सोमवार, 19 जनवरी 2015

सूर्य सप्तमी और सूर्य पूजा

सूर्य सप्तमी व्रत-पूजा-उत्सव संदर्भ कथा
पिछले वर्ष मैं ने सूर्य सप्तमी के अवसर पर की जाने वाली पूजा को सांब पुराण के अनुसार किये जाने का सुझाव दिया था, जो अपनी परंपरा का मूल ग्रंथ है। इसमें विस्तार से सूर्य साधना की अनेक विधियां दी गई हैं। जो भी संस्था/संगठन इसे पसंद करें उनके लिये विवरण नीचे उपलब्ध है।
माघ शुक्ल सप्तमी के दिन व्रत एवं पूजा के साथ उत्सव मनाने का वर्णन पुराणों में मिलता है। भविष्य पुराण और उसके उप पुराण सांब पुराण में सूर्य सप्तमी का वर्णन है, उसमें भी केवल सूर्य संबंधी होने के कारण सांब पुराण में यह विषय विस्तृत रूप से वर्णित है।
यह व्रत वस्तुतः 2 दिनों षष्ठी और सप्तमी मिला कर मनाने का प्रावधान है, जिसे बाद में केवल षष्ठी या केवल सप्तमी के दिन भी मनाने का विकल्प दिया गया। षष्ठी के दिन व्रत और सप्तमी के दिन उत्सव का स्वरूप होने से कालांतर में सप्तमी वाला ही अधिक प्रचलित रहा। इसे भानु सप्तमी एवं रथ सप्तमी भी कहा गया है। मूलतः कहा जाय तो यह रथ सप्तमी है। इस अवसर पर सूर्य के रथ के निर्माण और रथ यात्रा का पहले प्रचलन था, जिसका विधान सांब पुण में सूर्य सप्तमी पूजा के रूप में है। इस अवसर पर रथ निर्माण से ले कर रथ यात्रा निकालने तक की चलन रही, साथ ही सूर्यमंडल के निर्माण के बाद उसमें सौर तंत्र साधना पंरपरा में दीक्षा भी दी जाती थी। बाद में जब लोगों ने सौर तंत्र में दीक्षा ले कर साधना करना छोड़ दिया क्योंकि यह साधना पद्धति मुख्यतः योग मार्ग का होने के कारण तुलनात्मक रूप से कठिन होती थी साथ ही मंदिरों से जब चढ़ावा बिना मिहनत मिले तो साधना कौन करे का भाव भी आ गया। मंदिर के प्रबंधन में मगों की इतनी दक्षता थी कि अन्य संप्रदाय के लोग भी इन्हें कहीं पुजारी, कहीं प्रबंधक नियुक्त करने लगे थे।
सूर्य मंदिरों की संपत्ति पर दूसरों के कब्जे और मग बिरादरी की उदासीनता के कारण बहुत दिनों तक रथ यात्रा एवं सूर्य सप्तमी बंद रही। कुछ लोग इसे अचला सप्तमी के रूप में मनाते रहे। इसमें किसी जाति विशेष की सीमा नहीं रही। इस प्रकार रथ सप्तमी का संदर्भ तो लोग भूल ही गये। यहां तक कि जहां सूर्य मंदिर हैं वहां भी न तो रथ निर्माण होता है न रथ यात्रा निकाली जाती है।
इसके बाद जब बिरादरी एकता एवं संगठन के प्रयास शुरू हुए तब सूर्य सप्तमी को पूरे भारत में शाकद्वीपी लोगों की वार्षिक पूजा के रूप में स्वीकार किया गया। इसके बाद एक दिवसीय सूर्य सप्तमी और सूर्य पूजा की चलन शुरू हुई लेकिन अन्य ग्रंथों के आधार पर, जब कि सांब पुराण में पूरी पूजा विधि दी हुई है। इसी में आंशिक कालोचित संशोधन कर सूर्य सप्तमी व्रत पूजा करना परंपरा के अधिक करीबी है।
सांब पुराण शाकद्वीपियों का सर्वाधिक विस्तृत और पारंपरिक ग्रंथ है। अतः अन्य जो करें शाकद्वीपी लोगों को सांब पुराण पर भरोसा करना चाहिये। सूर्य सप्तमी/अचला सप्तमी व्रत के अनेक लाभ बताये गये हैं, जिनमें एक लाभ यह है कि इस दिन किया गया कार्य हमेशा स्थाई होता है।
सांब पुराण अध्याय, 38, 55, एवं अन्य पर आधारित


श्री शशि रंजन मिश्र से अनुरोध है कि वे सांब पुराण वाला लिंक एक बार फिर से पेस्ट कर दें या अध्याय 38 को डॉक्युमेंट फार्म में उपलब्ध करा दें ताकि लोग आसानी से प्रिंट निकाल कर उसका उपयोग कर सकें।
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