गुरुवार, 7 मार्च 2013

सांब पुराण किश्त 2

किश्त 2
    द्वितीय अध्याय - सांब पुराण के द्वितीय अध्याय में मूलतः आदित्य के माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इसी क्रम में कुछ सूचनाएँ भी प्राप्त होती हैं। किसी भी देवता की विशिष्टता एवं सर्वश्रेष्ठता स्थापित करने के लिए अन्य देवताओं, ऋषियों एवं साधनापद्धतियों के साथ प्रांसंगिकता सिद्ध करनी पड़ती है। इसी क्रम में सूर्य की विशिष्टता के बारे में बताया गया है कि आदित्य से ही इस जगत की सृष्टि हुई है और यह संसार अंततः सूर्य में ही विलीन हो जाता है। इसीलिए सूर्य सविता है। सूर्य पथ एवं चंद्र पथ की चर्चा योग शास्त्र में प्रसिद्ध है। सूर्य पथ से जाने वाले योगी मुक्त हो जाते हैं। उनका पुर्नजन्म नहीं होता। जनकादि अनेक राजर्षियों को सूर्य मंडल में प्रवेश के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हुई है। द्वितीय अध्याय में इसी प्रकार की बातों का वर्णन किया गया है और सांब पुराण की कथा को सूर्यवंश के आदि गुरु वशिष्ठ के साथ जोड़ा गया है। वशिष्ठ वृहद्वल संवाद के रूप में भी सांब पुराण का प्रकाश हुआ है। यह जानकारी द्वितीय अध्याय से मिलती है।
तृतीय अध्याय - तीसरे अध्याय में कथा का प्रारंभ श्री सांब द्वारा स्थापित उस नगरी से होता है जिसका नाम ही सांब रखा गया है। यह नगरी चंद्रभागा नदी के किनारे बसी हुई थी। सांब की कुष्ठ रोगग्रस्त होने की कथा और भगवान भाष्कर की पूजा से उनके स्वस्थ होने का वृतांत अत्यंत प्रचलित है। सांब की सुंदरता पर कृष्ण की अनेक पत्नियों के मुग्ध होने के बाद भगवान कृष्ण के द्वारा उन्हें शाप दिया जाना और शाप के कारण कुष्ठ रोग का प्रकोप होना यह तीसरे अध्याय की कथावस्तु है।
चौथा अध्याय - सांब के शापग्रस्त होने के बाद यह मामला प्रकाश में आता है कि यदि श्री सांब स्वयं भगवान भास्कर की प्रतिमा स्थापित करें और उसकी विधिवत पूजा अर्चना करें तो उनका रोग दूर हो सकता है। इसी क्रम में आदित्य के बारह रूपों को बताया गया है।
पाँचवा अध्याय - भारतीय संस्कृति में यह जब कभी भी किसी देवता विशेष की पूजा का वर्चस्व काल आया है तब उस पूजा को अखिल भारतीय रूप में दिया गया है। इसी शैली में विष्णु, शिव एवं शक्ति तीनों की अनेक तीर्थ धाम, पीठ ज्योतिर्लिंग आदि स्थापित हुए हैं। इसी शैली में द्वादश आदित्यों का स्थान भी भारत भूमि पर स्थापित हुआ है। पाँचवे अध्याय की कथावस्तु यही हैं।
छठवाँ अध्याय - छठे अध्याय में सांब श्रीकृष्ण की स्तुति करके अपने रोग के निवारण का उपाय पूछते हैं और श्रीकृष्ण निर्देश देते हैं कि तुम नारद जी की प्रार्थना करो और नारद जी ही तुम्हारी शाप मुक्ति का उपाय बतायेंगे। इसी क्रम में भगवान भास्कर के माहात्म्य का संक्षिप्त उल्लेख नारद जी करते हैं और सूर्य लोक का एक संक्षिप्त वर्णन करते हैं।
सातवाँ अध्याय - सातवें अध्याय में पूर्व की भाँति सूर्य के माहात्म्य एवं वैभव तथा भारतीय संस्कृति में उनके विन्यास की चर्चा नारद जी करते हैं।
आठवाँ अध्याय - सातवें अध्याय में सूर्य के सर्वव्यापित्व की चर्चा करके पुनः उसका विस्तार नारद जी करते हैं। आठवें अध्याय में भी धातु एवं सौर किरणों की कार्य प्रणाली के अनुसार सूर्य के व्यापकत्व का वर्णन किया गया है। बारहों मासों में बारह मासों के साथ बारह आदित्यों का संबंध और उसके शाब्दिक लक्षण आठवें अध्याय में बताये गये हैं।
नवाँ अध्याय - सांब पुराण सूर्य के सभी रूपों का चतुर्दिक संगति के लिए जी जान से तत्पर है। बारह आदित्यों के नाम के साथ उन नामों का व्याकरण संगत व्युत्पत्ति भी नवें अध्याय में बतायी गयी है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि नवें अध्याय में द्वादश आदित्यों के नामों के साथ सूर्य के आचार विचार, क्रिया कलापों के साथ उन नामों की निष्पत्ति सिद्ध की गयी है। कहने का अभिप्राय कि किस प्रकार सूर्य का कौन सा नाम सार्थक है। केवल नाम ही नहीं बल्कि नामों के अनुरूप भगवान भास्कर का स्वभाव एवं व्यवहार भी है।
दशम अध्याय - जिस प्रकार अन्य देवताओं का संबंध उनकी उत्पत्ति, वंश परंपरा, धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। उसी प्रकार सांब पुराण के दसवें अध्याय में आदित्य को अदिति का संतान माना है। और अदिति के अन्य पारिवारिक विन्यासों ने सूर्य एवं उनके बाद के देवी-देवताओं के संबध भी बताये गये हैं। इसी क्रम में प्रह्लाद, बृहस्पति, विरोचन का उल्लेख हुआ है। सूर्य का संज्ञा से संबंध लेकिन पति के रूप में संज्ञा के द्वारा सूर्य के तेज से घबरा कर पितृ कुल में वापस जाना, छाया रूपी पृथ्वी का निर्माण आदि बातों का उल्लेख हुआ है। पुनः सुर-असुर परंपरा में सूर्य के पारिवारिक संबंध की भी चर्चा हुई है। सूर्य एवं सूर्य की पत्नी संज्ञा भी सुख-दुःख से मुक्त नहीं है। विशेषकर संज्ञा की पीड़ा का वर्णन मार्मिक रूप से किया गया है। मानवीकरण होगा तो सुख-दुःख से मुक्ति की जगह प्रेम भावना आदि की बात आयेगी। खराद की पीड़ा से पीड़ित सूर्य के शरीर पर रक्त चंदन के लेप की सार्थकता का आप जो अर्थ निकालें।

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