शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

शाकद्वीपी ब्राह्मणों के प्रमुख ऐतिहासिक खंड

मित्रों स्वजातीय इतिहास की चर्चा हेतु मेरा विस्तृत प्रस्ताव आपके समक्ष है। अब मेरा काम पूरा हुआ। आपकी सहभागिता की प्रतीक्षा में ........................

शाकद्वीपी ब्राह्मणों के प्रमुख ऐतिहासिक खंड

शाकद्वीपी ब्राह्मण प्रायः सामाजिक रूप से संवेदनशील, समकालीन परिस्थितियों की चुनौतियों का सामना करने वाले लगते हैं। अपने बौद्धिक वर्चस्व तथा अपने मूल स्थान को स्मरण किये होने के कारण ये ईर्ष्या के पात्र भी रहे हैं। इनके इतिहास के बारे में जो भी जानकारी मिलती है, उसे निम्न कालखंडों में बांटा जा सकता है। चूंकि सिलसिलेवार पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी है अतः  ज्ञात भागों की प्रमुख सूचनाएं दी जा रही हैं। जो संभावनाएं और उन पर बने सिद्धांत सीधे तौर पर इतिहास के किसी काल खंड से नहीं जुड़ते केवल सनसनी फैलाने जैसा काम करते हैं, उन्हें विचारणीय/समीक्षाधीन शीर्षक के अंतर्गत रख कर उसकी समीक्षा की जा सकती है। सीधे जुड़े संदर्भ वे हैं जहां शाकद्वीपी या समतुल्य शब्द के साथ ब्राह्मण के रूप में, मग/भोजक/दिव्य ब्राह्मण नाम से इतिहास मिलता है। शाकद्वीप की भौगोलिक पहचान, शक एवं मगी वाला संदर्भ एवं सिद्धांत मौलिक रूप से विवादास्पद एवं परीक्षणीय हैं। हां, सूर्य प्रतिमा की दो प्रमुख शैलियां हैं- उदीच्य एवं प्रतीच्य अर्थात पूर्वी एवं पश्चिमी। यह निर्विवाद एवं प्रत्यक्ष है। इसके उल्लेख अनेक मूल ग्रंथों में पाये जाते हैं लेकिन प्रतीच्य का अर्थ ईरान कैसे हो गया मेरी समझ के बाहर है। क्या भारत वर्ष में पूरब पश्चिम नहीं है?
प्रमुख काल खंड एवं उनसे जुड़ी सूचनाएं
वैदिक काल-
जातीय इतिहास की कोई सूचना नहीं। ऋषिगोत्र बाद में अपनाये गये अन्यथा शाकद्वीप से आगमन एवं जंबूद्वीप में बसने संबधी विवरण में ही इसका उल्लेख होता।
महाभारत काल-
सांब की कथा के साथ पुराणोक्त कथा शुरू होती है। सूचनाओं का अंतर इतना जरूर है कि 18 कुल आये या 18 पुरुष जिनके लिये भोज वंशीय कन्याओं की व्यवस्था हुई और उन्हीं से आगे की संतानें बनीं।
हर्ष पूर्व-
मूर्तियां एवं शिलालेख मिलते हैं।
हर्षकालीन-
मगध से कन्नौज एवं कन्नौज से मगध में काफी संख्या में जा कर लोग बसे या बसाये गये। सभी जातियों के लोग गये इसलिये अभी भी सभी जातियों में कन्नौजिया एवं मगहिया भेद पाया जाता है।
गुप्तकालीन/उत्तर गुप्तकालीन-
अनेक शिला लेख एवं दक्षिण बिहार में भोजकों के मंदिर राज्यों की स्थापना। देव वरुणार्क एवं अन्य शिलालेख। सूर्य के आदित्य नाम के गौरव की खूब चर्चा कर द्वादश 12 आदित्यों का वर्गीकरण तथा उसे नारायण और विष्णु रूप के अंतर्गत समेटने का प्रयास। सौर तंत्र का प्रचार आरंभ तथा कर्मकांड में सूक्ष्म मुहूर्त विचार का समावेश।
10 वीे से 14 वीं
सूर्य का शिव में अंतर्भाव की धारा का अभ्युदय। द्वादश आदित्य परंपरा की काशी में स्थापना एवं अस्सी संगम से लोलार्क कुड से ले कर वरुणा के वरुणार्क मंदर तक अनेक मंदिरों का निर्माण। कुद तालाबों को विशेष तिथियों में गंगा से भी पवित्र घोषित किया जाना। इसके परिणाम स्वरूप प्रसिद्ध अघोरी सिद्ध कीनाराम के द्वारा क्रीं कुंड को गंगा से भी अधिक पवित्र घोषित किया जाना।
मगध से उड़ीसा के समुद्र तट तक सूर्य मंदिरों की स्थापना एवं जगन्नाथ मंदिरों को ही उसकी मूर्ति हटा कर सूर्य मंदिर बनाना। इसी प्रकार अन्य विष्णु मंदिरों पर कब्जा जमा कर उसे शिव मंदिर बनाना। तंत्र धारा का पूरा साम्राज्य एवं पालवंशीय राजाओं द्वारा समर्थित वामाचार में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना। दक्षिण बिहार के जंगलों में तो एक पूरे कौल क्षेत्र की स्थापना।
