शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

शाकद्वीपी ब्राह्मण बिरादरी के इतिहास जानने की मुख्य दुविधाएं/उलझनें
तथ्य नहीं मिल रहे, सूचनाएं अधूरी हैं। कथाएं प्रतीकात्मक हैं या सच्ची? हमारा अतीत गौरवशाली है या कलंकित? दूसरों को क्या कहें? क्या अपनी अगली पीढ़ी को पुरानी घटनाओं को उसी रूप में बताना जरूरी है। इससे बदनामी नहीं होगी? दूसरे लोग अपने ऊज्ज्वल पक्ष की ही चर्चा करते हैं तो हमें अपने काले पक्ष को क्यों सामने लाना चाहिये आदि प्रश्न पिछले 40 सालों से मैं झेल रहा हूं। ये संक्षेप में नीचे प्रस्तुत हैं-
दुविधाएं-
ं1 सच्चा इतिहास या मनोनुकूल इतिहास? केवल पुराण आधारित या अन्य पर भी?
2 राज्यसत्ता समर्थक या लोकसत्ता समर्थक?
3 वैदिक या अवैदिक?
4 भारतीय या विदेशी?
उलझनें-
1 शाकद्वीप की भौगोलिक स्थिति - ईरान, वर्मा, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, भारत का ही कोई क्षेत्र? आखिर कहां?
2 पुराने ईरानी ‘मगी’ एवं भारतीय ‘मग’ एक ही या भिन्न?
3 आर्य या आर्येतर?
4 शाकद्वीपी क्या शक हैं?
5 शाकद्वीपी, शाकिनी, शाकम्भरी, शकसंवत्, शकसेन वंश, सक्सेना उपाधि के बीच क्या संबंध हैं?
6 सूर्यपूजक से वैष्णव एवं शैव-शाक्त तांत्रिक बनने की एंतिहासिक प्रक्रिया एवं कारण
7 दो प्रमुख शाकद्वीपीय ब्राह्मण समूहों की पहचान की भिन्नता एवं आपसी रक्त संबंध का न होना। यही हाल कुछ अन्य छोटे समूहों का जो अब अपनी पहचान भी बदल चुके हैं। मगों के द्वारा अपने निजी उपयोग, रक्त संबंध के लिये अन्य भारतीय जातियों में प्रचलित मूलग्राम व्यवस्था के अनुसार पुर (गांव) आधारित पहचान तथा बाहरी तौर पर पूजा पाठ आदि के लिये वैदिक ऋषि गोत्र  को अपनाया जाना और भोजकों द्वारा खाप व्यवस्था के आधार पर सगोत्रता का निश्चय।
8 प्रत्यक्ष सूर्यपूजा के विवरण से मगों की खोज। यह तो सर्वप्रचलित है। मगों का इतिहास तो सूर्यप्रतिमा एवं मंदिर के निर्माण से शुरू होता है। सूर्य प्रतिमा की दो प्रमुख शैलियों मानवीय, कमलासन  वाला, जूता कोट धारी रूप और रथस्थ सप्ताश्व रूप का ऐतिहासिक कारण एवं आधार।
9 सौर तंत्र एवं चिकित्सा से ज्योतिष तथा आयुर्वेद तक की यात्रा क्रम। भारत में बसने के बाद जीविका में आये बदलाव के समय एवं कारण। आयुर्वेद या ज्योतिष के प्रणेता किसी भी ऋषि को शाकद्वीपियों के भारत आने के पहले के पूर्ववृत्त में वर्णित न होना। ऐसी किसी भी पारंपरिक कथा का अभाव। प्रश्न खड़ा होने पर झूठी एवं नई कथा कह देने से वह इतिहास नहीं बन जाती।
इतिहास एवं पुराण की दृष्टि की उलझन
इस विंदु पर मैं ने एक पूरा लेख ही ब्लाग में डाल रखा है। पौराणिक कथा, घ्वनि साम्य के आधार पर या मनमाने ढंग से अब तक उपलब्ध सूचनाओं, संदर्भों को बिना मिलाये जो लोग इतिहास ढूंढने की बात करते हैं उन्हें पता नहीं कि वे क्या समस्या पैदा कर रहे हैं। यह तो बस वैचारिक हुड़दंग है।
इतिहास ढूंढ़ने का तरीका
इतिहास को आदि से आज और आज से आदि दोनों प्रकारों से खोजा जा सकता है। कडि़यां इतनी टूटी है कि आरंभ में सभी संभावनाओं को एक़त्र कर तब मिलान करने का प्रयास करना चाहिये। सामग्री संकलन की जगह झटपट निष्कर्ष अनेक विसंगतियां पैदा करेगा जिसकी पीड़ा पूरे समाज को झेलनी पड़ेगी। किसी भी भारतीय जाति का इतिहास पूर्णतः तर्क आधारित या सदैव गौरव शाली वाला नहीं है तो हम डर कर उलटा-पुलटा काम क्यों करें?
