रविवार, 24 अप्रैल 2011

संभावित अनुशासन

संभावित अनुशासन

सम्मानित/प्रिय पाठकगण,
मैं एक नया ब्लाग लेखक हूँ। मुझे बताया गया है कि ब्लाग लिखने का भी अपना एक मर्यादित अनुशासन होता है। ब्लाग एक वार्ता है। इसमें लेखक की अभिव्यक्ति पर पाठकों की प्रतिक्रिया आती है, लोग प्रश्न पूछते हैं। कोई नया या पुराना सदस्य या स्वंय ब्लाग का लेखक उत्तर देता है या सवाल पूछता है। निष्कर्ष कि ब्लाग का मकसद संवाद है, इकतरफा प्रलाप नहीं है कि जो भी मन में आए इंटरनेटी आकाश में प्रदूषण फैलाते रहें।
यह सुनकर मैं डर गया हूँ। वैसे भी मैं प्रदूषण विरोधी आदमी हूँ। केवल लाचारी वाली गंदगी पैदा करता हूँ। समय, ऊर्जा सबकी खपत होती ही है, तो सोचा कि मैं भी अनुशासन में आ जाऊँ।
’ आगे से मैं निम्न प्रकार से अनुशासित रहने का प्रयास करूँगा:-
’ भारी भरकम सामग्री मुख्य पेज पर नहंी मिलेगी। उसके लिए संबद्ध पृष्ठ देखें। वहीं पर टिप्पणी करें।
’ पाठकों से निवेदन के पुराने अंश ‘पाठकों’ से पृष्ठ पर मिलेंगे
’ मुख पृष्ठ पर संक्षिप्त सामग्री और चर्चाएँ रहेंगी।
’ प्रश्न और उसके उत्तर रहेंगे।
’ चित्र एवं वीडियो क्लिप एक स्वतंत्र पृष्ठ “दृश्य श्रव्य” पर मिलेंगे।
अगर किसी अन्य बात से या मेरे प्रयास से आपको सुविधा हो तो बताइएगा।
हाँ टिप्पणियों की कड़की में मैंने word verification हटा दिया है, अब तो पधारो हे टिप्पणीकार! प्रश्नकर्ता!
रवीन्द्र कुमार पाठक
विशेष सूचना:- अगर किसी को विभिन्न पुरों का एक साथ परिचय देनेवाले चार्ट चाहिए तो इमेल से माँगे। उनका आकार इतना लंबा-चौड़ा हो जाता है कि ब्लाग के पेज पर ठीक से उभर नहीं पाता है। ऐसे चार्ट इमेल द्वारा भेजे जाएँगें। इसी प्रकार की समस्या वीडियों के साथ है, अच्छी क्वालिटी वाली वीडियो सी॰डी॰ द्वारा डाक से भेजी जा सकती है। मेरे पास जो इंटरनेट कनेक्शन है वह बड़ी फाइल अपलोड नहीं कर पाता। कोई अन्य सरल उपाय हो तो आप ही बताएँ।
रवीन्द्र कुमार पाठक

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आदरणीय पाठकजी उपरोक्त विचार निराधार हैआप कोई प्रदुषण नहीं फैला रहे हैतंत्र साधना वीराने में ही होती है यह कोई वाश्नावी कर्मकांड या सत्यनारायण कथा नहीं है जिसके लिए निमंत्रण भेजा जाये साधना के लिए समसान में आना पड़ेगा विचार भी उल जुलूल आएंगे सबकी चिंता छोड़ आप प्रसस्त मार्ग पैर अविरल विचरण करें जिनको आना होगा आयेगे आप अगर कद भेजेगे मैं आभारी रहूँगा मैंने पहले भी कहा था पूरा तंत्र विघ्न बदहो से लड़ने शत्रुओ को पछाड़ने के विधि विधान से भरा है फिर मन में विचार और दुस्विचार तो आते ही रहते हैं आपका लेख भले ही कुछ लोगो के लिए हो पैर यह एक ऐसा फल है जिसका रसास्वादन सबके लिए नहीं वैसे भी बीमार के लिए कुछ भी नहीं है पहले उसका स्वस्थ ठीक होना अवस्यक है आब हम चिकित्सक तो है नहींचिकित्सक को चैये शुल्कऔर वो अपने लिए तो दिया जा सकता है पुरे समाज को कैसे दिया जाये पैर शायद कोई सेवाभावी चिकित्सक पैदा होगा स्वस्थ ठीक होगा और लोग रसास्वादन केर पायें एस उम्मीद के साथ लिखने को लिखने में अग्रसर रहे दुस्ट की दुष्टता दूर केर भगवती सद्बुधि अवस्य देंगी शत्रु परास्त होगे वैसे भी सभी गुरुओ को लोग जाने के बाद ही समझ पाए फिर होम तो गुरु नहीं एक साधारण साधक है और विघ्नों के निवारण के लिए प्रयासरत कुछ अछे लोगो की तलाश में जो इस विद्या को मृत्यु शैया से उठा केर बहार की दुनिया में ला सकें परमेश्वरी आपके साथ है