गुरुवार, 8 सितंबर 2011

गया जी श्राद्ध में मग ब्राह्मणों की भूमिका

सामान्यतः
मग ब्राह्मण पूरे भारत में विभिन्न मंदिरों में पुजारी का काम करते हैं। सूर्य मंदिर का पुजारी, भोग लगाने वाला भोजक कहा जानेवाला धीरे-धीरे वैदिक एवं जैन दोनों मंदिरों का पुजारी बनता चला गया। अन्य ब्राह्मण विभिन्न मंदिरों के पुजारी होने पर मग ब्राह्मणों का उतना विरोध कर नहीं पाते क्यांेकि मंदिर बनाने वाले राजा या सेठ की ताकत भी उसके पीछे रहती है।
पुरोहिती, यज्ञ में भाग लेना और श्राद्ध में मग ब्राह्मणों की भूमिका बार-बार झगडे़ का रूप लेती है क्योंकि यह समाज आधारित विकेन्द्रित और व्यापक वर्चस्व का क्षेत्र होता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, उडी़सा के कई किस्से मशहूर हैं। फिर भी आज की तारीख में समाज में लगभग सभी जगह अन्य ब्राह्मणों की तरह मग ब्राह्मणों को स्थान मिलता है।
उत्तर भारतीय ग्रंथों का विशेष उपबंध
श्राद्ध सूर्यास्त के बाद नहीं हो सकता फिर भी अगर बिलंब हो जाय तो क्या करं?
इसका समाधान यह निकाला गया है कि सूर्यवंशी शाकद्वीपी ब्राह्मण को सामने बिठाकर श्राद्ध पूजा करें। बिहार में यह घटना दरभंगा नरेश के यहाँ हुई।

गया श्राद्ध में
गया में प्रवेश के पूर्व पश्चिम एवं उत्तर से आने वाले लोग दो-तीन स्थानांे पर पुनपुन नदी में प्रवेश कर पहला तर्पण आदि कार्य पूरा करते हैं। इन तीनों स्थानों पर मग ब्राह्मण ही पंडा एवं पुरोहित दोनो हैं, चाहे वह स्थान पुनपुन घाट(जम्होर) हो या पुनपुन घाट (पटना जिला) या देवहरा (गोह)।
गया तीर्थ क्षेत्र में भी मातंगवापी क्षेत्र एवं वेदी के पंडे भग ब्राह्मण हैं।
इनके अतिरिक्त अनेक मग ब्राह्मण पंरंपरानुसार गया क्षेत्र मे पिंडदान कराने में आचार्य का काम करते हैं, कुछ स्वतंत्र ढंग से तो कुछ पंडों के कर्मचारी की तरह। इस प्रकार गया श्राद्ध में आज भी इनकी प्रभावी भूमिका है।
गया श्राद्ध के विषय में विस्तृत जानकारी के लिये पढे़ं -
http://gayashraadha.blogspot.com/

कोई टिप्पणी नहीं: