शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

ब्राह्मणों के वर्गीकरण के प्रमुख आधार

भारतीय संस्कृति में ब्राह्मणों के वर्गीकरण के प्रमुख आधार
एक बार किसी ने उपाधियों के आधार पर जातियों को पहचानने का प्रयास किया था। मुझे यह प्रयास उत्साह पूर्ण किंतु सांस्कृतिक समझ की कमी वाला लगा। इसलिये जो जानकारी मेरे पास है उसे आप लोगों के सामने रख रहा हूं।
पहले जाति की पहचान तीन बातों से होती थी। रक्त संबंध, खेती, क्षेत्रीय पहचान एवं आचार, व्यवसाय एवं कच्ची रसोईयों का सहभोज (रोटी/भात)। ये असली मामले हैं, जो अंदरूनी रिश्तों का आधार बनते हैं।
मिश्र, पाठक, झा, ओझा, बनर्जी, साहू, पंडा, बनर्जी, चटर्जी, चौबे, अय्यर, नंबूदरी, नौटियाल, बहुगुणा, पौड़वाल तिवारी आदि सामान्य एवं गाँवों के नाम पर आधारित - मुसलगाँवकर, पणीकर, नौरिया एवं राजकीय उपाधियाँ - राय, चौधरी, ंिसह आदि बाहरी एवं बदलने वाली पहचान हैं। शर्मा लिखना सुनियोजित आंदोलन की हिस्सा है, जिसके बाद में अन्य जातियों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया। पहली बार पुराणों ने एवं कुछ धर्म शास्त्रकारों ने शर्मा, वमा/देव, प्रसाद/गुप्त तथा दास लिखने का प्रस्ताव दिया जिसकी नकल चली तो जरूर पर बहुत कम।
दरसल गुप्त रूप से छल पूर्वक अपने को ब्राह्मण मनवाने का सिलसिला पुराना है। जिन   उपाधियों के प्रति आकर्षण होता है दरसल वे ब्राह्मण या क्षत्रिय की उपाधियां होती हैं। गुप्त, प्रसाद, साहू ये सभी ब्राह्मणों की उपाधियां हैं। विष्णु गुप्त चाणक्य को कहते हैं। उड़ीसा में आज भी साहू वहां के सबसे प्रभावशाली एवं प्रतिष्ठित ब्राह्मण हैं। कोई इसका विरोध भी नहीं कर सका क्योंकि ‘शर्मा’ के पक्षधर जन्म से जाति की पहचान वाली धारा की जगह कर्म के आधार पर वर्णव्यवस्था के पक्षधर आर्य समाज एवं उससे उपजे अन्य आंदोलनों के लोग रहे हैं भले ही वे जन्म से ब्राह्मण क्यों न रहे हों। कुछ लोगों ने इसे इतना अधिक पसंद किया कि हमारे यहां नई पहल के रूप में बढ़ई, लुहार, एवं नाई लोगों ने शर्मा को अपनी जातीय उपाधि बना ली है। समाज इनके अतिरिक्त व्यापक रूप से भूमिहारों को शर्मा के रूप में पहचानता है।
बिहार के प्रसिद्ध भूमिहार नेता स्व. श्री कृष्ण सिंह के जमाने में भूमिहारी ध्रुवीकरण के समय सभी ब्राह्मणों के एकीकरण का एवं भूमिहारों को अपना मसीहा मानने का दबाव बनाया गया था। सरकारी, अर्ध सरकारी एवं कालेज विश्वविद्यालयों जैसे स्व-शासी संस्थाओं में अध्ययनरत ब्राह्मण छात्र एवं कार्यरत कर्मचारियों तथा अध्यापकों ने भी काफी संख्या में मिश्र, पाठक जैसी उपाधियों की जगह शर्मा लिखना शुरू कर दिया लेकिन ब्राह्मणों की भूमिहारों द्वारा पुरोहिती एवं जमीन छीनने के आंदोलन के साथ-साथ चलने के कारण मिथिलांचल को छोड़ बाकी जगहों पर इसका उलटा ही असर हुआ। मिथिलांचल में ब्राह्मणों तथा भूमिहारों के बीच वह द्वेष भाव नहीं है। वहां तो रक्त संबंध भी लंबे समय से चलन में है।
ब्राह्मणों का वर्गीकरण कई बार हुआ। इनमें मेरी जानकारी में निम्न प्रमुख हैं -
1- वैदिक सूत्रों वाला - जैसे वाजसनेयी, आंगिरस आदि
2- स्मृतियों वाला - मनु, पराशर, गोभिल, मौद्गल आदि।
3- उत्तर भारत में राजा हर्षवर्द्धन वाला - त्रिपाठी, चतुर्वेदी, द्विवेदी आदि
4- शंकराचार्य वाला- पंच गौड़, पंच द्रविड़ वाला कान्यकुब्ज, वंग, कलिंग, सारस्वत आदि।
5- अंग्रेजों की रायशुमारी वाला- विस्तृत एवं अनेक विवादों की जड़।
बंगाल, उड़ीसा एवं दक्षिण के वर्गीकरण की पूरी सटीक जानकारी मुझे नहीं है।
ब्राह्मणों की उपाधियाँ दूसरे लोग अपनाते रहे और राज्याश्रय का तो जाति से कोई रिश्ता ही नहीं होता। खान, ंिसह, चौधरी, राय, अधिकारी, धर्माधिकारी इसी तरह की उपाधियाँ हैं। पुरानी     उपाधियों का हाल भी कम मजेदार नहीं है। देव एवं गुप्त ब्राह्मणों की उपाधि होती थी। चाणक्य का नाम विष्णु गुप्त है। शर्मा का क्या कहना, बढ़ई, नाई, लुहार, सोनार सभी विश्वकर्मा से शर्मा बन गए। पंचतंत्र हितोपदेश के रचनाकार विष्णु शर्मा केा कुछ लोग विष्णु गुप्त चाणक्य मान बैठते हैं। गुप्त की जगह शर्मा भी लग सकता है। उड़ीसा में ‘साहू’ ब्राह्मण की उपाधि है तो हिंदी क्षेत्र में बनिया की। अब आप क्या समझ लेंगे उपाधि से?
इसलिए मित्रों, सावधान! उपाधि आधारित जातीय ज्ञान आपको कभी भी धोखा दे सकता है। केवल जन्म से ब्राह्मण होना हीं धर्म, धर्मशास्त्र, तंत्र शास्त्र, भारतीय समाज को समझ लेने का आधार नहीं हो सकता, वह तो आपकी पात्रता सुनिश्चित करता है। अध्ययन, सत्संग चर्चा के बगैर जो मनमना धारणा बनाते हैं, शार्टकट हर जगह लगाते हैं वे सबसे पहले अपना बुरा करते हैं और जब दूसरों को गलत जानकारी देते हैं तो दूसरों को भी हानि होती है। यह मामला चाहे जाति व्यवस्था समझने का हो, वर्ण व्यवस्था या समाज की किसी अन्य परंपरा को। 

