गुरुवार, 15 नवंबर 2012

ज्ञानामृत


ज्ञानामृत
मित्रों,
            ज्ञानामृत एक कार्यक्रम का नाम है। अभी यह प्रशिक्षण शिविर के रूप में चलाया जायेगा। बाद में जैसा लोगों का विचार होगा, निर्णय लिया जायेगा। यह कार्यक्रम बहुलतावादी सनातन धर्म परंपरा के आधार पर चलेगा, किसी संप्रदाय या पथ विशेष के आधार पर नहीं।
स्वरूप - यह शिविर मूलतः आवासीय होगा। प्रशिक्षण शिविर वाले गाँवों के लोगों, एवं सभी प्रतिभागियों को घर पर रहने की छूट दी जायेगी।
मुख्य विषय -
प्राथमिक स्तर
जीवनोपयोगी धार्मिक, सांस्कृतिक आचार विचार के विषय होंगे - जैसे - आसन, प्राणायाम, स्तोत्र पाठ, संध्या (आरंभिक), गायत्री, व्रत-उपवास के तौर-तरीके, पंचाग का दैनिक जीवन में उपयोग, धर्मशास्त्र की आरंभिक समझ, गृहस्थ जीवन, बच्चों की एकाग्रता, स्वास्थ्य रक्षा के सरल सूत्र।
द्वितीय स्तर - मंत्र, जप, होम, संस्कार, मुद्रा, बंध, हठयोग के उच्च अभ्यास, न्यास, संध्या संपूर्ण, योगनिद्रा, छोटे-छोटे याग/यज्ञ, पंचांग के अन्य उपयोग, धर्मशास्त्र की परंपरा एवं मगध क्षेत्र, मूर्तियों/मंदिरांे का वास्तुशिल्प, विभिन्न संप्रदाय एवं स्मार्त धर्म के साथ संबंध, चार पुरुषार्थों को गृहस्थ जीवन में प्राप्ति के मूल सूत्र, आचार भेद।
तृतीय स्तर - दो स्तरों तक प्रशिक्षण पाने वाले प्रतिभागी इतने सक्षम हो जाएगें कि आगे के लिए वो अपनी रुचि एवं पात्रता के अनुरूप गुरू खोज सकें और उनके मार्गदर्शन में उच्च स्तरीय साधना कर सकें। इस स्तर पर मग मित्र मंडल की कोई भूमिका नहीं होगी। गुरू शिष्य के बीच सीधा संबंध होगा।
प्रतिभागी - 9 साल से ऊपर का कोई भी सनातन धर्म परंपरा वाला व्यक्ति प्रतिभागी हो सकता है। कट्टर वैष्णव, शैव, शाक्त आर्य समाजी सा अन्य आधुनिक संप्रदाय या पंथ के लोगों के लिए यहाँ कलह के अतिरिक्त कुछ नहीं है। अतः वो नहीं आयें तो अच्छा क्योंकि हम किसी भी आधुनिक गुरू को एकमात्र प्रामाणिक व्यक्ति मात्र कर कार्यक्रम नहीं चला रहे।
लड़कियों एवं महिलाओं केा तभी सम्मिलित किया जा सकेगा जब स्त्री प्रशिक्षिका उपलब्ध होगी। सामान्य सत्रों में सबका निर्वाध प्रवेश होगा।
हमारी मूल समस्या - हमारी मूल समस्या है कि -
1.         सनातन धर्म विविधताओं एवं समन्वय से भरा हुआ है। अनेकता में एकता है लेकिन समन्वय एवं एकता के सूत्रों को पहचाना जरूरी है। ज्ञानामृत में उसे खोजने एवं दूसरों को बताने का प्रयास जारी रहेगा।
2.         धर्म के विभिन्न पक्ष हैं। कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं है अतः जो जिस विषय का जानकार है वह अगर अपने ज्ञान-भंडार से दूसरे को लाभान्वित करे तो सबका ज्ञान भंडार बढ़े। इसीलिए यह प्रयास किसी एक व्यक्ति के ज्ञान भंडार पर आधारित न हो कर पारस्परिक आदान-प्रदान पर आधारित होगा।
3.         इस प्रयास में केवल दार्शनिक तत्त्ववाद या देवी-देवताओं की कथा या लीला की चर्चा को सम्मिलित न कर जीवनपयोगी व्यावहारिक, प्रायोगिक विषयों को चुना गया है, जिनका सामूहिक आचार में अभ्यास भी कराया जा रहा है। कक्षा प्रवचन, प्रश्नोत्तर, सत्संग, शिविर के दौरान या बाद में आचरण संबंधी विषयों पर ही मान्य हैं, अन्यथा नहीं। वैसी कथा तो समाज में बहुत हो रही है।
4.         दो चरणों में मूलभूत बातों का प्रशिक्षण दिया जायेगा। आगे की गुरु-शिष्य परंपरा के लिए सभी स्वतंत्र हैं अतः किसी एक को गुरू मानने की अनिवार्यता नहीं है। उस मामले में हमारी दखलंदाजी नहीं होगी।
5.         धर्म के कई पक्ष एवं स्तर हैं। मैंने सुविधा के लिए उसका वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है -
