बुधवार, 18 सितंबर 2013

यहां तो कोई जजमान या गैर नहीं है।

आज जब मैं पितृपक्ष पर बननेवाली डाक्यूमेंटरी की सूटिंग की पूर्व तैयारी में बतौर रेकी पुनपुन के घाटों तथा अन्य स्थानों पर अपनी कैमरा टीम के साथ घूम रहा था तो तो सोचा कि जरा देव,देवकुली आदि गांवों स्थानों पर जा कर देखा जाय कि वहां हाल क्या है?
मित्रों आज मैं बहुत दुखी हुआ कि धर्म का रोजगार करने पर भी मंदिर, मूर्ति, परंपरा, इतिहास किसी के प्रति न तो निष्ठा है, न जिज्ञासा। संरक्षण, सम्मान गौरव आदि की बात तो बहुत दूर की है। 1978 में देवकुली प्रांगण में जितनी मूर्तियां थीं, उनमें से शिव लिंग के अतिरिक्त मात्र एक ही मूर्ति बची है।
देव मंदिर जो सूर्य मंदिर के रूप में विख्यात है, वहां के मुख्य विग्रह को हटा दिया गया है। पिछले कुछ सालों में काले ग्रेनाइट पत्थर के मूर्ति-पीठ, स्टेज को माडर्न टाइल्स से ढंक दिया गया है। पुजारी जी अब न जाने किस धारा के प्रभाव में आ कर उस मंदिर में सूर्य की जगह ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिदेवों की मूर्ति बता रहे हैं। लाल एकरंगा से पूरा शरीर ढंक दिया गया है।
इस तरह के ढोंग, लालच, नासमझी जो भी कहें अततः बहुत घातक होते हैं। जजमान एवं आगत श्रद्धालु को मूर्ख मानकर मनमाना व्याख्यान, इतिहास गढ़ना एवं उपदेश का दुष्परिणाम ऐसा हुआ कि आज अपनी साधना परंपरा, कुल परंपरा, इतिहास किसी बात की पक्की जानकारी नहीं है। फेसबुक पर जो भी हैं कृपया मेरी इस पीड़ा पर एक बार गौर करें। यहां तो कोई जजमान या गैर नहीं है। इसलिये कम से कम अपनी जाति के लोगों के समक्ष धर्म एवं परंपरा के मामले में सच बोलें, यहां प्रचार करने और प्रभाव जमाने की दृष्टि न रखें। आगे आपकी जो इच्छा।

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