चित्तसाम्य , वज्रोली-सहजोली साधना एवं ‘लाग बैठना’ मगध रहस्यविद्या की विधियों के आविष्कार की भूमि रहा है। इसने गोपनीय मानी जाने वाली विधियों को जनसुलभ बनाया है, भले ही वे काल के प्रवाह में पुनः लुप्त या गुप्त हो गई हैं। काम ऊर्जा के रूपांतरण की विधियों के साथ भी ऐसा ही हुआ है। काम ऊर्जा के रूपांतरण की विधियों को समझे बिना यहाँ के मूर्ति शिल्प, अनुष्ठान एवं कई अन्य विधियों को समझ पाना संभव नहीं है। हरगौरी की पालकालीन प्रतिमाएँ हर गाँव मुहल्ले में मिलती हैं जिसमें गौरी शिव के आलिंगन मंे उनकी एक जाँघ पर बैठी हुई होती हैं। शिव का बायाँ हाथ गौरी के बाएँ स्तन पर रहता है। इतना हीं नहीं नग्न शिव का लिंग ऊपर की ओर खड़े रूप में चित्रित रहता है। दिगंबर जैन नंगे घूमते रहते हैं। मगध जैनियों एवं विशेषकर दिगंबर जैनों का क्षेत्र है। उनके यहाँ उच्च साधना में नग्नता ही दिव्यत्व है। बौद्ध परंपरा की दृष्टि से भी युगनद्ध संभोगकालीन रूप ही दिव्यतम रूप है जिसका चित्रण तिब्बती थंका में रहता है। मगध के भी कई मंदिरों में खजुराहों की भाँति आकृतियाँ बनी हुई हैं। बौद्ध तांत्रिकों ने इस साधना को विविध नामों से पुकारा है जिसके ‘वसंततिलक योग’ एवं ‘बोधिचित्त का उत्पाद’ ये दो अधिक प्रचलित नाम हैं। काम ऊर्जा को संचित-संप्रेषित करने के कुछ अनुष्ठान आज भी स्त्रियों के द्वारा अनुष्ठित --------
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