मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

सामाजिक विकास सूत्र की तलाश

हम केवल अकेले अल्पसंख्यक नहीं हैं

जातीय संख्या की दृष्टि से हम केवल एक अकेले अल्पसंख्यक नहीं हैं। यह अल्पसंख्यक वाला रोना मुझे जंचता नहीं है। हिंदू समाज की भी कई छोटी संख्या वाली जातियां सफल हो रही हैं। 
पारसी तो सबसे अल्पसंख्यक, सफल एवं नेतृत्वकारी भूमिका में हैं। राजनीति को छोड़ सभी क्षेत्रों में विशिष्ट स्थान पर हैं। वे जब पहली बार भारत आये थे तो कहा था हम भारतीय समाज में आंटे में नमक की भांति रहेंगे। पता ही नहीं चलेगा कि हम यहां हैं भी और आपसे अलग हैं।
मेरी समझ से हमारी मूल समस्या यह है कि हमारे पास वर्तमान समय के अनुरूप भारतीय समाज में पूर्ववत विशिष्ट या कम से कम सामान्य से बेहतर स्तर पर रहने की सोच नहीं है। 
व्यक्ति की दृष्टि से बेहतर स्थानों पर अनेक लोग सफल हैं लेकिन उनके पास भी समग्र जातीय कल्याण की शायद दृष्टि नहीं है या भावना नहीं है अथवा कुछ और समस्या है। अभी मेरे पास भी ऐसी दृष्टि और योजना नहीं है, जिससे व्यापक समाज का कल्याण हो सके। तलाश जारी है।
मेरी निजी सफलता में मेरे परिवार का भी पूरा योगदान है अतः मैं उसे सामाजिक विकास का सूत्र नहीं कह सकता क्योंकि सभी लोगों की पारिवारिक पृष्ठभूमि एक समान नहीं होती।

इसके बावजूद मैं कुछ उदाहरण क्रमशः रखूंगा कि कैसे पर्दे के पीछे रह कर भी अपनी जाति के लोगों ने जातीय कल्याण के व्यापक काम किये। स्वाभाविक है कि उनके काम से लाभान्वित लोग भी न उनके काम को जानते हैं न ही उनके प्रति कृतज्ञ होने का सवाल है। चर्चित तो सम्मेलन ही रहे और जातीय संगठन के नेता गण, जिन्होंने बहुत काम किया। मेरा यह मंतब्य केवल दक्षिण बिहार के बारे में है। राजस्थान की स्थिति इससे भिन्न रही है।

समस्या की जानकारी के लिये इसे भी देखें--
http://magasamskriti.blogspot.in/2012/11/normal-0-false-false-false-en-us-x-none_27.html

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