सोमवार, 23 सितंबर 2013

सौर तंत्र

सौर तंत्र
महत्वपूर्ण यह है कि जजमान को ठगते-ठगते हम स्वयं धोखे का शिकार होत गए। तंत्र केा ज्ञान आधारित वस्तुनिष्ठ नहीं बता कर उसे मानना और केवल श्रद्धा आधारित बताया जाने लगा।
शार्टकट की हद तो यह है कि हर भौतिक या अभौतिक समस्या का समाधान किसी न किसी पंचोपचार या षोडषोपचार पूजा से चाहते हैं। दरअसल सौर तंत्र सीधा-साधा है। संज्ञा पक्ष में पंच महाभूतों के विज्ञान (सूक्ष्म तन्मात्रा स्तर पर पहचानने की विधि में दक्षता) के बल पर मौसम से लेकर भविष्य कथन तक किए जाते हैं। समस्या यह है कि सायंस की जगह ‘विज्ञान’ शब्द का प्रयोग होने से भारतीय ‘विज्ञान’ की समझ ही समाप्त हो गई है।
सौर तंत्र जिसका पूरा विस्तृत विवरण प्रकाशित और उपलब्ध है, उसकी जगह केवल मूर्ति प्रतिष्ठा, मंदिरों की पूजा अर्चना तक हम अपने को सीमित रखना चाहते हैं। इससे तो कुछ रुपयों की कमाई के अतिरिक्त केाई लाभ नहीं होने वाला। कमाई तो सच्चे ज्ञान से भी होती, मनोरोगियों एवं कई मानसिक रोगों का उपचार तंत्र से हो ही सकता है लेकिन यहाँ तो बात पीछे केवल चमत्कार का दावा करने की मानसिकता है।
किसी विषय को जानकर उसे मानने में वास्तविक ज्ञान एवं भक्ति दोनों की जरूरत होती है। सूर्य की कार्य प्रणाली को जान-समझ कर ऊर्जा के मूल स्रोत के प्रति श्रद्धा रखने की विधि अलग होगी। उसके लिए सूर्योदय के पूर्व जागना होगा, सूर्य नमस्कार करना होगा। सूर्य बिंब पर बाह्य त्राटक अंतर्त्राटक, सूर्यमंडल की अंदरूनी समझ, ऋतुचक्र तथा सौर परिवार रूपी इसी सौर मंडल की चाल-ढ़ाल अर्थात् ऋतु संक्रांति आदि आधारित जीवन के अनुरूप जीवन जीना होगा।
छाया पक्ष की दृष्टि से छाया मापन उसके लिए मंदिर साथ छोटी-छोटी बेधशालाएँ, सौरघड़ी आदि हर घर में नहीं प्रत्येक गांव-शहर में बनाना तथा छात्रों को परंपरागत खगोल एवं गणित पढ़ाना होगा।
यह सब कौन कहाँ चाहता है? फटाफट बाजार से मूर्ति खरीदी। कहीं पर यज्ञ आदि का आयोजन कर झूठी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी, तो इससे चढ़ावा जल्दी चढ़ने लगेगा। नौ ग्रहों का नाम मालूम हो या न हो, ज्योतिषी और तांत्रिक तुरत हो गए। भविष्य कथन सही हुआ तो ज्योतिषी के चमत्कार से, नहीं हुआ तो ..... बहाने अनेक हैं।
सौर तंत्र के साथ खिलवाड़ करते-करते शैव, शाक्त, पांचरात्र, गाणपत्य आदि को भी हमने नहीं छोड़ा। जातीय समाज के जिन मनीषियों ने विद्यार्जन, एवं साधना का तप किया उन्हें पहले भी प्रथमा पास (सातवीं पास) पंडितों ने खूब छकाया, अपमानित किया। वे बेचारे दुबके रहे। बात पीछे चमत्कार कैसे करें?
