शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

सांब पुराण परिचय

सांब पुराण परिचय
(4 किश्तों में)
भारतीय संस्कृति में ब्राह्मणों का स्थान श्रेष्ठ माना गया है। इसलिए अनेक लोग ब्राह्मण होने के लिए लालायित रहते हैं। कुछ लोग जो जन्म से ब्राह्मण नहीं हैं, वे कभी-कभी ब्राह्मणों के प्रति ईर्ष्याग्रस्त हो जाते हैं। इसके विपरीत कुछ ब्राह्मण अपने जाति के अहंकार में ग्रस्त होकर अपने मूल दायित्वों से विचलित हो जाते हैं और अन्य वर्णों के प्रति हीन भावना रखते हैं। ब्राह्मणों में प्रचलित जाति श्रेष्ठता का भाव तब चरम पहुँच जाता है जब वे ब्राह्मणों के बीच भी छुआछूत और आत्म-गौरव के अहंकारी रूप में व्यवहार करते हैं।
उपपुराण प्रायः किसी एक देवता के प्रति ही समर्पित होते हैं। मुद्गल पुराण श्री गणेश की पूजा के प्रति समर्पित है। ठीक उसी प्रकार से सांब पुराण में भगवान भाष्कर, जो आदित्य हैं, उनके बारह रूपों में अर्थात् द्वादश आदित्य के रूप में उनकी पूजा की विधि एवं पूजकों का वर्णन है। कोई भी देवता तब तक पूर्णतः स्वीकृत नहीं हो पाते हैं, जबतक आम आदमी उसे स्वीकार न कर ले। आम आदमी को देवता की मदद केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए ही नहीं चाहिए उसे लोक एवं परलोक दोनों ही स्थानों पर सुख चाहिए। जो देवता लौकिक एवं पारलौकिक दोनों वेशों में सफलता दिला सकें, आम आदमी उन्हें ही पूरी तरह स्वीकार करता है। रोग निवारण एक प्रबल लौकिक आकांक्षा है, उसके बाद संतानोत्पत्ति और सम्पत्ति का स्थान आता है।
इतना ही नहीं जब वे सारी भोग सामग्रियां उपलब्ध हो जाती हैं, तब शत्रुओं से उनकी रक्षा का संकट भी आता है। सांसारिक जीवन में ऐसी कई समस्याएँ आती ही रहती हैं। इन्हीं समस्याओं के निराकरण हेतु तंत्रशास्त्र में मारण, मोहन, स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और विद्वेषण जैसे छह अभिचारों की परंपरा लंबे दौर तक चलती रही। जब सूर्य पूजा अपने चरम पर थी उस समय द्वादशादित्यों के माध्यम से भी अभिचार कर्म किया जाना स्वाभाविक था। सांब पुराण में भी इन सभी अभिचार कर्मों की विधियाँ लिखी हुई हैं।
    बहुत दिनों से सांब पुराण उपलब्ध नहीं था, ऐसा कहना तो ठीक नहीं होगा लेकिन मैं इसे अपना दुर्भाग्य ही समझता हूँ कि पिछले पच्चीस वर्षों के विद्वत्जनों के साथ सत्संग में मुझे एक भी पारंपरिक आचार्य ऐसे नहीं मिले, जिन्होंने सांब पुराण को अपनी नजरों से देखा हों और उसका पारायण किया हो। प्रायः सभी लोग सांब पुराण के नाम से परिचित रहे हैं और कुछ लोगों ने इसके उद्वरणों को यत्र-तत्र पढ़ा है। पता नहीं प्रकाशित होने के बावजूद इस ग्रंथ के नाम जपने में तो लोगों की रुचि रही लेकिन अनेक मूर्धन्य विद्वानों ने भी इसे पढ़ना जरूरी नहीं समझा। इसके कारण भ्रांतियाँ बनी रहीं और लोग मनमानी बातें करते रहे।
