बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

खैर किसी ने तो नाम लिया


मैं आज नेट पर मनमौजी खोज में था। सोचा क्यों न अपने ही बारे में खोजा जाय? क्या सच में केवल नाम से भी किसी के बारे में कुछ जाना जा सकता है? यह जान कर अच्छा लगा कि मग संस्कृति ब्लाग को दूसरे ने भी उद्धृत किया है। धन्यवाद गीता जी।
पठन  संख्या 13033 पहुंच गई लेकिन टिप्पणियां लगभग शून्य, सुझाव भी लगभग शून्य, लगता है जैसे कोई भारी भूल हुई है। कोई बताने की कृपा करेंगे?
link hai-  http://geetapande.blogspot.in/2012/12/maga-brahmin-overview.html

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

गोत्र पुर की एक नई सूची

गोत्र पुर की एक नई सूची आई है। फेसबुक का लिंक है-
https://www.facebook.com/suryaparishad/posts/1409690936000401?pnref=story

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

सूर्य उपासना/ मग इतिहास में महाश्वेता प्रसंग

सूर्य उपासना/ मग इतिहास में महाश्वेता प्रसंग
मेरे अंदाज से अनेक लोग इस बात से लगभग अपरिचित होंगे। प्रख्यात सूर्य मंदिरों का अध्ययन करते समय पुराविद् कनिंघम और उनके पंडित सहयोगी पं. हर प्रसाद शास्त्री को भी यह बात समझ में नहीं आई थी। अपने रिर्पोअ में तो वे महाश्वेता की प्रतिमा को पहवान भी नहीं सके थे। यह बात देव वरुणार्क रिपोर्ट में दर्ज है।
मैं ने पुरातत्त्व का अध्ययन उलटे क्रम से शुरु किया क्योंकि अ्रग्रेजी में लिखित सैकड़ों पृष्ठों की जगह संस्कृत पढ़ना मेरे लिये आसान था। जब मैं ने मूर्ति शास्त्र के ग्रथ पढ़े तब भी समझ साफ नहीं हुई लेकिन जैसे ही सांब पुराण पढ़ा बात साफ हो गई कि ‘‘श्री महाश्वेतयों स्थानं पुरस्तादंशुमालिनः’’। मैं ने 1980 के आसपास तक जीवित आरा, पटना, बनारस, इलाहाबाद और गया के तत्कालीन अनेक विख्यात पंडितों से संपर्क कर महाश्वेता के बारे में जानने का प्रयास किया लेकिन कोई उत्तर नहीं पा सका और आज भी मेरी जिज्ञासा वैसी ही है। 
पहले नेट पर इतनी सामग्री आसानी से नहीं मिलती थी न ही चर्चा हो पाती थी। पुस्तकालय और विद्वान ही सहारा थे।
महाश्वेता कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। उनके नाम का आकर्षण बहुत अधिक है। मगध के सबसे संस्कृत महाकवि बाणभट्ट की कादंबरी कथा की नायिका महाश्वेता हैं। पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रसिद्ध उपन्यास की नायिेका भी महाश्वेता है। प्रसिद्ध बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी आज भी एक हस्ती हैं।
मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि महायवेता की प्रतिमा का सूर्य मंदिरों में ठीक सूर्य के सामने प्रतिमा लगाने का क्यों प्रावधान है। पुराने देवता को हटा कर परिवर्तित सूर्य मंदिरों पर यह बात लागू नहीं होती। इतना ही नहीं चाहे सौर यज्ञ हो, दीक्षा हो या रथ यात्रा का प्रावधान हो महाश्वमता की भी पूजा होगी और दनके मंत्रों का जप भी होगा। यह प्रावधान सांब पुराण के अध्याय सं. -30, 32, 38 तथा भविष्य पुराण के ब्राह्मपर्व, अध्याय सं.- 92 एवं अन्यत्र भी आप देख सकते हैं। 
इस संदर्भ में कोई भी च्यक्ति स्वयं या किसी अन्य विद्वान के माध्यम से कुछ जानकारी देंगे तो उनकी बड़ी कृपा होगी। मैं उसे उन्हें स्रोत मान कर उल्लेख करूंगा। सहयोग की आशा के साथ।

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

आर्थिक पक्ष की चुनौतियां

मुझे अपनी जाति में 3 प्रकार के लोग मुख्य रूप से मिलते हैं। 
पहले वे, जो वर्तमान समय की आर्थिक चुनौतियों से संघर्ष करने में सक्षम है और व्यवसाय या सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे हैं। इनमें कुछ तो जाति के प्रति लगाव रखते हैं और संवेदनशील है लेकिन अनेक अपने को भिन्न किश्म का या विशिष्ट मानने लगे हैं। कई बार तो जाति की बात से भी चिढ़ते हैं। उन्हें जाति तब याद आती है जब विवाह करना हो या अपने पेशे में शाकद्वीपीय ब्राह्मण के रूप में अपमानित या पेशान किये जाते हैं। पहले तो अखिल भारतीय ‘‘शर्मा’’वाद चला। अब परंपरागत उपाधि तक को हटाना एक आम चलन जैसी हो गई है। 
इन्हें संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
दूसरे प्रकार के लोग वे हैं, जो कठिन संघर्ष के दौर से गुजर रहे हैं। इनमें से कुछ सफल भी हो रहे हैं लेकिन अधिकांश अभी भी सुविधाजनक शार्टकट और नकली अहंकार तथा दिखावे में उलझे हुए हैं। ये शादी विवाह में अधिक कर्ज में डूब कर घर की जमा पूंजी नष्ट कर रहे हैं। इसके साथ अत्यधिक ईर्ष्या के कारण किसी भी क्षेत्र के सफल व्यक्ति से संपर्क करने तक को तैयार नहीं होते। इनमें से अधिकांश सुविधाजनक प्रवेश वाले कारोबारी तथा पहचान क्षेत्र को पकड़ते है, जैसे - वकालत, मार्केटिंग, नेटवर्किंग, कवि होना, बीमा एजेंट, रियल इस्टेट एजेंट, गृह उद्योग लगाना (विपड़न हीन), पूजापाठ और ज्योतिष का काम। सच यह है कि उपर्युक्त क्षेत्रों में सफलता के लिये काफी प्रतिभा, श्रम एवं धैर्य की आवश्यकता है जबकि ये लोग इसे झटपट बड़ा बनने के साधन या हारे को हरिनाम मान कर अपनाते हैं।
इनकी सामाजिक मनोचिकित्सा की आवश्यकता है, उनका मनोबल बढ़ाना जरूरी है।
तीसरे स्तर पर वे लोग हैं, जो परम असहाय हैं। भयानक गरीबी में सब कुछ लुटा कर मरता क्या न करता कि हालात में हैं। इनकी संख्या दुर्भाग्य वश बढ़ती जा रही है। इनकी किसी प्रकार की निंदा करने की जगह अनुभवी लोगों के संरक्षण में व्यापक अभियान चला कर इन्हें संकट से निकालना चाहिये। कुछेक निशुल्क स्कूल/प्रशिक्षण केन्द्र खोलने की जरूरत है, जहां आवासीय सुविधा के साथ समाज की मुख्य धारा में एक गरीब आदमी की तरह  ही सही रहने भर की शिक्षा दीक्षा तथा आगे के संघर्ष हेतु राश्ते का तो पता चल सके। कम से कम इनकी अगली पीढ़ी को तो बचाया जा सके। निःशुल्क विवाह, जनेऊ आदि का आयोजन किया जा सकता है।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

सामाजिक विकास सूत्र की तलाश

हम केवल अकेले अल्पसंख्यक नहीं हैं

जातीय संख्या की दृष्टि से हम केवल एक अकेले अल्पसंख्यक नहीं हैं। यह अल्पसंख्यक वाला रोना मुझे जंचता नहीं है। हिंदू समाज की भी कई छोटी संख्या वाली जातियां सफल हो रही हैं। 
पारसी तो सबसे अल्पसंख्यक, सफल एवं नेतृत्वकारी भूमिका में हैं। राजनीति को छोड़ सभी क्षेत्रों में विशिष्ट स्थान पर हैं। वे जब पहली बार भारत आये थे तो कहा था हम भारतीय समाज में आंटे में नमक की भांति रहेंगे। पता ही नहीं चलेगा कि हम यहां हैं भी और आपसे अलग हैं।
मेरी समझ से हमारी मूल समस्या यह है कि हमारे पास वर्तमान समय के अनुरूप भारतीय समाज में पूर्ववत विशिष्ट या कम से कम सामान्य से बेहतर स्तर पर रहने की सोच नहीं है। 
व्यक्ति की दृष्टि से बेहतर स्थानों पर अनेक लोग सफल हैं लेकिन उनके पास भी समग्र जातीय कल्याण की शायद दृष्टि नहीं है या भावना नहीं है अथवा कुछ और समस्या है। अभी मेरे पास भी ऐसी दृष्टि और योजना नहीं है, जिससे व्यापक समाज का कल्याण हो सके। तलाश जारी है।
मेरी निजी सफलता में मेरे परिवार का भी पूरा योगदान है अतः मैं उसे सामाजिक विकास का सूत्र नहीं कह सकता क्योंकि सभी लोगों की पारिवारिक पृष्ठभूमि एक समान नहीं होती।

इसके बावजूद मैं कुछ उदाहरण क्रमशः रखूंगा कि कैसे पर्दे के पीछे रह कर भी अपनी जाति के लोगों ने जातीय कल्याण के व्यापक काम किये। स्वाभाविक है कि उनके काम से लाभान्वित लोग भी न उनके काम को जानते हैं न ही उनके प्रति कृतज्ञ होने का सवाल है। चर्चित तो सम्मेलन ही रहे और जातीय संगठन के नेता गण, जिन्होंने बहुत काम किया। मेरा यह मंतब्य केवल दक्षिण बिहार के बारे में है। राजस्थान की स्थिति इससे भिन्न रही है।

समस्या की जानकारी के लिये इसे भी देखें--
http://magasamskriti.blogspot.in/2012/11/normal-0-false-false-false-en-us-x-none_27.html