मूहूर्त विचार की अनिवार्यता पूरे कर्मकांड में लागू। अनेक ब्राह्मणों द्वारा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में समर्थन तथा उसे अपनाने के कारण सौर तंत्र के छाया पक्ष अर्थात् छाया मापन के यंत्रों द्वारा ज्ञान को सौर तंत्र की जगह ज्योतिष शास्त्र का रूप दिया जाना। सूर्य मंदिर एवं वेधशाला से बाहर विकेन्द्रित रूप से ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन की परिपाटी की चलन। सूर्य सिद्धांत आदि के रचनाकार में किसी के द्वारा स्वयं को मग, भोजक या किसी भी रूप में स्पष्ट तौर पर शाकद्वीपी नहीं घोषित किया जाना। यह सब तो बाद के युग का संभावना आधारित प्रचार है जिसकी पुष्टि जरूरी है।
14 वीं से 20 वीं
सभी समकालीन राजनैतिक सामाजिक आंदोलनों में कुछ न कुछ लोगों की सहभागिता। परिणामस्वरूप खिचड़ी संस्क्ति एवं भयानक गृह कलह का आरंभ। तंत्र के नाम पर पूरा छलछद्म एवं परिवार में स्त्रियों पर अत्याचार क्योंकि सभी धारा के सांस्कृतिक नेतृत्व के कारण मामले का पेचीदा होते जाना। जयदेव की पूर्ण स्वीकृति, गीत गोविंद को कुल गीत का दर्जा। मांसाहार एवं तंत्र साधना परंपरा जारी। सौर मगों की दुर्गति, उनके मंदिरों एवं साम्राज्य का मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा ध्वंस। कोणार्क का अंगरेजों द्वारा ध्वंस।
आर्य समाज जैसी ब्राह्मण विरोधी धारा को न केवल समर्थन वरन पुरोहिती तथा चिकित्सा पेशे में गैर परंपरागत जातियों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका, खाश कर मूल औैषधीय द्रव्यों के आढ़ती जातियों का आयुर्वेद व्यवसाय पर कब्जा, कंपनी संस्कृति का उदय।
विभिन्न राजनैतिक धाराओं का नेतृत्व, निम्न पसंदीदा क्रम में- पहली प्राथमिकता-जनसंघ एवं अंगरेज, शाहाबाद तथा मुगेर प्रमंडल को छोड. कर। यहां 1857 के प्रभाव के कारण अंगरेज भक्ति अच्छी नहीं मानी जाती थी। इसी प्रभाव में अंगरेज परश्त बिरादरी के जंमीदारों एवं आर्यसमाजियों द्वारा जातीय सम्मेलनों संगठनों की शुरुआत। मुख्य बहुसंख्यकों के द्वारा किये गये प्रयासों की चर्चा मैं ने दूसरी जगह की है। दूसरी प्राथमिकता- कांग्रेस, अनेक कांग्रेसी स्वतंत्रता सेनानी, तीसरी- साम्यवादी जो कई बार लेनिन ही नहीं माओ की भक्ति तक जाती है। चौथी- समाजवादी, बहुत कम, न के बराबर। आज भी भाजपाइयों की संख्या सबसे अधिक है।
राजस्थान में शाकद्वीपीय पुनरुत्थान आंदोलन, याचक वृत्ति एवं मंदिरों के पुजारी होने के साथ आधुनिक शिक्षा तथा व्यवसाय में आगे बढ़ने का प्रयास और काफी सफलता। भोजक नेतृत्व द्वारा मगों के यहां रक्त संबंध का प्रस्ताव। उड़ीसा में पुनः स्थानीय शाकद्वीपी ब्राह्मणों को यज्ञ में स्थान न दिये जाने के विरुद्ध जगन्नाथ मंदिर कमिटी में मुकदमा। मगध से पुराने रक्त संबंध के आधार पर पक्ष में फैसला, प्रतिष्ठा प्राप्ति। अनेक प्रदेशों में ब्राह्मण के स्प में स्वीकृति किंतु बंगाल में अभी तक राजा एवं समाज दानों के द्वारा अस्वीकृति।
इसमें जो सूचनाएं गलत हों उनका आधार सहित खंडन, सुधार करें। जो छूटी हुई हैं, उन्हें खोज कर पूरा करें। मेरा यह आलेख केवल प्रस्ताव भर है। तथ्य एवं सत्य को सर्वापरि माना जाय। इसमें मेरा विचार तेरा विचार जैसा कुछ नहीं है। 

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