शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

इतिहास खोजने की बात है या लिखने की? 1


मैं अक्सर लोगों को मग बिरादरी का इतिहास लिखते हुए पाता हूं। कोई लेख लिखता है तो कोई पूरा नया पुराण ही लिख डालता है। एक ब्राह्मण होने के नाते सावधानी भी नहीं रखते कि भाई पुराण लिखने का अधिकार ही किसी को नहीं है। उस पर भी उस पुराण का रचनाकार होने का दावा करते ही उसकी विश्वसनीयता और पवित्रता समाप्त।
ऐसा तो केवल वर्ण-जाति व्यवस्था विरोधी लोग ही कर सकते हैं। एक भूल एक बड़ी मंडली ने की। पुराने आर्य समाजी और बाद में गायत्री की मूर्तिपूजा करने वाले श्री राम शर्मा आचार्य के अनुयायी लोग। उन्होने प्रज्ञा पुराण लिख डाला और लेखक का नाम भी दे दिया। सनातनी दृष्टि से यह मान्य नहीं है।
अभी कलर चैनल पर एक ऐतिहासिक सीरियल आ रहा है- चक्रवर्ती अशोक। उसमें मगध साम्राज्य एवं एवं आचार्य चाणक्य दोनों के कई विरोधी हैं। उनमें एक विरोधी वराह मिहिर को भी बताया गया है, वह भी केवल वक्तब्य में अर्थात संवाद में।
अब जरा स्वयंभू इतिहास रचनाकार बताएं कि वे क्या करेंगे। चाणक्य को अपनाएंगे या वराह मिहिर को। हमारा इतिहास अध्ययन भीड़ तंत्र और भेड़ तंत्र दोनों का शिकार हो गया। ऐसे नमूने और भी हैं। कल दूसरा प्रसंग।

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