सोमवार, 2 सितंबर 2013

बिरादरी की पहचान एवं परंपरा की उलझनें: कुछ फुटकर प्रश्न

सांब ने मूलस्थान में चन्द्रभागा नदी के किनारे सूर्य की स्थापना की। इस पौराणिक सूचना का अर्थ लगाने एवं ईरान से संबंध स्थापित करने में क्या क्या कल्पना करनी पड़ती है, जरा गौर करें। पहले तो चन्द्रभागा नाम की नदी कहीं मिल नहीं पाती। इसे संगत बताने के लिये चिनाब को चन्द्रभागा मानना पड़ता है। मूलस्थान को मुल्तान मानना तो समझ में आता है। लेकिन स्वप्न, समुद्र, काष्ठ की प्रतिमा बनवाना, वह भी खराद या किसी यंत्र पर चढ़ा कर बनाना, रक्त चंदन का लेप आदि से इस परंपरा के मूलस्थान/मुलतान में होने की बात बैठती नहीं है। विष्णु भी तो क्षीर सागर वासी हैं।
          एक दूसरी परिस्थिति दिखाई दे रही है। उड़ीसा में काष्ठ प्रतिमा चलन में है। यह सूर्य की काष्ठ प्रतिमा वाली बात कुछ मिलती जुलती है। कोणार्क भी तो चन्द्रभागा नदी के किनारे है। भविष्य पुराण की कथाओं में यहां तक कि सत्यनारायण व्रत कथा में आता है- ‘‘चन्द्रभागा नदी तीरे सत्यस्य व्रतमाचरत’’। कुछ लोग क्षीर समुद्र को भारत के पूरब में बर्मा एवं उससे आगे का भाग मान रहे हैं। यहां कुछ संबंध सा लगता है। कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं को कहीं न कहीं स्मृति परंपरा एवं पौराणिक परंपरा में छुपाया गया है, जिसके कारण बातें स्पष्ट नहीं हो पा रही हैं।
          सूर्य को आदित्य (12 आदित्य) समूह में मानना, वसु समूह में मानना फिर अर्क नाम के विविधि रूपों में वर्गीकृत करना ये सारी बातें विभिन्न परिवर्तनों की ओर इंगित करती हैं। कुछ के भौतिक उदाहरण भी मिलते हैं, जैसे - वाराणसी में 12 आदित्यों की स्थापना। अन्य स्थानों पर सूर्य मंदिर हैं फिर भी उनमें संगति नहीं बैठ पाती।
          स्वजातीय सामाजिक पहचान तथा व्यवहार में जो स्थिति है वह और समझ में नहीं आती। कुछ पुरों के नाम हैं- पुण्यार्क, वरुणार्क, गुण्यार्क आदि। इनमें केवल वरुणार्क पुराणोक्त वर्गीकरण के अंदर आता है, बाकी के आधार के बारे में जानकारी नहीं मिलती। पुरों के वर्गीकरण के संबंध में अर्क, आदित्य तथा रश्मि वाली बात का मतलब क्या है? हमारे जीवन, व्यवहार, साधना आदि से इसका क्या संबंध है?

          कोई इसे अपनी जानकारी से स्पष्ट कर सकें तो बड़ी मेहरबानी होगी। अगर आपकी जानकारी में कोई ऐसे ज्ञानी हैं जो स्पष्ट कर सकते हैं तो उनसे पूछ कर बतायें, उनका पता भेजें। कृपया अपने मन से सूचना न गढें, न ही किसी की महिमा वृद्धि के लिये उनसे जाने-पूछे बिना ही कोई दावा उनके नाम से करें। मैं यह सब झेल चुका हूं। आप अपने हैं, अपना काम है, अपनों के लिये है, इस भाव से मदद करें।

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