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

पाठक जी आपको तो न वेद का ज्ञान है ना पुराणों का बढ़ई ,लोहार, ताम्रकार, शिल्पकार, सुवर्णकार ये पांच जाति ही श्रेष्ठ ब्राह्मण है ना कि मिश्रा, दुबे, पांडेय ये कोई ब्राह्मण नही है आप अपना फालतू का ज्ञान न बाटे पहले रहस्य न मालूम हो तो संभाषण करने की जरूरत नही है ,वेदो में हम श्रेष्ठ है पुराणों में हम महान है और जन्म जात तुम शुद्र हो हम नही , विश्वकर्मा कुले जात:गर्भ ब्राह्मण निश्चित:

Unknown ने कहा…

शर्मा किसे कहते है उसका तो ज्ञान है नही बिना मतलब संभाषण डाल रखा है ,विश्वकर्मा के पांच पुत्रों को पांचाल ब्राह्मण कहते है तथा शर्मा श्रेष्ठ ब्राह्मण ही उपयोग करते आप की तरह नकली ब्राह्मण नही किसी अच्छे ब्राह्मण से पता करो जाके की विश्वकर्मा जाति के लोग कौन होते है , कुछ ब्राह्मण शिल्पकार होते थे तथा शिल्पकर्म को अथर्ववेद में शिल्प विधा दी गयी है और बढ़ई, लोहार, ये सब शिल्प कर्म है ना कि कोई जाति ,जाति ब्राह्मण है आप मन लगाके वेद पढ़े फ़ालतू पोस्ट न करे इससे आपका शुद्र पन छुप सकता है लेकिन सच्चाई नही

LEKHRAJ PANCHAL ने कहा…

लोगों को तथ्य परख जानकारी दें भ्रमित न करें । विश्वकर्मा वंशी ही असली ब्राह्मण हैं ।

Unknown ने कहा…

Right

मदन शर्मा ने कहा…

मूर्खतापूर्ण पोस्ट

Unknown ने कहा…

विश्वकर्मा गर्भ से ब्राह्मण है,बाकी कर्म से ब्राह्मण बनते है–स्कंदपुराण के अनुसार