            स्तर भेद -
            सामाजिक परंपरा का निर्वाह - अनेक लोग बिना सोचे समझे, बिना लाभ-हानि का विचार किए, जैसे-तैसे धार्मिक कृत्यों को पूरा करते हैं एवं जजमान की रुचि के अनुसार केवल औपचारिकता पूरी कराने का काम पुरोहित कराते हैं। यह मजबूरी वाला एवं ऊटपटांग काम है, अतः इसे सीखने-सिखाने की बात ही व्यर्थ है।जो लोग सामाजिक परंपरा की धर्म के अन्य स्तरों एवं पक्षों से संगति बनाकर कार्य कराते हैं, उनके आचरणीय विषयों को सीखा तथा सिखाया जायेगा।
            समाज व्यवस्था संबंधी प्रावधान - धर्म की अनेक बातें समाज व्यवस्था वाली हैं। वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, रोजगार, जजमानी प्रथा आदि। इनकी चर्चा एवं सैद्धान्तिक जानकारी तो दी जाएगी, उससे अधिक नहीं क्योंकि हम न तो राज्य सत्ता वाले हैं न धर्म सत्ता वाले। यह हमारे क्षेत्राधिकार के बाहर है।
                        भारतीय संविधान एवं कानून ही हमारे भी कानूनी ग्रंथ हैं। किसी भी जाति विशेष का वर्चस्वकारी प्रयास उचित नहीं है। शेष समाज को तय करना है कि क्या कालोचित है क्या कालबाह्य?
अध्यात्म अर्थात् योग, तंत्र, साधना, उपासना संबंधी तन एवं मन तथा इन दोनों का समाज एवं प्रकृति से संबंध को जानना तथा समाज एवं प्रकृति के साथ बेहतर संबंध बनाने की अनेक विधियाँ आज स्वास्थ्य सुधार, तनाव मुक्ति के उपाय, एकाग्रता बढ़ाने के उपाय जीर्ण रोगों को दूर भगाने, बुद्धि बढ़ाने के उपाय, जीर्ण रोगों को दूर भगाने, बुद्धि बढ़ाने, स्मरण शक्ति बढ़ाने से लेकर बेहतर यौन सुख एवं तृिप्त के उपाय के रूप में विभिन्न नामों से अनेक संस्थाओं द्वारा योगा’ ‘तंत्रावाली संस्थाओं द्वारा प्रयोग में लाई जा रही हैं।
ऐसी व्यवस्थाएँ इन्हें नए समाज के अनुरूप भाषा एवं शैली में प्रस्तुत कर रही हैं। हम इन विषयों एवं विधियों के प्रशिक्षण के समर्थक हैं। इनकी आरंभिक शिक्षा एवं मूल विधि से परिचय तक का काम शिविर में कराया जा सकता है। इस स्तर के कार्यों एवं विषयों की सूची बहुत लंबी है, जैसे - व्रत, पर्व, उत्सव, संस्कार यज्ञ, देवार्चन आदि।
उक्त विषयों के प्रायोगिक अभ्यास हेतु मध्यम स्तर के ज्योतिष, संस्कार ग्रंथ, पंचांग निर्णय, यंत्र, मन्त्र शास्त्र, कर्मकांड, स्तोत्र, यंत्र, तंत्र, मंत्र उनका अर्थ निकालना एवं कागज या बेदी पर उकेरना, रंगों का प्रभाव आदि का ज्ञान होना जरूरी है।
इनके साथ, ध्वनि, स्वर, मंत्रों के संकलन वाले ग्रंथ, जैसे- मंत्र महोदधि आदि से सुपरिचित होना भी जरूरी है।
शिविरों के मूल विषय उपर्युक्त में से हीं होगें, जिनका विस्तृत विवरण शिविरों के पाठ्यक्रम में रहेगा।
अतीन्द्रिय अनुभव संबंधी - तन, मन एवं बुद्धि आधारित अनुभवों से उठकर आत्मा या परमात्मा, ईश्वर साक्षात्कार आदि विषय अत्यंत सूक्ष्म एवं गंभीर हैं। इनमें अपने मन के सारे भावों को गुरु के समक्ष खोलकर रखना पड़ता है। इसलिए इस स्तर की बातें केवल गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत ही होनी चाहिए। ध्यान, मंत्र साधना, चक्रपूजा आदि विषय इस केाटि के अंतर्गत आते हैं। इसी प्रकार छोटी बड़ी सिद्धि या साधना वाली बातें भी हैं।
विभिन्न विद्याओं के उच्चस्तरीय ज्ञान संबंधी-  आत्म कल्याण, लोक कल्याण एवं मोक्ष सभी विद्याओं का लक्ष्य है।  मोक्ष में ही सभी सहायक हैं। अतः ज्योतिष, आयुर्वेद, तंत्र, ध्यानयोग, आदि के उच्च अभ्यास की गुरु परंपरा से तन्मयतापूर्वक सीखने की बातें हैं।

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