मंगलवार, 6 अगस्त 2013

जातीय संगठन कैसा हो?
जीव जगत में हाथी जैसे विशाल एवं चींटी जैसे छोटे जीवों को भी संगठन एवं समाज (नियम, परंपरा, समाज) की आवश्यकता पड़ती है। मानव शिशु तो बिना समाज के विकसित ही नहीं हो पायेगा। संगठनों का का महत्त्व इसीलिए सभी समझते हैं। जीव जगत में पारदर्शिता है। पैंतरेबाजी, छल केवल दुश्मनों के साथ ही स्वीकृत है, अपनों के बीच नहीं। अपनों के बीच केवल कभी-कभी बल प्रयोग हो सकता है, खासकर जब किसी दो या अधिक के बीच भोजन या यौन सुख संबंधी वर्चस्व का मामला आ जाए।
मानव के व्यवहार में दूरगामी पैंतरेबाजी एंव छल के विभिन्न रूप एवं स्तर स्वीकृत हैं। इसीलिए मानवीय समाज और उसका संगठन जटिल है। संगठनों का प्रगट एवं छिपे हुए दोनों रूप हो सकते हैं।
संगठनों का सहज आधार जाति एवं भाषा होती है, उसके बाद क्षेत्र। बाद में अन्य     आधार जुड़ते गए हैं, जैसे - धर्म, राजनीति या अन्य केाई भी आदर्श अथवा लक्ष्य। ये अन्य आधार जाति जैसे सहज आधार को तोड़ने की कोशिश करते हैं। परिणाम विचित्र हेाता है, बौद्ध, ईशाई, मुसलमानों के भीतर भी जातीय, भाषाई एवं क्षेत्रीय भेद हैं। धर्म की एकता कभी भाषा पर हावी होती है, जैसे भारत में मुसलमानों की मानसिकता है कि वे ऊर्दू को धर्म से जोड़ते हैं भले ही खुद को ऊर्दू नहीं आती हो तो इसके विपरीत बंगलादेश एवं मालदीव में उर्दू-फारसी को अभी भी थोपा नहीं जा सका। ईशाई हिन्दी में खुलकर प्रार्थना करने लगे हैं और वे क्षेत्रीय (भारत की हिन्दी पट्टी) प्रभाव से हिन्दी नाम के साथ या अंग्रेजी नाम के साथ शास्त्री, आचार्य जैसे उपाधि भी लिखते हैं। बनारस में ख्रिस्तपंथी आश्रम है और ईशाई धर्म का यह संप्रदाय हल्के गेरू रंग का वस्त्र पहनता है। प्रयाग जमुना पुल के सटे ईशाइयों का कृषिविज्ञान का विश्वविद्यालय है। वहां आपको कई ईशाई शास्त्री, आचार्य मिल जा सकते हैं। आप कह सकते हैं कि यह तो भगवाकरण हो गया। मेरी समझ तो अलग है।
जो लोग केवल जातीय संगठन के पक्षधर हैं न कि जातीय संस्कृति, गौरव एवं भविष्य के वे जो सोचें, मुझे तो लगता है कि आगे वर्णित विंदुओं पर जातीय ग्रुपों के लोगों को विचार आमंत्रित करना चाहिए -
1. जातीय पहचान का आधार, क्या हो? इतिहास, नाम, रक्त संबंध या कुछ अन्य
2. अंतर्जातीय विवाहों वाले मामले में समाधान का आधार क्या हो? बहिष्कार, मुक्त स्वीकृति, पितृसत्तात्मक स्वीकृति जैसा कि पितृ सत्तात्मक समाज में प्रचलित है, बेटी लेगें, बेटी देगें नहीं या बेटी देंगे, लेगें नहीं, उससे तो नस्ल बिगड़ जाती है या फिर झूठ बोलकर घटना को विस्मृति के गर्त में डालना या फिर कोई अन्य।
3. जब बड़ी संख्या में लोग ब्राह्मणों के लिए निर्धारित एवं प्रचलित आजीविका छोड़कर नौकरी/दास वृत्ति अपना रहे हों तो किन गुणों के कारण समाज उन्हें ब्राह्मणोचित सम्मान दे?
4. हम आपसी परंपरा से व्यावहारिक एवं वास्तविक रूप से क्या सीख सकते हैं, जो वर्तमान एवं भावी समाज के लिए उपयोगी है?
5. योग, मंत्र, तंत्र जानने के लिए खतरा तो मोल लेना ही पड़ता है। अपने समाज के लोग भी अनेक गुरुओं, सम्प्रदायों के यहाँ चेला बनते ही हैं फिर अपनी परंपरा की प्रगति कैसे हो?
6. जजमानी, पुरोहिती, ज्योतिषी, तंत्र-मंत्र का रोजगार बढ़ाने में क्या मानदंड हो, जैसे - जजमान एवं चेले को ठगना, सच्ची बात बताना या कोई अन्य।
7. परस्पर एक दूसरे की मदद का तौर तरीका क्या हो ?
8. एकता एवं विवाद के विंदुओं की खोज ?
9. एक अच्छी वैवाहिकी कैसे चले?
10. आज की जरूरत के अनुसार कर्मकांड में संशोधन क्या, क्यों ओर कैसे हो ?
11. क्या दूसरे ब्राह्मणों में विलय के प्रस्ताव का औचित्य है और क्यों ? यदि हाँ, तो किसके साथ - मैथिल, भूमिहार (ये दो पुराने प्रस्ताव हैं) सान्नाढ्य, गौड़, पुष्करणा या अन्य।
12. मग-भोजक के बीच विवाह हो या न हो ? उसका आधार क्या हो ?
13. विवादस्पद, विषयों पर चर्चा कर जातीय बंधुओं का विचार जानना चाहिए या नहीं या फिर केवल सुमधुर निर्विवाद बातों को ही दुहराना चाहिये ?
14. वर्तमान में स्त्री शिक्षा के बढते स्तर के साथ उनकी सहभागिता का स्वरूप क्या हो?
15. क्या यह उचित है कि फैशन में अति आधुनिक और सामाजिक व्यवहार में रूढि़वादी बने रहें ? मैनें तो प्रस्ताव लिख दिए, आपलोग भी जरा गौर कर देख लें ?

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