सोमवार, 5 अगस्त 2013

सवालों से क्या डर?

सवालों से क्या डर?
मेरी इच्छा ही नहीं अनुरोध है कि अपनी जाति की परिस्थिति, इतिहास, परंपरा, धर्म, साधना, शैली, रूढि़याँ, उलझनें सभी पर गंभीर सें गंभीर प्रश्न सामने आएँ। प्रश्न आएंेगे तो लोग उत्तर ढूंढ़ने का प्रयास करेेंगे। किसी के सवाल पूछने को अपमान या अशिष्टता नहीं मानना चाहिए। इसी प्रकार किसी के उत्तर से किसी की सहमति हो या न हो उसे विचार हेतु खुला छोड़ना चाहिए। प्रश्नकर्ता भी उत्तर दाता पर व्यक्तिगत आक्रमण न कर उसे प्रश्नों के दायरे में घेर कर परीक्षा करें। अगर वह अपने ज्ञान एवं अज्ञान को स्पष्ट करे तो उसे दंड न दें। जितना उत्तर दे सका, उतने के लिये ही धन्यवाद, सारे प्रश्नों का उत्तर कोई नहीं दे सकता।
जानने एवं मानने की मिलावट नहीं करनी चाहिये। जानते हुए  उसे मानने में खतरा नहीं है। मानने को जानना कहने में खतरा ही खतरा है। जानना किसी आधार पर होता है। मानने का आधार हो ही यह जरूरी नहीं है। अतः हो सके तो किसी भी जानकारी का आधार एवं स्रोत अवश्य बतायें। इसके विपरीत स्वयं प्रश्न उठाकर और स्वयं ही ंनकारात्मक निष्कर्ष यह मान कर नहीं निकाल लेना चाहिए कि मेरे प्रश्न का कोई उत्तर देने वाला नहीं है अतः पहला और अंतिम ज्ञानी मैं ही हूँ। स्वयं सवाल एवं स्वयं उत्तर की यह शैली दूसरों को उत्तर देने से रोकती है अतः मैं उन श्रीमान् का नाम नहीं ले रहा। प्रश्नकर्ता के द्वारा ही उत्तर आ जाने पर दूसरे के पास सहमति या असहमति जैसा खाका ही नहीं बचता है।
फेश बुक पर फोटो देखिए तो तिलक, छापा, माला, नाम, देवी-देवता मंत्र सभी पर्याप्त मात्रा में   उपलब्ध हैं। जब उन पर चर्चा होने लगी तो कुछेक लोग ऐसे प्रश्न उठाने लगे जैसे योग, तंत्र आदि विषय सब बिलकुल स्पष्ट है। इस पर चर्चा की क्या आवश्यकता? ऐसे महानुभाव जीवन को इतनी सरलता से लिख रहे हैं जिसके अंतर्गत ही तो सारी साधना का समावेश है। यह एक साहित्यिक, भाषाई लच्छेदारी हो सकती है। इससे विषय वस्तु स्पष्ट नहीं होता। साधना एक अभ्यास पूर्ण तकनीकी ज्ञान की तरह है। यह केवल भावनात्मक विषय नहीं है। विधिपूर्वक न करें तो एक दिन का उपवास भी कष्टदाई हो जाता है। इसके विपरीत गर्मियों में भी छठ एवं निर्जला एकादशी लोग खुशी एवं उत्साहपूर्वक करते हैं। मैं ने एक साल विधिविरुद्ध छठ किया, बहुत कष्ट हुआ। उपवास के पहले अल्पाहार की जगह मुसलमानों की नकल पर खूब खा लिया। पेट एवं पूरे शरीर में बहुत जलन हुई। अगले साल उपवास के पहले कम खाया, समय रहते नियमानंसार खूब पानी पिया, परिणामतः 36 घंटे तक बिना कष्ट के व्रत में रहा, काम भी करता रहा।
पूर्वजन्म, पुनर्जन्म, योग, तंत्र, उपासना, मंत्र, उत्सव, अनुष्ठान, उत्तराधिकार, चार पुरुषार्थ, जातीय पहचान, पुराने एवं भावी गौरव के उपाय किसी भी बात पर खुलकर पूछिए एवं विभिन्न लोगों से दूसरों का विचार जानिए। हर मुद्दे पर सहमति की आशा स्वयं को पीडि़त करने का उपाय है। विभिन्न सूचनाओं  तथा विचारों के बीच से कुछ तो निकलेगा ही।
मैं ने स्वयं फेश बुक पर उठाये गए सवालों को चुनने का काम शुरू कर दिया है और चर्चा आगे बढ़ाने की कोशिश करूँगा। देखें कि लोगों का दिल दिमाग किस ओर जाता है।

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