उपलब्घ सामग्री
आदि से आज- महाभारत काल से आज तक
आज से महाभारत काल तक
क महाभारत काल से आज तक की ओर के इतिहास की स्रोत/सामग्री-
भविष्य पुराण एवं अन्य सभी पुराण, सांब सूर्य एवं सौर पुराण, अवेस्ता के मगी वाले संदर्भ, बायबिल का मगी वाला संदर्भ, धर्मशास्त्रीय ग्रंथों उल्लेख, नालंदा का इतिहास, विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण, कहीं पक्ष कहीं विपक्ष आदि।
आज से महाभारत काल तक की ओर के इतिहास की स्रोत/सामग्री-
पुरों, गोत्रों के चार्ट, वंशावलियां, डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के रिपोर्ट,शिलालेख, स्तम्भ लेख आदि।
अनुपूरक सामग्री / सेकेंडरी सोर्सेज ैमबमदकंतल ैवनतबमे
विभिन्न लेखकों के निजी विचारों वाली पुस्तकें लेख वगैरह-
1 मगोपाख्यान कई पहला पं बृहस्प्ति पाठक बाद में अन्य लेखकों के संस्करण
2 मग तिलक एवं समान नामवाली पुस्तकें पं सभानाथ पाठक एवं अन्य
3 डॉ. मंजु गीता राय की पुस्तक
4 प्रो. बी.एन.सरस्वती की पुस्तक
5 उड़ीसा के संघर्ष वाली पुस्तक
6 स्वजातीय संगठनों एवं संस्थाओं द्वारा प्रकाशित स्माारिकाएं/पत्रिकाएं
7 वीकीपीडिया के मनमौजी लेख
8 अन्य वेबसाइटों पर डाली गई सामग्रियां
जो लोग भी इतिहास चर्चा में शामिल होना चाहें उनका स्वागत है। ये सूचनाएं एवं वर्गीकरण केवल आपकी सुविधा के लिये हैं। अगर कोई आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति/संगठन बिखरी हुई सामग्री को एकत्र संकलित कर उसे प्रकाशित करने का बोझ उठाते तो समाज के लिये बड़ा योगदान होता। चूंकि सारी सामग्री इंटरनेट पर उपलब्घ नहीं है। इस लिये क्षेत्र भ्रमण आदि की आवश्यकता है। अतः लाख उत्साही होने पर भी यह काम एक दो लोगों के वश का नहीं है। इसमें कुछ लाख रुपयों की आवश्यकता तथा समय देने की भी जरूरत है। मैं भी अपने स्तर से यथा संभव प्रयास कर रहा हूं।
कुछ लोग सामग्री संकलन की जगह झटपट निष्कर्ष के मूड में रहते हैं। इस तरह तो हम अपनी ही आंखों में धूल झोंकते हैं। प्रयास करने पर क्या पता कितनी उलझनें सुलझ जायं। समाधान मिल जायं। मेरे पास न तो कोई बना बनाया गौरवशाली निष्कर्ष है, न कोई दावा।



कोई टिप्पणी नहीं: