मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

संज्ञा एवं छाया
भविष्य पुराण एवं सांब पुराण में संज्ञा तथा छाया नाम की सूर्य की दो पत्नियों की चर्चा आती है। प्रश्न उठता है कि ये संज्ञा एवं छाया नाम की 2 पत्नियों के कहने का मतलब क्या है? जब तक इसे मिथक मानेंगे तब तक समझ में आना असंभव। जैसे ही सौर तंत्र को समझने का प्रयास करेंगे वैसे वैसे संज्ञा एवं छाया के नामकरण एवं उसके अंतर्निहित अर्थ प्रगट होते जायेंगे। सुविधा एवं संक्षेप के लिये - सौर तंत्र के 2 भाग हैं। एक बाह्य सौर प्रणाली को समझना, उस पर आधारित देश तथा काल संबंधी माप एवं भविष्य ज्ञान सहित दैनिक उपयोग में लाने की विधियां विकसित करना। यह सब सूय्र तथा सौर मंडल के आकाशीय पिंडों की पृथ्वी पर पड़ने वाली छाया के मापन के माध्यम से संभव होता था। प्रत्येक मग ब्राह्मण के गांव में एक छोटी-बड़ी सरल वेधशाला जरूर बनाई जाती थी। यह हुई सूर्य की पत्नी छाया संबंधी पक्ष। यह नकली है। बाह्य ज्ञान मूलक है। इसके लिये बड़े ताम-झाम की भी आवश्यकता होती है।
    इससे भिन्न चिदाकाश में ध्यान विधियों द्वारा सूर्यमंडल की साधना, पंचाग्नि, त्राटक सूर्यमंडल बेध आदि की साधना संज्ञा पक्ष है। इसमें बाह्य संसाधन से अधिक अनुभूति परक ज्ञान का महत्त्व होता है। साधक स्वयं चलती-फिरती बेधशाला बन जाता है।
    छाया पक्ष वाले संज्ञा पक्ष वालों से जलते थे। जलन की समस्या पुरानी है। संज्ञा पक्ष वालों का जलना संभव न्हीं क्योंकि एक तो जलन का कारण नहीं है और भौतिक उपलब्घियों से जलने पर विद्या के ही नष्ट हो जाने का संकट भी है।
    मग ब्राह्मणों ने संसार का जब तक उपकार किया वे अग्रणी रहे। धीरे-धीरे दोनों ही पक्ष नघ्ट होते गये। ग्रथों को पढ़ने पर समझ में आता है कि आज भी ऐसी छोटी वेधशालाएं बनाई जा सकती हैं। क्या कभी आपमें से किसी का ध्यान इस तरफ गया है। अनेक ज्योतिषी, तंत्राचार्य internet , फेशबुक पर भी मौजूद हैं। उनके विचार भी अनमोल हैं।

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