सोमवार, 25 अप्रैल 2011

यह ब्लॉग बंद क्यों न कर दिया जाय?

यह ब्लॉग बंद क्यों न कर दिया जाय?
मेरे अज्ञात, सुंदर से सुन्दर संबोधनों से अलंकरणीय, प्रशंसनीय, आदरणीय पाठकगण।
क्या आपको विश्वास नहीं है कि मैं अभी जीवित हूँ? यह ब्लॉग मेरी प्रेतात्मा ने नहीं लिखा है। अगर विश्वास है तो मेरा अपराध क्या है?
मैं एक नया ब्लाग लेखक हूँ। तो क्या हुआ, आप कौन शुकदेव की भाँति परम ज्ञानी की तरह पैदा हुए थे? अगर ऐसा ही हो तो क्षमा करेंगे और अवश्य बताएंगे।
मग संस्कृति के आलेख एक जाति विशेष के लिए हैं, तो मैं ने कब इसे छुपाया है? शीर्षक साफ है, लेकिन क्या इस विषय को कोई पूछने वाला नहीं है या आप पढ़कर चुपचाप निकल जाते हैं? मैंने तो अभी तक आपसे कोई अर्थ सहयोग नहीं माँगा तो फिर इतना लो बताइए कि यह ब्लाग कैसा लगा?
आप अगर सलाह देंगे तो शिरोधार्य होगा? निंदा करेंगे तो सुधार किया जाएगा? लेकिन इस तरह उपेक्षा करेंगे तो मुझे लगेगा कि मैं ने कोई गलत काम तो नहीं किया?
वैसे भी मैं थोड़ा अल्पबुद्धि आदमी हूँ। बचपन से ही खुद ही रूठता हूँ, खुद ही मानता हूँ। मुझे पूछता कौन है कि मनाए भला? लेकिन इस बार मामला ऐसा नहीं है। मैं भी जीवन के 51वें वसंत का रस ले रहा हूँ।
यह कौन सा न्याय है कि मैं बार-बार सामग्री डालता रहूँ, पेज सजाता रहूँ और आप हैं कि 10-20 शब्द टिप्पणी बाक्स में लिखने में शरमा रहे हैं। कोई मेल भी नहीं करते।
अपने फेस में कोई आकर्षण है नहीं कि फेसबुक पर जाऊँ, चोंच लड़ाने आया नहीं कि Twitter बनूँ। जिस खंूटे से घरवालों ने बाँध दिया उसी को उखाड़ कर घूम रहा हूँ परंतु खूँटा नहीं छोड़ा।
आपका उत्तर मेरी उर्जा होगी, सलाह दिशा निर्देशन करेगी और शिकायत से तो लगेगा कि आप मेरे असली शुमेच्छु हैं। रही किसी जानकारी की माँग तो अपना पक्का वादा है कि मैं इसमें कोई कंजूसी नहीं करूँगा जरा पूछ कर तो देखिए। आपका नजरें चुराकर निकल जाना बड़ा दर्द देता है।
एक बात और मैं एक बार फिर रूठने की हिम्मत जूटा रहा हूँ। अब जब तक आप लोग नहीं कहते और अब तक के पोस्ट इत्मीनान से पढ़ नहीं लेते मैं ही चुप हो जाता हूँ। और कितना बक-बक करूँ।
आगे आपकी जैसी मर्जी

रवीन्द्र कुमार पाठक

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

पाठकजी क्या तंत्र साधक को भी प्रतीक्रिया जानने की आवस्यकता है मैं पुनः आपसे निवेदन करता हू किसी को मत देखिये लिखते रहें यही मेरी अपेक्छा है लोग देख रहे है क्या यह संतोष का विषय नहीं मैं तो तब भी कहता जब कोई देखने वाला भी न होता साधना किसी के देखने टिपण्णी की मुहताज नहीं होती वह तो साधक की अनुभूति है गुड का स्वाद नहीं जानने वालाचाहे गुड दखे या वर्णन सुने जब तक खायेगा नहीं स्वाद कौन बता पायेगा उसे फिर मरीज अगर गुड खा लिया तो उसे इंसुलिन कौन लगायेगा अतः आप से पुनः अनुरोध है न नाराज हो न रूठे सततप्रयत्न जरी रखेशुभकामनाएँ

Unknown ने कहा…

आदरणीय पाठकजी
४० साल नोकरी के भी गोपनीय ही निकले पुलिस की नोकरी में रहते हुए भी बहुत से लोगो को पता नहीं चला की मई कहाँ कम करता हूँधर्म में भी वही हल रहा दिक्छा लेने के बाद लगा अरे ये कहा आ गए भगवती की आराधना भी गोपनीय परन्तु मेरे गुरूजी ने कहा कलयुग में तंत्र छुपाने की नहीं पात्र को बताने के लिए है संसार की सभी अच्छी वस्तु तुम्हारे लिए है निवेदन करके मांग लो अगर न मिले बहुत आवस्यक हो जनहित में है छीन लो यही निति कहती है पैर विभागीय मर्यादा यह सिखाती रही अंकुस लगाना अपराध न हो हमारा यही काम है निर्णय और फैसला तो कोई और देता है हम तो अपना पक्छ रखते है बीच के पद पैर रहते हुए सबसे बडो के साथ रखा नीचे से उपर तक देखा अनुभव किया हर का रसास्वादन किया यह गुरुकृपा और साधना का फल ही तो है किन्तु विरोधी और दुष्टों से लड़ता रहा किसी की सामने आने की हिम्मत न हुई लगता नहीं इतना कमजोर हो जाऊंगा की लोग हाबी हो जायेगे पैर समय कम है बहुत कम आखिरी लड़ाई का अंतिम दौर भगवती कठिन परीक्छा की घडी को पार करें यही कामना है क्योकि जब भी उजागर करने का प्रयास किया कठीन दौर से गुजरना पडा है आपने तो उजागर ही कर दिया पैर इमेल पता गलत लिखा है आपने वैसे सुच पूछे तो मैंने आज तक कुछ नहीं किया वेबसाइट भी मैंने नहीं बनाई न चलाता हू मैं तो एक निवर्तक हू निर्वाह केर रहा हूँ जीवन का अपनी जवाबदारियो से मुक्त होकर भी नहीं हो पाया वैसे मेरा घोसला सबके लिए खुला रहा आज मैं तलास में हू सबको घोसला खाना विचरण और चोंच लड़ाने की सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रयासरत जीवन के अंतिम पड़ाव में सभी तृप्त हो पैर कोई साथ चलने को खाली नहीं संसार चालाक चापलूष चोर उचाको से भरा है सफल वही दिखाई पड़ते है हमारा जीवन तो पढ़ने पढाने में ही बीत जाता है फिर भी सबके पास सब कुछ नहीं होता जो कुछ भी हमारे पास है हमारे पूर्वजो ने दिया है आपसे विद्वान ही उसे सहेज सकते हैप्रयास जरी रखे लोग जुड़ते जायेगेनहीं तो अकेले हम कर ही रहे है जो हमें करना है