सोमवार, 29 अप्रैल 2013

सौर तंत्र


सौर तंत्र
            महत्वपूर्ण यह है कि जजमान को ठगते-ठगते हम स्वयं धोखे का शिकार होते गए। तंत्र को ज्ञान आधारित, वस्तुनिष्ठ नहीं बता कर उसे मानना, कल्पना एवं भावना आधारित बताया जाने लगा।
            शार्टकट की हद तो यह है कि हर भौतिक या अभौतिक समस्या का समाधान किसी न किसी पंचोपचार या षोडषोपचार पूजा से चाहते हैं। दरअसल सौर तंत्र सीधा-साधा है। संज्ञा पक्ष में पंच महाभूतों के विज्ञान (सूक्ष्म तन्मात्रा स्तर पर पहचानने की विधि में दक्षता) के बल पर मौसम से लेकर भविष्य कथन तक किए जाते हैं। समस्या यह है कि सायंस की जगह विज्ञानशब्द का प्रयोग होने से भारतीय विज्ञानकी समझ ही समाप्त हो गई है। पढ़ें मेरा आलेख विज्ञान की चोरी
            सौर तंत्र जिसका पूरा विस्तृत विवरण प्रकाशित और उपलब्ध है, उसकी जगह केवल मूर्ति प्रतिष्ठा, मंदिरों की पूजा-अर्चना तक हम अपने को सीमित रखना चाहते हैं। इससे तो कुछ रुपयों की कमाई के अतिरिक्त केाई लाभ नहीं होने वाला। कमाई तो सच्चे ज्ञान से भी होती, मनोकायिक एवं कई मानसिक रोगों का उपचार तो योग एवं तंत्र से ही हो सकता है लेकिन यहाँ तो बात पीछे केवल चमत्कार का दावा करने की मानसिकता है।
            किसी विषय को जानकर उसे मानने में वास्तविक ज्ञान एवं भक्ति दोनों की जरूरत होती है। सूर्य की कार्य प्रणाली को जान समझकर ऊर्जा के मूल स्रोत के प्रति श्रद्धा रखने की विधि अलग होगी। उसके लिए सूर्योदय के पूर्व जागना होगा, सूर्य नमस्कार करना होगा। सूर्य बिंब पर बाह्य त्राटक अंतर्त्राटक, सूर्यमंडल की अंदरूनी समझ, ऋतुचक्र तथा सौर परिवार रूपी इसी सौर मंडल की चाल-ढ़ाल अर्थात् ऋतु संक्रांति आदि आधारित जीवन के अनुरूप जीवन जीना होगा।
            छाया पक्ष की दृष्टि से छाया मापन, उसके लिए मंदिर, साथ छोटी-छोटी बेधशालाएँ, सौर घड़ी आदि हर घर में न सही प्रत्येक गांव-शहर में बनाना तथा छात्रों को परंपरागत खगोल एवं गणित पढ़ाना होगा।
            यह सब कौन करना चाहता है? फटाफट बाजार से मूर्ति खरीदी। कही पर यज्ञ आदि का आयोजन कर झूठी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी, तो इससे चढ़ावा जल्दी चढ़ने लगेगा। नौ ग्रहों का नाम मालूम हो या न हो खनदानी ज्योतिषी और तांत्रिक तुरंत हो गए। भविष्य कथन सही हुआ तो ज्योतिषी के चमत्कार से नहीं, अगर हुआ तो????? बहाने अनेक हैं।
            सौर तंत्र के साथ खिलवाड़ करते-करते शैव, शाक्त, पांचरात्र, गाणपत्य आदि को भी हमने नहीं छोड़ा। जातीय समाज के जिन मनीषियों ने विद्यार्जन, संसाधना का तप किया उन्हें प्रथमा पास (सातवीं पास) पंडितों ने खूब छकाया, अपमानित किया। वे बेचारे वास्तविक पंडित दुबके रहे। बात पीछे चमत्कार कैसे करें?
            पहले इन्हीं लोगों ने और अब तो सभी धारा के लोग चाहे उन्होंने शास्त्रीय या साधनात्मक किसी भी दिशा में श्रम कर दक्षता पाई हो या नहीं स्वयं को तो चमत्कारी सिद्ध करेंगे किंतु जैसे ही किसी वास्तविक प्रसंग की चर्चा छेडें, तो कुछेक बातों को नहीं सारी बातों को हीं गोपनीयता के दायरे में लाने लगेंगे।
            सूर्य सिद्धांत एक प्रचलित, प्रकाशित ग्रंथ है। उसे जरा उलट-पुलट कर देखिए तो सही कि छोटी-छोटी छाया मापन विधियों का वर्णन है कि नहीं?
            काशी से आदित्य पंचांग भी सरयुपारी मित्र निकालते हैं। मेरे श्रद्धेय और कुछ दिवंगत लोगों को पंचांग निकालने की हिमत नहीं ही हुई। रोजबरोज चमत्कार एवं गोपनीयता के अतिवादी बहानों से निकलने के बाद हीं परंपरा को बचाया जा सकता है।
            सूर्य का शिव एवं शिव का सूर्य में, सूर्य का आदित्य एवं विष्णु में, विष्णु का सूर्य में समावेश करने का नाटक पुराना है। एक ग्रंथ है - सौर पुराण। नाम सुनकर लगेगा कि सौर तंत्र का ग्रंथ है। कई नकली लोग इसकी खूब महिमा भी बताऐगे लेकिन आप जब पढ़ें तो पता चलेगा कि यह तो शैव परंपरा का ग्रंथ है। इसमें 2-4 पृष्ठों के बाद सूर्य को शिव में तिरोहित कर दिया गया, हो गया खेल खत्म। समाज भी कम धूर्त और कृतध्न नहीं है। उसने क्या किया? समाज ने संपूर्ण सौर तंत्र को कर्मकांड में सम्मिलित कर उसे ज्योतिष ओर मुहूर्त का विषय बना लिया। बडे़ निर्णय आज भी सौर वर्ष, सौर माह, एवं तिथि पर आधारित हेाते हैं। खेती, करवसूली, विवाह आदि सभी काम अभी भी (कर वसूली छोड़कर) सौर पंचाग से होते हैं परंतु सिक्का चला हुआ है चान्द्र मास और चान्द्रगणना का।
            संज्ञा पक्ष में आएँ तो स्वर शास्त्र (आंतरिक नाड़ी विद्या एवं फलादेश) है तो सौर परंपरा का  लेकिन अब वह शिव स्वरोदय नाम से जाना जाता है।
            आज के समय में या तो जानकार लोग एकजुट हो कर युग की चुनौतियों का सामना करें। तथ्यात्मक उत्तर दें अन्यथा अपने ही घर का लड़का जनेऊ पहनने को तैयार नहीं है। प्रश्न है- जनेऊ पहनने की सार्थकता क्या है ? ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना और ढ़ूंढना वरिष्ठ पीढ़ी का दायित्व है। केाई यह टिप्पणी कर सकता है कि आपने पूरे लेख में बताया ही नहीं कि सौर तंत्र है क्या ? मित्रों यह कोई छोटे उत्तर वाला प्रश्न नहीं है न मैं प्रश्न की महत्ता को कम करना चाहता हूँ। इसीलिए पुस्तकों का नाम बताया, मूलभूत सिंद्धांत ओर सबसे बड़ी बात कि परंपरा के रहस्य को सामने रखा कि संज्ञा और छाया का मतलब क्या है ? कुछ परिश्रम आप भी तो करें। सांब पुराण के अध्यायों के विषयों को संक्षिप्त विवरण मैंने अपने ब्लाग पर लिखा है। वहाँ आप कई बाते पढ़ सकते हैं।

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

भय एवं उसके निवारण का तंत्र


भय एवं उसके निवारण का तंत्र