    मुझे सौभाग्य से अपने ही घर के पुस्तकालय में सुन्दर मुद्रण में सांब पुराण की प्रति उपलब्ध हो गयी। यह श्री वेंकटेश मुद्रणालय, मुम्बई द्वारा प्रकाशित है। इसी संस्करण को आधार मान कर मैंने यहाँ यह संक्षिप्त विवरणी तैयार की है, ताकि सामान्य संस्कृत ज्ञान वाले लोगों को भी ग्रंथारंभ के पूर्व यह जानकारी मिल सके कि सांब पुराण की मूल सामग्री क्या है और सांब पुराण के पारायण में लोगों की रुचि बन सके।
संपूर्ण बिहार और विशेषकर मध्य बिहार द्वादशादित्यों के मंदिर राज्यों का क्षेत्र रहा है। ऐसे में द्वारशादित्यों की पूजा की, प्रामाणिक विधि का ज्ञान आदित्य भक्तों को होना बेहद जरूरी है। सांब पुराण की भाषा अत्यंत सरल है और इसे समझना सामान्य संस्कृत ज्ञान वाले लोगों के लिए सुविधाजनक है। इसी कारण से मैंने ग्रंथ की काया को बढ़ाने वाले अनुवाद कराने एवं अनुवाद के साथ प्रकाशित करने का विचार नहीं किया। इसमें प्रायः बीज मंत्र हैं और उनकी आनुष्ठानिक विधियाँ हैं। अब बीज मंत्रों का भला क्या अनुवाद होगा और जो इस स्तर का संस्कृत समझ नहीं सकते हैं, उच्चारण नहीं कर सकते हैं वे अनुष्ठान क्या करेगें ? वैसे लोगों क लिए तो यह परिचय ही काफी रहेगा।
वैसे अब चौखंबा प्रकाशन, वाराणसी से हिंदी अनुवाद सहित सांब पुराण प्रकाशित हो गया है।
सांब पुराण की सामग्री - सांब पुराण बहुत ही व्यवस्थित ग्रंथ है। सांब पुराण का पहला अध्याय स्वयं अनुक्रमणिका अध्याय है। इसमें सांब पुराण में वर्णित विषयों की सूची दी गयी है। यहाँ निम्न रूप से उनका उल्लेख किया जा रहा है - प्रत्येक वेदों का अर्थ, स्मृतियों का सार, वर्ण, धर्म एवं उनके आश्रय भूत, भव्य, भविष्य, मंत्रवाद, उत्पत्ति, प्रलय, पूजा की विधि, सामारोंह की विधि एवं पूजा का, पूजा की विधि का सांगोपांग वर्णन, वशीकरण, विद्वेषण, स्तंभन, उच्चाटन आदि अभिचार कर्म प्रतिमा का लक्षण उसकी स्थापना एवं पूजा की विधि, मंडल, अनेक मंडल, क्रिया योग, सिद्धयोग एवं उनका साधन, महामंडल याग एवं उसमें सूर्य की स्थापना। भूमिका, वातोसन एवं इष्ट हेतु पुष्प, धूप आदि की विधियाँ। स्पतमी व्रत का तरीका एवं उपवास की विधि। तदनंतर परोक्षण की विधि और दान का फल। उसके लिए बेला एवं काल का विधान और धर्म विधि। धूप कर्म की विधि एवं जप की विधि, इप्सित अनिप्सित स्वप्न का वर्णन।
    स्वप्नों का वर्णन प्रायश्चित का विधान तथा आचार्य का लक्षण। मंत्र का निर्णय करके सभी शिष्यों की दीक्षा। संक्षेप में विभिन्न प्रकार के स्रोत। जिनके आधार पर अन्य अनेक अनुष्ठान होंगें। यह संक्षिप्त सूची है जो प्रथम अध्याय के रूप में अनुक्रमणिका के रूप में सांब पुराण में वर्णित है। इस सूची से अनेक बातें स्वतः स्पष्ट हो जाती हैं फिर भी यदि कुछ विषयों पर संक्षिप्त प्रकाश डाल दिया जाय तो सांब पुराण के पाठकों को एक पूर्वानुमान सरलता पूर्वक हो जायेगा।
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