शनिवार, 24 अगस्त 2013

देव वरुणार्क, आस्था या कुछ और भी.......?


देव चंदा, देव पड़सर, देव मूंगा/उमगा, देव कुली, देव डीहा, देवढि़या आदि बिरादरी के गांव हैं। ऐतिहासिक नाम देव वरुणार्क, स्थानीय नाम देव चंदा (पहचानने के लिये पास का गांव) मग समाज के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण गांव है। यह वर्तमान भोजपुर जिले के तरारी प्रखंड के अंतर्गत स्थित है। यहां गुप्तकालीन सूर्य मंदिर के भग्नावशेष तो हैं ही बिरादरी इतिहास के पक्के सबूत के रूप में कई शिलालेख एवं स्तंभ लेख भी यहां हैं। इसका पूरा विवरण मैं ने अपने ब्लाग magasamskriti.blogspot.com पर लिख दिया है। यह पुर वाले पेज पर है।


पहली बार जब मैं ने 1980 में इस मंदिर के बारे में एक शोध निबंध में लिखा था कि मुख्य प्रतिमा को स्थानीय ब्राह्मण सुरक्षा की दृष्टि से जमीन के अंदर छुपा कर रखते हैं और अपनी परंपरा के अनुसार निकाल कर पूजा पाठ करते हैं, उस गांव के बिरादरी के लोगों ने जो रिश्तेदार भी हैं मेरा घोर विरोध किया था और मेरे घर आ कर मुझे पारिवारिक स्तर पर दंडित कराने का पूरा उपाय किया था। उस समय तक जब गांव के बिरादरी के लोगों की जब इच्छा होती थी वे हल्ला करते थे कि ‘‘बनारख’’ बाबा प्रगट हुए हैं। उनका अवतार हुआ है। इस अवसर पर मेले वगैरह का स्वतः स्फूर्त आयोजन हो जाता था। कमाई का प्रचलित तरीका यही था। उस समय तक कोई ठीक से मूर्तियों को पहचानता भी नहीं था और काल की दृष्टि से प्राचीन बालू पत्थर की जूता कोट वाली सूर्य की प्रतिमा को द्वार पाल मान कर बाहर ही लुढ़का रखा था। मूर्तियों को मैं ने चोरी से बचाने के लिये एक प्लेटफार्म बनाकर उसमें उसे सिमेंट से जड़ देने की राय भर दी थी। मेरी जान बच गई क्योंकि मेरी परदादी उसी गांव की थीं।


बाद में 2 साल बाद एक नौजवान पंडितजी को सपना आया और उसी तरीके से मूर्तियों को बचाया गया। अभी अभी उसी गांव के निवासी श्री चितरंजन पाण्डेयजी से पता चला है कि कुछ समय पहले गांव के कर्मकांड तथा ब्राह्मण विरोधी लोगों ने एक रात प्रतिमा को जमीन से बाहर निकाल कर फेंक दिया। सारा नाटक, दूसरों की आस्था से खिलवाड़ करने तथा अपनी ही अगली पीढ़ी को ठगने की आस्था समाप्त हो गईं। आखिर यह कब तक चलता? मैं नाराजगी के कारण दुबारा वहां गया ही नहीं।


मित्रों देव वरुणार्क और अपसढ़ के शिलालेखों के बगैर हमारा इतिहास अधूरा रहेगा। जो भी बचा हुआ है, उसे बचाने की जरूरत है। आगे लोगों की आस्था। हां यह भी जानिये कि ये मंदिर और घर में भी वस्तुतः पक्के सूर्यपूजक हैं फिर भी ये मांसाहारी हैं, शाकाहार नई चलन है। बाहर में सच बोलने से कतराते हैं क्योंकि शैव शाक्त तंत्र प्रचार के समय यहां भी कात्यायनी चामुंडा आदि की प्रतिमाएं स्थापित की गई, परंतु रिश्तेदार तो सच जानते ही हैं।

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