            मैं किसी खाश परंपरा में ब्रांडेड तंत्र की जगह उसके मूल सिद्धांतों तथा समाज में प्रगट पक्षों के पीछे के सिद्धांतों की बात करता हूँ। मेरा प्रयास विषय को सरल करने का है, उसे बेमतलब रहस्यमय बनाने का नहीं। सुलभता से असली जिज्ञासु को सुविधा होगी। अपात्र की सच्ची बातों में रुचि ही नहीं होती। वह इसका लाभ क्या उठायेगा? भय खतरे की आशंका से होता है।
            मुकाबला, पलायन और समर्पण ये 3 मुख्य व्यवहार भय के उत्पन्न होने पर होते हैं। भयानक घटनाएँ मन पर अपनी छाप स्मृतियों के रूप में छोड़ती हैं। वे स्मृतियाँ प्रायः अरुचिकर होती हैं इसलिए भीतर ही भीतर जीव जगत को प्रेरित तो करती हैं पर जरूरी नहीं कि पूरी घटना एवं उसकी छाप स्मरण में आए।
            तंत्र शास्त्र ऐसे भय एवं उसके दुष्परिणामों को दूर करने का उपाय बताता है। उपाय करने के समय भी मुख्यतः निन्म सिद्धांतों का सहारा लिया जाता है -  शक्ति का अहसास, यथास्थिति को स्पष्ट करना, सहायक, मित्र या किसी पराक्रमी का संरक्षण, संसाधनों की समझ, जैसे- हथियार, पैंतरेबाजी, मार्शल आर्ट,  संगठन का बल, समस्या को झेलनं का अभ्यास - तितीक्षा, विस्मृति, स्मृति का रूपांतरण, भ्रम-निवारण एवं स्मृतियों की टूटी कड़ी को व्यवस्थित कर देना। इन सिद्धांतों के अनुसार मूल अनुष्ठानों की रचना कर फिर सहायक सामग्री को संयोजित किया जाता है। मुख्य सहायक सामग्रियाँ हैं - अनुष्ठान के अनुरूप स्थान, समय, परिवेश, ध्वनि, उतार-चढाव, कविता एवं उसके अर्थ, रंग स्वाद, तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाले दृश्य - नशीले तथा नशा उतारने वाले पदार्थ, मित्र एवं शत्रुक्त लगने वाले जीव या मानसिक व्यक्तित्व, प्रायश्चित्त, उत्सव जैसे सामूहिक अभ्यास।
            मैं यह संक्षिप्त विवरण दो कारणों से दे रहा हूँ। एक यह कि हर बात को Super natural कहने एवं भागने की जगह उसे समझने का भी प्रयास करना चाहिए। बिना समझे पुत्र, पत्नी, माता-पिता, गुरु या मित्र किसी का भी आप भला नहीं कर सकते। दूसरा यह कि बहुत लोग यह बकबक करते रहते हैं कि सब कुछ गुप्त या गोपनीय है तो फिर फेशबुक पर विभिन्न लोग कुछ न कुछ लिख कैसे देते हैं, चाहे वे बी0एन0 मिश्र हों, शशिरंजन मिश्र हो, नीलकंठ मिश्र हों, चन्द्रशेखर कश्यप हों जो मर्यादित ही सही टिप्पणी तो करते ही हैं या कोई अन्य जो पता नहीं कुछ समझ कर लिखते हैं या मन की मौज में।
            आज मानव बम बनाया जा रहा है। यह सम्मोहन के रहस्य को समझने का दुरूपयोग है। किसी को सम्मोहित करने का उपाय न बताएं अच्छी बात है पर सम्मोहन विद्या के अस्तित्व, सदुपयोग, दुरुपयोग की चर्चा के बगैर इस जाति की समस्या की चर्चा हीं संभव नहीं है। हम सम्मोहित लोगों को स्वस्थ सजग बनाने की सेवा तो कर ही सकते हैं। मैं यह काम सेवा भाव से करता रहता हूं। इससे किसी को हानि नहीं होती। पैसा न कमाने की शर्त रख लीजिये आत्मानुशासन स्वयं आ जायेगा।