पहले इन्हीं मूख्र पंडितों ने और अब तो सभी धारा के लोग चाहे उन्होंने शास्त्रीय या साधनात्मक किसी भी दिशा में श्रम कर दक्षता पाई हो या नहीं, स्वयं को तो चमत्कारी सिद्ध करते हैं किंतु जैसे ही किसी वास्तविक प्रसंग की चर्चा छेडें कुछ बातें नहीं, सारी बातों को ही गोपनीयता के दायरे में लाने लगेगें। खुद मालूम नहीं, तो सब गुप्त या लुप्त हो गया।
सूर्य सिद्धांत एक प्रचलित, प्रकाशित ग्रंथ है। इस तरह के भारतीय खगोल शास्त्र की कई पुस्तकें हैं। उन्हे जरा उलट-पुलट कर देखिए तो सही कि छोटी-छोटी छाया मापन विधियोँ का वर्णन है कि नहीं। काशी से आदित्य पंचांग भी सरयुपारी निकालते हैं। मेरे श्रद्धेय और कुछ दिवंगत लोगों को पंचांग निकालने की हिम्मत ही नहीं हुई। रोजबरोज चमत्कार एवं गोपनियता के अतिवादी बहानों से निकलने के बाद ही परंपरा को बचाया जा सकता है।
सूर्य का शिव एवं शिव का सूर्य में, सूर्य का आदित्य एंव विष्णु में, विष्णु का सूर्य में समावेश करने का नाटक पुराना है। एक ग्रंथ है सौर पुराण नाम सुनकर लगेगा कि सौर तंत्र का गं्रथ है। कई नकली लोग इसकी खूब महिमा भी बताएंगे, जिन्होंने पढ़ा नहीं केवल नाम सुना है। आप जब पढ़े तो पता चलेगा कि यह तो शैव परंपरा का गं्रंथ है। इसमें 2-4 पृष्ठों के बाद सूर्य को शिव में तिरोहित कर दिया गया, हो गया खेल खत्म। समाज भी कम धूर्त और कृतध्न नहीं है। उसने क्या किया? समाज ने संपूर्ण सौर तंत्र को कर्मकांड में सम्मिलित कर उसे ज्योतिष और मुहूर्त का विषय बना लिया। बडे़ निर्णय आज भी सौर वर्ष, सौर माह, एवं तिथि पर आधारित हेाते हैं। खेती, कर की वसूली, विवाह आदि सभी अभी भी (कर वसूली छोड़कर) सौर पंचाग से होते हैं पर सिक्का चला हुआ है चान्द्र मास और चान्द्रगणना का।
संज्ञा पक्ष में आएँ तो स्वर शास्त्र (आंतरिक नाड़ी विद्या एवं फलादेश) है तो सौर परंपरा का  लेकिन अब वह शिव स्वरोदय नाम से जाना जाता है।
आज के समय में या तो जानकार लोग एकजुट हो कर युग की चुनौतियों का सामना करें। तथात्मक उत्तर दें अन्यथा अपने घर का लड़का जनेऊ पहनने को तैयार नहीं है। प्रश्न है जनेऊ पहनने की सार्थकता क्या है? ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना और ढ़ूंढना वरिष्ठ पीढी का दायित्व है। केाई यह टिप्पणी कर सकता है कि आपने पूरे लेख में बताया ही नहीं कि सौर तंत्र है क्या? मित्रों यह कोई छोटे उत्तर वाला प्रश्न नहीं है न मैं प्रश्न की महत्ता केा कम करना चाहता हूँ इसीलिए पुस्तकों का नाम बताया, मूलभूत सिंद्धांत ओर सबसे बड़ी बात परंपरा के रहस्य को सामने रखा कि संज्ञा और छाया का मतलब क्या है? कुछ परिश्रम आप भी तो करें। सांब पुराण के अध्यायों के विषयों को संक्षिप्त विवरण मैंने अपने ब्लाग पर लिखा है। वहाँ आप कई बातंे पढ़ सकते हैं।

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