क्षेत्र पाल रहे हैं.
भूयिष्ठा का एक अलग अर्थ भी है भूमि का अधिष्ठाता अथवा इष्ट अर्थात ब्राह्मण धरती के देवता हैं. उन्हें नमस्कार करने का विधान कहा जाता है.( नमन मात्र से हवि दान के समतुल्य यज्ञफल का विधान है)
जो जो कुछ प्रश्न वेदों में हैं उनके उत्तर वेदान्त में हैं. उदाहरण हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतत्व जातःपतिरेक् आसीत् सदाधारय पृथ्वी मामुतेमाम् कस्मै देवा हविषा विधेम्.
उत्तर यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुत्वंतैः दिव्य स्त्रोत्रवैदे सांगपदक्रमोपनिषदै गायंति यं सामगाः ध्यानावस्थिततदगतेनमनसाः पश्यंति यं योगिनो यस्यांतम् न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः
इस प्रकार वेद पूर्व हैं और वेदान्त उत्तर. उपनिषदों में ब्रह्म विद्या निहित है. वेद तो वेदनाओं के स्तर के हैं जो विदित हुआ वो वेद इसलिए वेद एकाधिकार का क्षेत्र नहीं रहा है. ब्राह्मण एकाधिकार का क्षेत्र रहा है. मुक्ति के मार्ग से भी परे. भगवतप्राप्ति (स्वयं भगवान बन जाना)से भी इतर. जितने भी ब्राह्मण हैं वे अभ्यास मात्र का विषय नहीं है वह सहज प्रवृत्ति का भी विषय है. वह द्विज प्रवृत्ति का भी विषय है. जो गुरु के सामीप्य से संभव है. अतः यह जो ब्राह्मण (ग्रंथ)( उपनिषद्) हैं ये ही भूयिष्ठा हैं.

DrAmitendu ने कहा…

जंबूद्वीप का अर्थ पृथ्वी से लेकर नवग्रह और अठारह केतु तक का विस्तार ग्रहण करें. तब सही व्याख्या कर पाएंगे पंडित जी
पृथ्वी के तीन मायने हैं 1. प्रेक्षक की स्थिति 2. जीवात्मा का आश्रय 3. द्यावा पृथ्वी अर्थात् मिल्की वे का उतना हिस्सा जितने पर सप्तर्षि मंडल प्रभाव डालता है यह मोर की गर्दन की आकृति का हिस्सा आकाश गंगा का.

Dinesh Kumar Bhojak ने कहा…
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