            यह विद्या आज भी अपनी बिरादरी में अनेक लोगों की अप्रतिष्ठा एवं पतन का कारण है तो यह सावधानी तो बरतनी ही होगी कि पतन एवं उलझन से कैसे बचा जाय? अभी यज्ञ व्यवसाय का समय है। ऐसी कई मंडलियाँ हैं जो भीड़ इकट्ठा करना जानती हैं। उनके पास न बड़ा मठ है, न बड़ी पूँजी। खेल फिर भी चल रहा है। बिना मठ, महंत के रोज जगतगुरु पैदा किये जाते हैं, मिटाए जाते हैं। 25-50 लाख का खेल होता है। सर्कस की तरह तमाशा खत्म और अगले पड़ाव पर मिलते नहीं, यहां तो सारे कलाकार ऐसे गुम या सामान्य कि लगे कि अरे यह तो नाटक था, कि नहीं था, इसी दुविधा में दर्शक भक्त बने रहें।
            यह विद्या अब दूसरे लोगों ने भी सीख ली है। एक M.B.A. को भेजकर जरा किसी यज्ञ आयोजन का अर्थशास्त्र समझवा तो लीजिए पता चल जायेगा कि कितने बड़े दिमाग वाले आयोजक लोग हैं।
            मैं इस बात का पक्षधर हूँ कि लोगों को तंत्र विद्या के गूढ़ पक्षों को समझ कर समझदार तो हो ही जाना चाहिए। कम से कम दूसरे बाबाओं के समेहन में तो नहीं पड़ेंगे। ईमानदार बनना न बनना उनकी बात है और गलत कार्य का दुष्परिणाम जानने पर उनके मन में भयवश, संगठनवश और अंततः ज्ञानवश भी कुछ अंकुश तो लगेगा ही।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

संज्ञा एवं छाया
भविष्य पुराण एवं सांब पुराण में संज्ञा तथा छाया नाम की सूर्य की दो पत्नियों की चर्चा आती है। प्रश्न उठता है कि ये संज्ञा एवं छाया नाम की 2 पत्नियों के कहने का मतलब क्या है? जब तक इसे मिथक मानेंगे तब तक समझ में आना असंभव। जैसे ही सौर तंत्र को समझने का प्रयास करेंगे वैसे वैसे संज्ञा एवं छाया के नामकरण एवं उसके अंतर्निहित अर्थ प्रगट होते जायेंगे। सुविधा एवं संक्षेप के लिये - सौर तंत्र के 2 भाग हैं। एक बाह्य सौर प्रणाली को समझना, उस पर आधारित देश तथा काल संबंधी माप एवं भविष्य ज्ञान सहित दैनिक उपयोग में लाने की विधियां विकसित करना। यह सब सूय्र तथा सौर मंडल के आकाशीय पिंडों की पृथ्वी पर पड़ने वाली छाया के मापन के माध्यम से संभव होता था। प्रत्येक मग ब्राह्मण के गांव में एक छोटी-बड़ी सरल वेधशाला जरूर बनाई जाती थी। यह हुई सूर्य की पत्नी छाया संबंधी पक्ष। यह नकली है। बाह्य ज्ञान मूलक है। इसके लिये बड़े ताम-झाम की भी आवश्यकता होती है।
    इससे भिन्न चिदाकाश में ध्यान विधियों द्वारा सूर्यमंडल की साधना, पंचाग्नि, त्राटक सूर्यमंडल बेध आदि की साधना संज्ञा पक्ष है। इसमें बाह्य संसाधन से अधिक अनुभूति परक ज्ञान का महत्त्व होता है। साधक स्वयं चलती-फिरती बेधशाला बन जाता है।
    छाया पक्ष वाले संज्ञा पक्ष वालों से जलते थे। जलन की समस्या पुरानी है। संज्ञा पक्ष वालों का जलना संभव न्हीं क्योंकि एक तो जलन का कारण नहीं है और भौतिक उपलब्घियों से जलने पर विद्या के ही नष्ट हो जाने का संकट भी है।
    मग ब्राह्मणों ने संसार का जब तक उपकार किया वे अग्रणी रहे। धीरे-धीरे दोनों ही पक्ष नघ्ट होते गये। ग्रथों को पढ़ने पर समझ में आता है कि आज भी ऐसी छोटी वेधशालाएं बनाई जा सकती हैं। क्या कभी आपमें से किसी का ध्यान इस तरफ गया है। अनेक ज्योतिषी, तंत्राचार्य internet , फेशबुक पर भी मौजूद हैं। उनके विचार भी अनमोल हैं।