गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

भय एवं उसके निवारण का तंत्र


भय एवं उसके निवारण का तंत्र
            मैं किसी खाश परंपरा में ब्रांडेड तंत्र की जगह उसके मूल सिद्धांतों तथा समाज में प्रगट पक्षों के पीछे के सिद्धांतों की बात करता हूँ। मेरा प्रयास विषय को सरल करने का है, उसे बेमतलब रहस्यमय बनाने का नहीं। सुलभता से असली जिज्ञासु को सुविधा होगी। अपात्र की सच्ची बातों में रुचि ही नहीं होती। वह इसका लाभ क्या उठायेगा? भय खतरे की आशंका से होता है।
            मुकाबला, पलायन और समर्पण ये 3 मुख्य व्यवहार भय के उत्पन्न होने पर होते हैं। भयानक घटनाएँ मन पर अपनी छाप स्मृतियों के रूप में छोड़ती हैं। वे स्मृतियाँ प्रायः अरुचिकर होती हैं इसलिए भीतर ही भीतर जीव जगत को प्रेरित तो करती हैं पर जरूरी नहीं कि पूरी घटना एवं उसकी छाप स्मरण में आए।
            तंत्र शास्त्र ऐसे भय एवं उसके दुष्परिणामों को दूर करने का उपाय बताता है। उपाय करने के समय भी मुख्यतः निन्म सिद्धांतों का सहारा लिया जाता है -  शक्ति का अहसास, यथास्थिति को स्पष्ट करना, सहायक, मित्र या किसी पराक्रमी का संरक्षण, संसाधनों की समझ, जैसे- हथियार, पैंतरेबाजी, मार्शल आर्ट,  संगठन का बल, समस्या को झेलनं का अभ्यास - तितीक्षा, विस्मृति, स्मृति का रूपांतरण, भ्रम-निवारण एवं स्मृतियों की टूटी कड़ी को व्यवस्थित कर देना। इन सिद्धांतों के अनुसार मूल अनुष्ठानों की रचना कर फिर सहायक सामग्री को संयोजित किया जाता है। मुख्य सहायक सामग्रियाँ हैं - अनुष्ठान के अनुरूप स्थान, समय, परिवेश, ध्वनि, उतार-चढाव, कविता एवं उसके अर्थ, रंग स्वाद, तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाले दृश्य - नशीले तथा नशा उतारने वाले पदार्थ, मित्र एवं शत्रुक्त लगने वाले जीव या मानसिक व्यक्तित्व, प्रायश्चित्त, उत्सव जैसे सामूहिक अभ्यास।
            मैं यह संक्षिप्त विवरण दो कारणों से दे रहा हूँ। एक यह कि हर बात को Super natural कहने एवं भागने की जगह उसे समझने का भी प्रयास करना चाहिए। बिना समझे पुत्र, पत्नी, माता-पिता, गुरु या मित्र किसी का भी आप भला नहीं कर सकते। दूसरा यह कि बहुत लोग यह बकबक करते रहते हैं कि सब कुछ गुप्त या गोपनीय है तो फिर फेशबुक पर विभिन्न लोग कुछ न कुछ लिख कैसे देते हैं, चाहे वे बी0एन0 मिश्र हों, शशिरंजन मिश्र हो, नीलकंठ मिश्र हों, चन्द्रशेखर कश्यप हों जो मर्यादित ही सही टिप्पणी तो करते ही हैं या कोई अन्य जो पता नहीं कुछ समझ कर लिखते हैं या मन की मौज में।
            आज मानव बम बनाया जा रहा है। यह सम्मोहन के रहस्य को समझने का दुरूपयोग है। किसी को सम्मोहित करने का उपाय न बताएं अच्छी बात है पर सम्मोहन विद्या के अस्तित्व, सदुपयोग, दुरुपयोग की चर्चा के बगैर इस जाति की समस्या की चर्चा हीं संभव नहीं है। हम सम्मोहित लोगों को स्वस्थ सजग बनाने की सेवा तो कर ही सकते हैं। मैं यह काम सेवा भाव से करता रहता हूं। इससे किसी को हानि नहीं होती। पैसा न कमाने की शर्त रख लीजिये आत्मानुशासन स्वयं आ जायेगा।
            यह विद्या आज भी अपनी बिरादरी में अनेक लोगों की अप्रतिष्ठा एवं पतन का कारण है तो यह सावधानी तो बरतनी ही होगी कि पतन एवं उलझन से कैसे बचा जाय? अभी यज्ञ व्यवसाय का समय है। ऐसी कई मंडलियाँ हैं जो भीड़ इकट्ठा करना जानती हैं। उनके पास न बड़ा मठ है, न बड़ी पूँजी। खेल फिर भी चल रहा है। बिना मठ, महंत के रोज जगतगुरु पैदा किये जाते हैं, मिटाए जाते हैं। 25-50 लाख का खेल होता है। सर्कस की तरह तमाशा खत्म और अगले पड़ाव पर मिलते नहीं, यहां तो सारे कलाकार ऐसे गुम या सामान्य कि लगे कि अरे यह तो नाटक था, कि नहीं था, इसी दुविधा में दर्शक भक्त बने रहें।
            यह विद्या अब दूसरे लोगों ने भी सीख ली है। एक M.B.A. को भेजकर जरा किसी यज्ञ आयोजन का अर्थशास्त्र समझवा तो लीजिए पता चल जायेगा कि कितने बड़े दिमाग वाले आयोजक लोग हैं।
            मैं इस बात का पक्षधर हूँ कि लोगों को तंत्र विद्या के गूढ़ पक्षों को समझ कर समझदार तो हो ही जाना चाहिए। कम से कम दूसरे बाबाओं के समेहन में तो नहीं पड़ेंगे। ईमानदार बनना न बनना उनकी बात है और गलत कार्य का दुष्परिणाम जानने पर उनके मन में भयवश, संगठनवश और अंततः ज्ञानवश भी कुछ अंकुश तो लगेगा ही।

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